
माँ की निर्मल काया
उससे लिपटी है
सुन्दरता की छाया
युग--युग की क्षमता है
पूजा की जैसी
हर माँ की ममता है
प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं।
आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' - दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' - दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
धन धान्य बरसता है
माँ के हंसने से
सारा घर हंसता है
मदमस्ती हरसू है
माँ की लोरी में
मुरली सा जादू है
दुनिया में न्यारी माँ
हंसती- हंसाती है
बच्चों की प्यारी माँ
हर बच्चा पलता है
सच है मेरे यारो
घर माँ से चलता है
मन ही मन रोती हैं
बच्चों के दुःख में
माएं कब सोती हैं
हर बात में कच्चा है
माँ के आगे तो
बूढा भी बच्चा है
माँ कैसी होती है
पारस सा मन है
माँ ऐसी होती है
कुछ कद्र करो भाई
बेटे हो फिर भी
क्यों पीड़ित है माई
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"माहिया" पंजाब का प्रसिद्ध लोक गीत है.यूँ तो इसमें श्रृंगार रस रहता है लेकिन अब अन्य रस भी शामिल किये जाने लगे हैं.यह तीन पंक्तियों का छंद है.पहली और तीसरी पंक्तियों में १२ मात्राएँ यानि २२११२२२ और दूसरी पंक्ति में १० मात्राएँ यानी २११२२२ होती हैं .तीनों पंक्तियों में सारे गुरु (२) भी आ सकते हैं
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29 टिप्पणियाँ
प्राण जी से बहुत कुछ सीखने को मिला है। आपकी ग़ज़ल की कक्षाये मैं मिस कर रही हूँ। माहिया के विषय में जान कर अच्छा लगा। रचना बहुत अच्छी है।
जवाब देंहटाएंमाँ के आगे तो
बूढा भी बच्चा है
माँ कैसी होती है
पारस सा मन है
माँ ऐसी होती है
कुछ कद्र करो भाई
बेटे हो फिर भी
क्यों पीड़ित है माई
हर बच्चा पलता है
जवाब देंहटाएंसच है मेरे यारो
घर माँ से चलता है
मन ही मन रोती हैं
बच्चों के दुःख में
माएं कब सोती हैं
सुन्दर भाव।
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंसचमुच, माता - संतान का सम्बन्ध सर्वोत्तम मानवीय सम्बन्ध है|
अवनीश तिवारी
Nice poem. thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
कुछ कद्र करो भाई
जवाब देंहटाएंबेटे हो फिर भी
क्यों पीड़ित है माई
बहुत रोचक छंद है।
मॉं के लालों की निष्ठा पर सटीक प्रहार किया है आपने।
जवाब देंहटाएं-----------
SBAI TSALIIM
जितनी सरल माँ होती है उतनी ही सरल और लाग लपट से दूर कविता .. सहज शब्दों में एक नए छंद से भी अवगत कराया और भावपूर्ण कविता भी कह डाली |
जवाब देंहटाएं"माँ" से प्रेरित हो कर कई कवितायें लिखी गयीं हैं | साहित्य शिल्पी मंच पर ही काफी कवितायेँ हैं | आत्मा सब की सामान ही होती है और कई बार कुछ बातें दोहराई हुई लगती हैं पर फिर भी हर बार एक अलग ही अनुभूति होती है माँ से सम्बंधित कविताओं को पढ़ कर |
अद्भुत रचना है माँ पर...ऐसी रचना जो सिर्फ प्राण साहेब जैसा सिद्ध हस्त ही लिख सकता है...एक एक शब्द दिल में उतर जाता है..वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
ग़ज़ल पितामह सादर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंहमेशा ही आपसे कुछ ना कुछ सिखने को मिलता है इस बारगी ये माहिया इसकी मात्र और इसके बारे में बहोत ही खूबसूरती से आपने बताया है...
माँ क्या है तुम देखो
बच्चा जब रोये
माँ की ममता देखो ...
आपका
अर्श
***सुबोध भाषा में, संश्लिष्ट भाव लिये -
जवाब देंहटाएं....माँ की करुणा को प्रतिबिम्बित करती सहज-ग्राह्य और संवेदना के पुट से भरी हुई कविता। यहाँ देखने वाली बात है कि प्राण साहब की कविता में प्रच्छ्न्न रूप से गजल का रूप विद्यमान रहता है जो कविता को और भी जीवंत और पठनीय बनाता है। आज के कवि में ऐसे गुण विरल ही पाये जाते हैं। यह भी कि, उनके लोक में कविता अपने नियम से आबद्ध होकर भी अपनी सीमा से आगे जाती है और पाठकों को अभिभूत करती है। इस तरह की कविताओं को देखकर यह भी लक्ष्य किया जा सकता है कि अभी भी कविता मनुष्य के हृदय में उतने ही आब और भाव के साथ ज़िन्दा है जितने पहले हुआ करती थी। इस सुन्दर कविता के लिये प्राण साहब को बधाई देता हूँ। *** सुशील कुमार ।
प्राण जी की हर रचना मुझे समृद्ध कर जाती है. ''माहिया'' बचपन से सुनती आ रही हूँ पर छंद, मात्राएँ मालूम नहीं थीं.साहित्य - शिल्पी का धन्यवाद! इतनी सुंदर कविता पढ़वाने का.
जवाब देंहटाएंभाई साहब बहुत - बहुत बधाई...
’मां के हंसने से सारा घर हंसता है’ प्राण जी ’मां’ कविता कितनी यथार्थपरक और सटीक है. बहुत अच्छे भाव होते हैं उनकी कविताओं और गज़लों. प्राण जी हिन्दी कविता और गज़ल के वास्तव में प्राण हैं.
