
हिन्दुस्तान के आलातरीन शायरों में शुमार कैफ़ी आज़मी का नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। १० मई, २००२ को इस दुनिया को अलविदा कह जाने वाले कैफ़ी साहब को याद करने का शायद सबसे बेहतर तरीका उनकी शायरी से होकर गुज़रना ही हो सकता है जो न केवल उनके विचारों बल्कि उनकी ज़िन्दगी और शख्सियत को भी बहुत हद तक अपने पढ़ने वालों के सामने साकार कर जाती है। उत्तरप्रदेश के आज़मगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव मिज़वाँ में सन १९१९ में जन्मे कैफ़ी साहब का मूल नाम अतहर हुसैन रिज़वी था। वे समाजवादी विचारधारा के पक्के समर्थक थे और उनकी रचनाओं में मज़लूमों का दर्द पूरी शिद्दत से उभर कर सामने आता है।
कैफ़ी साहब ने अपनी पहली गज़ल महज़ दस या ग्यारह साल की उम्र में कही थी। यूँ उनकी उस दौर की गज़लों में से अधिकतर नष्ट हो गयीं मगर इतनी कम उम्र में लिखी उनकी एक गज़ल को बाद में बेगम अख्तर जी ने गाया और ये गज़ल बहुत मकबूल भी हुई। इस गज़ल के बारे में खुद कैफ़ी साहब कहते हैं, "आज इ्न शे’रों को देखता हूँ तो समझ नहीं आता कि इनमें मेरा क्या है? पूरी ग़ज़ल में वही बातें जो अशातिज: (पुराने शायर)कह चुके थे।... खुद मैं अब ऐसी गज़ल नहीं कह सकता लेकिन इसकी यह खूबी है कि इसने लोगों का शक दूर कर दिया और सब ने यह मान लिया कि मैंने जो कुछ अपने नाम से मुशायरे में सुनाया था वह मेरा ही कहा हुआ था, माँगे का उजाला नहीं था।"
दरअसल किस्सा यूँ है कि बहराइच में हुये एक मुशायरे में अपने बड़े भाइयों के साथ कैफ़ी ने भी गज़ल पढ़ी जिस पर सभी ने कुछ इस ढंग से दाद दी जैसे कैफ़ी ने अपने किसी बड़े भाई की गज़ल अपने नाम से पढ़ी हो। जब ऐसा ही कुछ इनके अब्बा ने कहा तो यह रोने लगे। इस पर इनके बड़े भाई शब्बीर हुसैन ’वफ़ा’ ने उन्हें बताया कि यह गज़ल खुद कैफ़ी की लिखी है। शक दूर करने के लिये इम्तहान का फैसला हुआ और मिसरा दिया गया "इतना हँसो कि आँख से आँसू निकल पड़े"। थोड़ी देर में कैफ़ी ने यह गज़ल कह डाली और सभी को यकीन दिला दिया कि वे वास्तव में शायरी कर सकते थे।
तो आइये कैफ़ी साहब की शायरी के इस सफ़र की शुरुआत इसी गज़ल से करते हैं:
दरअसल किस्सा यूँ है कि बहराइच में हुये एक मुशायरे में अपने बड़े भाइयों के साथ कैफ़ी ने भी गज़ल पढ़ी जिस पर सभी ने कुछ इस ढंग से दाद दी जैसे कैफ़ी ने अपने किसी बड़े भाई की गज़ल अपने नाम से पढ़ी हो। जब ऐसा ही कुछ इनके अब्बा ने कहा तो यह रोने लगे। इस पर इनके बड़े भाई शब्बीर हुसैन ’वफ़ा’ ने उन्हें बताया कि यह गज़ल खुद कैफ़ी की लिखी है। शक दूर करने के लिये इम्तहान का फैसला हुआ और मिसरा दिया गया "इतना हँसो कि आँख से आँसू निकल पड़े"। थोड़ी देर में कैफ़ी ने यह गज़ल कह डाली और सभी को यकीन दिला दिया कि वे वास्तव में शायरी कर सकते थे।
तो आइये कैफ़ी साहब की शायरी के इस सफ़र की शुरुआत इसी गज़ल से करते हैं:
इतना तो ज़िन्दगी में किसी की खलल पड़े
हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े
इक तुम कि तुम को फ़िक्रे-नशेबो-फ़राज़ है
इक हम कि चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े
साकी सभी को है गम-ए-तिश्न:लबी मगर
मय है उसी की, नाम पे जिसके उबल पड़े
मुद्दत के बाद उसने की जो लुत्फ़ की निगाह
जी खुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े
और अब आइये सुनते हैं यही गज़ल बेगम अख्तर की आवाज़ में:
कैफ़ी साहब और उनकी शायरी को जानने समझने की ये कोशिश अगले कुछ रविवार भी ज़ारी रहेगी।
11 टिप्पणियाँ
अजय जी आनंद आ गया आलेख पढ कर उस पर बेगम अख़तर की आवाज़ और कैफी साहब की रचना की जुगल बंदी। भई वाह..
जवाब देंहटाएंजनाब कैफी आजमी को कौन नहीं जानता .. इनका ही एक शे'र ...
जवाब देंहटाएंवो मिले बिछड़ भी गए चुप हो लिए
जैसे मुख्तसर सी रात में सदियाँ गुजर गयी...
भावभीनी श्रधांजलि इस महान शाईर को...
अर्श
१० मई, २००२ को इस दुनिया को अलविदा कह जाने वाले कैफ़ी साहब को याद करने का शायद सबसे बेहतर तरीका उनकी शायरी से होकर गुज़रना ही हो सकता है जो न केवल उनके विचारों बल्कि उनकी ज़िन्दगी और शख्सियत को भी बहुत हद तक अपने पढ़ने वालों के सामने साकार कर जाती है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने।
कैफ़ी की शायरी से मैं पहली बार कव्वालियों के माध्यम से परिचित हुआ था। कैफ़ी कैफ़ी हैं और उन जैसा शायर सदियोंमें होता है।
जवाब देंहटाएंAppreciable article.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
अजय जी आलेख का तो धन्यवाद दूंगा ही साथ ही सुबह सुबह दिन बनाने का भी। बेगम अख़्तर की आवाज में निदा फाज़ली जैसे शोएब की बॉल और सचिन का सिक्सर।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास और आलेख है।
जवाब देंहटाएंकैफ़ी आजमी जी मेरे पसंदीदा शायरों में से एक हैं.. उनके बारे में और करीब से जानना एक सुखद अहसास है. इस रोचक कडी के लिये अजय जी का अभार
जवाब देंहटाएंकैफ़ी साहब किसी परिचय के मोहताज नहीं। आज के दौर की शायरी उनके जिक्र के बिना अधूरी है। सार्थक आलेख के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंकैफ़ी आजमी जी को इस तरह याद किया जाना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअनुज कुमार सिन्हा
भागलपुर
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.