
अभिषेक तिवारी "कार्टूनिष्ट" ने चम्बल के एक स्वाभिमानी इलाके भिंड (मध्य प्रदेश्) में जन्म पाया। पिछले २३ सालों से कार्टूनिंग कर रहे हैं। ग्वालियर, इंदौर, लखनऊ के बाद पिछले एक दशक से जयपुर में राजस्थान पत्रिका से जुड़ कर आम आदमी के दुःख-दर्द को समझने की और उस पीड़ा को कार्टूनों के माध्यम से साँझा करने की कोशिश जारी है.....
10 टिप्पणियाँ
बेचारे लेखकों के पास कोई और चारा है भी तो नहीं :)
जवाब देंहटाएंलेखक बेचारे नहीं, है सामर्थ्य अकूत.
जवाब देंहटाएंये सारस्वत पुत्र हैं, नहीं लक्ष्मी-दूत..
करते हैं चुप साधना, रुचे नहीं व्यवसाय.
किन्तु प्रकाशक-कर्म है, लूटमार-पर्याय.
जैसे को तैसा सही, नीति जानिए सत्य.
लुटे लुटेरे ही अगर, न्यायोचित है कृत्य.
अरे वाह, साहित्य शिल्पी पर ही लक्ष्मी-दूत साहित्य शिल्पीयों की चड्डी उतार दी... मजेदार कमेंट है...
जवाब देंहटाएंबढिया कटाक्ष :)
जवाब देंहटाएंलेखक का शोषण संपादकों का जन्म सिद्ध अधिकार है। हिन्दी लेखक को पारिश्रमिक की बात ही सपना होती जा रही है एसे में वसूसी क्या और किससे?
जवाब देंहटाएंअच्छा कार्टून।
जवाब देंहटाएंभईया कोई मिले तो हमें भी बताईयेगा.. हम भी अपनी किताब छपवाने की सोच रहे हैं... एड्वांस में ही सब काम कर लेंगे :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा कार्टून है, बधाई।
जवाब देंहटाएंअभिषेक तिवारी का कार्टून बहुत सामयिक और सुन्दर है. बधाई.
जवाब देंहटाएंचन्देल
sabhi ko dhanyawaad
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.