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उसका दर्द [लघु कथा] - रचना श्रीवास्तव


"अरे कजरी जल्दी कर ट्रक जाने को है" शन्नो ने बड़े उत्साह से कहा| चुनाव आते ही शन्नो के स्वर में अजीब सी ख़ुशी छा जाती है, कुछ कमाने का समय जो होता है ये| अलग अलग पार्टी के चमचे आते हैं ट्रकों में भर के लोगो को ले जाते हैं बदले में १००, ५० जैसा हो मिल जाता है| हाँ शन्नो पहले ही इस बात की जाँच पड़ताल कर लेती है की रैली होजाने पर वापस गाँव में ला के छोडा जाये| 

साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-


रचना श्रीवास्तव का जन्म लखनऊ (यू.पी.) में हुआ। आपनें डैलास तथा भारत में बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया है। आपने रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ प्रस्तुत किये हैं। आपकी रचनायें सभी प्रमुख वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।

"कजरी क्या कर रही है जल्दी कर".शन्नो ने फिर पुकारा| 

"आती हूँ " एक मध्यम सी आवाज में कजरी ने उत्तर दिया| ये कजरी का पहली बार है जब वो गाँव से बाहर अकेली जा रही है ऊपर से एसी भीड़ वाली जगह पर| उसका मन तनिक भी नहीं था पर क्या करे जब से शादी हो के आई है घर की आर्थिक तंगी से उबर नहीं पाई है, पति है की कोई काम धन्धा करता नहीं बस जो कुछ वो कमा के लाती है उस में से भी ले के शराब पी लेता है ऊपर से ताने और गलियां अलग से| शन्नो को देख कितना कमा के लती है पूरा परिवार चलाती है और तू बस यही दो चार घर बर्तन मांज के ......फिर गलियों का सिलसिला शुरू हो जाता है| कजरी ने भी सोचा की चलो ४ ,५ घंटे के यदि १०० रूपया और धोती मिल जायेगी तो अच्छा ही रहेगा न| कई दिन से बचवा को बुखार है दावा भी ख़तम होने को है और डाक्टर ने कहा है की खून की कमी भी है कुछ फल खिलाओ| जितना वो कमाती है उस में दो जून का खाना ही बहुत मुश्किल से हो पता है फल कहाँ से लाये? यही सब सोच के वो राजी हो गई थी पर मन ही मन डर बहुत रही थी| 

बचवा को ऊषा ताई के पास छोड़ के शन्नो के साथ हो ली 
"ये धोती भी देंगे न पैसे के सात वों तसल्ली कर लेना चाहती थी"
"हाँ बड़ी पार्टी है बहुत बड़ी सभा है ज्यादा ही मिलेगा कम नहीं"
ट्रक आधा भर चुका था बिचौले बाबू गिनती करने में लगे थे| "आ गई शन्नो रानी बड़ी देर लगा दी चल चल बैठ जा गाड़ी में" 

शन्नो के पीछे पीछे कजरी भी गाड़ी में आके बैठ गई| ट्रक भर गया तो चल पड़ा बिचौले बाबू ने कहा हाँ सुनो मुन्ना भैया की जय बोलना है ये बहुत बड़ी .....वो क्या बोल रहे थे कजरी को उस से कोई मतलब नहीं थी वो तो बस मिलने वाली रुपयों की सोच रही थी....और साडी भी रह रह के दिमाग में आरही थी|२ घंटे में सभा स्थल पर पहुँच गए सभी जय जय कह रहे थे कजरी भी उनकी आवाज में आवाज मिला रही थी| वो शन्नो की धोती पकडे एसे चल रही थी जैसे बच्चे ऊँगली पकड़ के चलते हैं उसको डर था कहीं भीड़ में खो न जाये| करीब २ घंटे में सभा खत्म हो गई| बिचौले बाबू ने गिनती कर सब को एक किनारे किया और कजरी से कहा तुम ने बड़े उत्साह से नारा लगाया है तुम अलग से भी पैसा मिलेगा आओ मेरे साथ आप लोग यहीं रहिये आप को यहीं मिल जायेगा| कजरी इधर उधर देखने लगी की उस की नज़रें शन्नो को खोज रहीं थी पर वो कहीं नहीं दिखी| 

"आओ ...क्या हुआ .?"