जवाब देंहटाएंरूपसिंह चन्देल
छंद-प्रयोग सफल रहा है। दीर्घ को लघु करके पढ़ने में कोई हर्ज़ नहीं। 'दुख' 'दु:ख' छप गया। माँ के प्रति बड़ी मार्मिक अभिव्यक्तियाँ की है आपने। प्रभावी-प्रांजल कविता!
जवाब देंहटाएं*महेंद्रभटनागर
ANANYA,RACHNA SAAGAR,DRISHTIKON,
जवाब देंहटाएंAVNEESH,ALOK KATARIA,ANIL KUMAR,
MAHAMANTREE-TASLEEM,DIVAANSHU
SHARMA,NEERAJ GOSWAMI,ARSH,SUSHEEL
KUMAR,SUDHA OM DHINGRA,ROOP SINGH
CHANDEL AUR MAHENDRA BHATNAGAR SAB
KAA MAIN AABHAAREE HOON JINHONE
APNEE-APNEE BEBAAQ TIPAANI SE MERA
HAUSLAA BANDHAYA HAI.MERE LIYE
YE SABHEE MAHAAN SAHITYAKAR MARG
DARSHAK HAIN.RAJEEV JEE KAA BEE
MAIN DHANYAVAADEE HOON.
प्राण शर्मा माँ से बढ कर कुछ नहीँ
जवाब देंहटाएंमाँ की ममता का नहीँ कोई हिसाब
आप के हैँ यह बहुत उत्तम विचार
माहिया यह आप का है लाजवाब
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
माँ का शब्द सुनते ही ऐसा आभास होने लागता है जैसे कानों में अनेक रस घोल दिए हों। प्राण जी की इस
जवाब देंहटाएंमाहिया में ऐसी ही अनुभूति होती है। माँ में बालक के प्रति ममता, प्यार , दुख-सुख आदि की परिकाष्ठा देखी
जा सकती है औ इन गुणों से कभी भी वँचित नहीं रहती। इसीलिए माँ के लिए सदैव ही बच्चा ही रहता है।
इस कविता में यह बड़े ही सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है:
हर बात में कच्चा है
माँ के आगे तो
बूढ़ा भी बच्चा है.
अंत की पंक्तियों में ऐसे लोगों पर प्रभावशाली शब्दों में कटाक्ष किया है जो माँ के प्रति अपने दायित्व को निभाने में आंखें चुराते हैं:
कुछ कद्र करो भाई
बेटे हो फिर भी
क्यों पीड़ित है माई.
पूरी कविता का एक एक शब्द हृदय को छूने वाला है। प्राण जी की लेखनी में ऐसा जादू है कि हर पंक्ति, हर शब्द बोलता है। इसी कारण उनकी रचनाओं की प्रतीक्षा बनी रहती है।
बहुत सुन्दर रचना..और विषय यूँ कि वैसे भी इस पर लिखा दिल छूता है, साथ आपकी कलम हो तो क्या कहने!! बहुत बधाई और आभार इतनी बेहतरीन रचना देने का.
जवाब देंहटाएंकविता की महानता में कोई संदेह नहीं। माहिया छंद भी बहुत असरदार प्रतीत होता है। इसपर लिखने का अवश्य यत्न करूंगा।
जवाब देंहटाएंइस रचना प्र मैं स्वयं को प्रतिक्रिया देने लायक नहीं समझता। प्रणाम प्राण जी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमाँ के ममत्व से भरपूर एक उम्दा रचना पढवाने के लिए प्राण शर्मा जी के साथ साथ साहित्य शिल्पी को भी आभार
जवाब देंहटाएंPran jii ko naman!
जवाब देंहटाएंis khoobsoorat kavita par daad naheeN apitu aapko dhanyavaad detaa huN.
-Dheeraj Ameta "Dheer"
प्राण जी की कविता और उसके ऊपर लगे पोस्टर ने दिल छू लिया... मां सा कोई नहीं.
जवाब देंहटाएंआप की सभी रचनाओं की तरह यह रचना भी अविस्मरणीय है । मां पर जितना लिखा जाए कम है, आखिर एक मां ही तो है जिससे कोई लोहा नहीं ले सकता ।
जवाब देंहटाएंhumko sahitya ki vidhaye nahi aati..... kis prant ki kya cheez hain ye bhi nahi jante...par bhavo ki samajh hain.... Maa ko samarpit ye rachna man ko choo gai
जवाब देंहटाएंमाँ के आगे तो
जवाब देंहटाएंबूढा भी बच्चा है
माँ कैसी होती है
पारस सा मन है
माँ ऐसी होती है
कुछ कद्र करो भाई
बेटे हो फिर भी
क्यों पीड़ित है माई
maa par aapki likhi hui kavita dil ko andar tak chhu gayi
aadarniy pran ji
जवाब देंहटाएंderi se aane ke liye maafi chahunga , main tour par tha..
mujhe ye pata nahi tha ki aap itni acchi kavita bhi likh lete hai , pahle to main aapko gazal ka shansha kahta tha , lekin ab aapki kavita padhkar to main bus aapke charan sparsh karna chahta hoon..
itni choti choti pankhtiyon me aapne itni badi badi baaten kah di hai ....
meri aankhen nam hai aur main nishabd hoon aapke lekhan par ..
ye to mera saubhagya hai ki , mujhe aapka aashirwad milte rahta hai ...
aapko aur aapki lekhni ko salam
aapka
vijay
maa ki nswarth bhav ki parakasta,jo jivan ke aantrik sukh se avagat karati hi....
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.