
जब तक
सिर्फ मैं बनी रही
जीना बडा दुश्वार लगता रहा
मीनाक्षी जिजीविषा कवयित्रियों में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
आपकी अनेक संयुक्त काव्य संकलन प्रकाशित हैं, जिनमें से प्रमुख हैं “क्षितिज खोजते पखेरू”, “सृजन के झरोखे से”, “यादें”, “काव्यधारा”, “काव्यांजलि”,
“इन्द्रपिनाक” इत्यादि। आपकी लघुकथा संग्रह “पलकों पर रखे स्वप्न फूल” (हिन्दी अकादमी द्वारा पुरस्कृत वर्ष 2001), तथा “दिल के मौसम” (काव्य संग्रह हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत वर्ष 2005-2006) प्रकाशित हैं। “इस तरह से भी” व “स्त्री होने के मायने” काव्यसंग्रह प्रकाशनाधीन हैं। आप अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होती रही हैं।
आपको प्राप्त सम्मानों में - महीयसी महादेवी वर्मा सम्मान से सम्मानित –वर्ष 2001, दीपशिखा सम्मान–वर्ष 2002, सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान’ से समानित - वर्ष 2003, सूरीनाम के राजदूत ‘कृष्णदत्त बैजनाथ’द्वारा राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान से सम्मानित – वर्ष 2005, वुमन अचीवर ऑफ हरियाणा से सम्मानित – वर्ष 2006-07 तथा हंस कविता सम्मान से सम्मानित –वर्ष 2008 प्रमुख हैं।
आप साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य जनमंच’ की उप संपादिका भी हैं।
मैं....
थोडी सी- लहर बन गई
थोडी सी हवा
थोडी तितली
थोडा पेड
थोडी सी मिट्टी
थोडी सी ‘जड’
थोडा आकाश
थोडी थोडी धूप
थोडी छाँव
थोडा आँसू
थोडी हंसी
थोडी खुश्बू
थोडी खुशी
थोडी उम्मीद
और ढेर.... ढेर सारी
‘जिजीविषा’
अब जीना
मुश्किल नहीं लगता।
12 टिप्पणियाँ
meenakshi ji ,
जवाब देंहटाएंbahut kam shabdo me aapne ek acchi kavita ka nirmaan kiya hai ..
sach to yahi hai ki hum prakruti se rishta jod le to jeena saarthak ho jayenga.
aapko badhai ..
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
Vah ! Meenakshi ji, Bahut sunder !
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह ! वाह !
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में कितनी गूढ़ बात कही आपने....वाह !! मन मुग्ध हो गया...प्रेरणादायी अतिसुन्दर कविता हेतु आभार आपका.
sach bahut sach
जवाब देंहटाएंjab hum badalne lagte hain to jina aasaan ho jata hai
sunder kavita
जवाब देंहटाएंbahut sunder
rachana
मीनाक्षी जी को इस अद्भुत कविता पर दिल से बधाई
जवाब देंहटाएंथोडी सी- लहर बन गई
जवाब देंहटाएंथोडी सी हवा
थोडी तितली
थोडा पेड
थोडी सी मिट्टी
थोडी सी ‘जड’
थोडा आकाश
थोडी थोडी धूप
थोडी छाँव
थोडा आँसू
थोडी हंसी
थोडी खुश्बू
थोडी खुशी
थोडी उम्मीद
और ढेर.... ढेर सारी
‘जिजीविषा’
अब जीना
मुश्किल नहीं लगता।
बहुत सुन्दर भाव।
बहुत अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंवाह कविता के माध्यम से नाम को साकार कर दिया आपने.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में बेशक सब कुछ थोड़ा-थोड़ा सा है लेकिन कमैंट इतने थोड़े से नहीं बल्कि इससे दुगुने-चौगुने होने चाहिए थे :-)
meenakshi...saral v sunder v sahaj bhasha mein kavyatmak abhivayakti...aapki kavitaaien aur padhne ki echa hue...link bheje...
जवाब देंहटाएंसुंदर ,लाजवाब कविता |
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.