
अब नहीं कोई सवाल, अब जवाब चाहिये
मुझे मेरे आँसुओं का, अब हिसाब चाहिये
मोहिन्दर कुमार का जन्म 14 मार्च, 1956 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में हुआ। आप राजस्थान यूनिवर्सिटी से पब्लिक- एडमिन्सट्रेशन में स्नातकोत्तर हैं।
आपकी रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं साथ ही साथ आप अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं। आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में एक हैं। वर्तमान में इन्डियन आयल कार्पोरेशन लिमिटेड में आप उपप्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं।
मुझे फिर वही मेरा, खोया शबाब चाहिये
वर्क़ा-वर्क़ा, रो-रो के, आँसुओं से है लिखी
है ख़्वाबों की तामीर जो, वो किताब चाहिये
बिसरे किसी ख़्याल ने,फिर मुझे रुला दिया
भूल जाऊँ माजी को मैं, इक अजाब चाहिये
चांदनी खिली हुई, हम गम से सराबोर हैं
ढक ले मुक्कमिल वज़ूद,वो हिजाब चाहिये
था शाख से तोड़ कर, ख़ाक में मिला दिया
चमन की दरकार है, न एक गुलाब चाहिये
अब नहीं कोई सवाल, अब जवाब चाहिये
मुझे मेरे आँसुओं का, अब हिसाब चाहिये
शब्दार्थः-
शबाब = खूबसूरती, सुन्दरता (beauty)
वर्का-वर्का =वरक़, एक एक पन्ना, सफ़ा (page)
ख्वाबों = सपनों (dream)
तामीर = इमारत, पूर्णता, (completion, building)
अजाब= अज़ायब, अनोखा, अजूबा, चमत्कार (Rare, Strange, Wonder)
माजी= भूतकाल, बीता हुआ समय (past)
मुक्कमिल = मुक़म्मल, पूरा, पूर्ण (complete)
हिजाब = पर्दा, रात (curtain, night, shyness)
दरकार = आवश्यकता, ज़रूरत (needed)
10 टिप्पणियाँ
PRIY MOHINDER KUMAAR JEE,
जवाब देंहटाएंAAPKEE GAZAL PADHEE
HAI.BHAAV HRIDAY KO CHHONE WAALE
HAIN LEKIN BAHAR PAR AAPKEE VAESEE
PAKAD NAHIN HAI JAESEE CHAAHIYE .
KOEE-KOEE MISRA HEE VAZAN MEIN
HAIN.AAPSE GUZAARISH KARUNGA ,AGAR
AAPKO GAZAL KE MAIDAN MEIN AANAA HAI TO PAHLE DO-TEEN BAHRON KAA
BHALEE-BHANTI ABHYAAS KIJIYE.YE
BAAT AAPKEE BHALAAEE KE LIYE LIKH
RAHAA HOON MAIN.ASHA KARTAA HOON
KI AAP ANYATHA NAHIN LENGE.
माफ़ कीजियेगा! मज़ा नहीं आया.
जवाब देंहटाएंथा शाख से तोड़ कर, ख़ाक में मिला दिया
जवाब देंहटाएंचमन की दरकार है, न एक गुलाब चाहिये
bahut khub likha hai.
बिसरे किसी ख़्याल ने,फिर मुझे रुला दिया
जवाब देंहटाएंभूल जाऊँ माजी को मैं, इक अजाब चाहिये
bahut hi achhe khyaal. aapki gazal bahut dino ke baad padhne mili
अब नहीं कोई सवाल, अब जवाब चाहिये
जवाब देंहटाएंमुझे मेरे आँसुओं का, अब हिसाब चाहिये
वाह लाजवाब ग़ज़ल................ बागी तेवर............जिंदगी से हिसाब मांगती ग़ज़ल
चांदनी खिली हुई, हम गम से सराबोर हैं
जवाब देंहटाएंढक ले मुक्कमिल वज़ूद,वो हिजाब चाहिये
था शाख से तोड़ कर, ख़ाक में मिला दिया
चमन की दरकार है, न एक गुलाब चाहिये
भावपूर्ण है।
प्रभावी कविता है।
जवाब देंहटाएंअब नहीं कोई सवाल, अब जवाब चाहिये
मुझे मेरे आँसुओं का, अब हिसाब चाहिये
अच्छे भाव हैं। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंpriy mohinder ji
जवाब देंहटाएंaapki gazal padhkar man bhar aaya .. har sher kuch alga si kahani pesh karta hai .. specially
बिसरे किसी ख़्याल ने,फिर मुझे रुला दिया
भूल जाऊँ माजी को मैं, इक अजाब चाहिये
aur
अब नहीं कोई सवाल, अब जवाब चाहिये
मुझे मेरे आँसुओं का, अब हिसाब चाहिये
ye dono sher lajawab hai .. aapki kalam ko salaam hai sir ji ..
itni acchi gazal ke liye badhai sweekar karen...
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
सुन्दर भाव....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
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