कजरी बिचौले बाबू के पीछे चलने लगी पास के गेस्ट हाउस में पहुँच के उन्होंने एक कमरा खोला और अंदर चले गए कजरी बाहर खडी रही| बिचौले बाबू ने कहा अंदर आ जाओ| कजरी डरते डरते अंदर चली गई| बिचौले बाबू ने दरवाजा बंद कर दिया| थोडी देर तक कजरी की गुहार अंदर से आती रही पर कुछ समय बाद वो भी आना बंद होगई ..........एक विजयी मुस्कान के साथ बिचौले बाबू बड़े शान से कमरे से बाहर आये और लोगों की गिनती कर के उनको ट्रक में चढाने लगे| कजरी अपनी आत्मा समेटती हुई अपने हाथों में रखे १००० रुपये को देख रही थी| समझ नहीं पा रही थी वो खुश हो की अब बचवा के लिए बहुत दिनों तक फल ला सकेगी या दुखी क्यों की उस ने जो कुछ खोया है उसका दर्द सिर्फ वो ही समझ सकती थी| कपडों को ठीक करती बिखरी मानसिकता के साथ बाहर निकली तो देखा शन्नो दूसरे कमरे से निकल रही थी| शन्नो को देखते है कजरी शन्नो के ठाठ बाट और चुनाव आने पर उसकी ख़ुशी का सारा माजरा समझ गई| उफ़ तो सब कुछ जानती थी शन्नो .....बिचौले बाबू ने कजरी औए शन्नो को दो दो धोती दी शन्नो उछलती कूदती ट्रक में बैठ गई| कजरी के एक एक पैर मनो भरी हो रहे थे| अपनी बर्बादी का दर्द खुद ही उठाये वों ट्रक में आ के बैठ गई| 

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15 टिप्पणियाँ

  1. लिखती रहिए रचना। बहुत सुन्दर।

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  2. जीवन की एक कटु सच्चाई को बताती है, आपकी कहानी ! यकायक याद आया पिछला दिसम्बर, जब प्रधानमंत्री के ख्वाब सजोये एक महिला नेता दिल्ली में विधान सभा चुनावों के दौरान अपनी तूफानी रेलिया कर रही थी, चमचे लोग झुग्गी झोपडियों से ५०-५० रूपये देकर लोगो की भीड़ इकठ्ठा कर रहे थे ! मेरे ऑफिस जाने वाले रस्ते में कुछ सजी -धजी महिलावो को टेंपो में चड़ते देखता था और सोचता था, वाह मेरे लोकतंत्र !!

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  3. रचना की रचना कहे नंगे सच की बात।
    बिना जागरण के नहीं बदलेंगे हालात।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. yu to shoshan ab hamari sans kriti banti ja rahi hai apki kahani is sanskriti par ek kara prahar karne ka jajba dikha rahi hai

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  5. aapki kahani sahitya aur samaj ko ek nae disha de rahi hai. aapko aur aapki nae kalam ko salam

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  6. नग्न सच्चाई आपकी लघुकथा में उजागर हुई है।

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  7. सच्चाई लिखी है आपने बहूत सुन्दर ।

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  8. रचना,
    यथार्थ का बखूब चित्रण किया है. लिखती रहो.

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  9. रचना जी सच को जिस तालत से आपकी कहानी दिखा रही है किसी को भी झकझोरने में सक्षम है।

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  10. मानवता के शोषण में लिप्त आम आदमी के मुंह से नकाब उत्तारती एक सुंदर लघु कथा. लिखते रहिये

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  11. सच है। कडवा। सधी हुई लघुकथा।

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  12. rachana ji ;

    aapne bahut kadavi sacchai ko apni kahani me chitrit kiya hai .. desh ab aida hi ban chuka hai .. mujhe aapki is katha ne bahut prabhavit kiya hai ..

    badhai
    vijay

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  13. aap sabhi dil se dhnyavad .me thoda der se aap ka dhyavad kar rahi hoon mujhe maf kijiyega .apna sneh isi tarah banaye rakhiyega .
    dhnyavad

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