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नहीं जीत पायेंगे [कविता] - डॉ. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

पश्चिमी चकाचैंध में भागते लोग,
अपने आपको मिटाते लोग,
क्या संस्कृति, क्या सभ्यता
नहीं कुछ भी अता-पता,

रचनाकार परिचय:-


डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर का जन्म 19-03-1974 को उरई (जालौन) उ.प्र. में हुआ। आप को “डा0 वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यासों में अभिव्यक्त सौन्दर्य का अनुशीलन” विषय पर पी-एच0 डी0 प्राप्त है साथ ही आप अर्थशास्त्र, हिन्दी साहित्य एवं राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं। आपनें पत्रकारिता एवं जनसंचार का स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी किया है। आपकी दस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं साथ ही साथ आपके लेख, कहानी, लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, नाटक आदि का नियमित रूप से देश की प्रतिष्ठित पत्र/पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहा है।

आपको अनेक सम्मान प्राप्त हैं जिनमें उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा सम्मान(2004); साहित्यिक मंच, भोपाल से युवा आलोचक का सम्मान (2006); सेण्टर फार स्टडी आफ डेवलपिंग सोसायटीस (सीएसडीएस) नई दिल्ली की ओर से बेस्ट इन्वेस्टीगेटर(20060; अखिल भारतीय पुस्तक प्रचार समिति, इन्दौर द्वारा साहित्यिक सम्मान (2007); नेहरू युवा केन्द्र, जालौन स्थान उरई द्वारा सर्वश्रेष्ठ युवा का सम्मान (2007); पुष्पगंधा प्रकाशन कवर्धा (छत्तीसगढ़) द्वारा सम्पादक श्री की सम्मानोपाधि (2008).

वर्तमान में आप साहित्यिक पत्रिका स्पंदन का संपादन करने के साथ साथ गांधी महाविद्यालय, उरई (जालौन) में प्रवक्ता भी हैं।
बस...
एक अंधानुकरण है,
थोड़ा सा झीना आवरण है
जो ढँके है हमारी सोच को,
हमारी विकृत सोच को।

जीवन को सहजीवन....
कभी सहज-जीवन बनाने की चर्चा,
कभी अपनी मर्यादाओं, संस्कारों को
खोने की कुचेष्टा।

लेकिन क्या यही सत्य है?
ईश्वर की रची
दो अनमोल कृतियों का
क्या यही मिलन है?
शारीरिक सौन्दर्य या मिलन...
मिलन नहीं एक तथ्य है....
जो जीवन है उसे जीने का
अपना एक सत्य है।

क्या मिलेगा खुली स्वीकृति देकर?
महिला-पुरुष को खुला संग देकर?
क्या बनाये रख सकेंगे हम
ढाँचा समाज का?
साँचा अपने अभिमान का?
जिस पर गर्व हमें ही नहीं
सारे संसार को है।
अर्द्धनारीश्वर का रूप
मात्र कल्पना नहीं
आपसी सामंजस्य की पुकार तो है

तो....
नाली के कीड़ों से रेंगकर हम
मर जायेंगे....गर अभी भी
खुली यौन संस्कृति से
न जीत पायेंगे।
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12 टिप्पणियाँ

  1. संदेश प्रधान कविता है लेकिन भाषण अधिक है।

    जवाब देंहटाएं
  2. विचारणीय बाते हैं आपकी कविता में।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत सही कहा आपने....शत प्रतिशत सहमत हूँ आपसे...

    इस तथ्य पर विचार न कर मनुष्य स्वयं अपने हाथों अपनी दुर्गति करवाएगा..
    विचारणीय सुन्दर कविता हेतु आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. पंकज सक्सेना21 मई 2009 को 5:01 pm बजे

    कविता विचार करने को बाध्य करती है।

    जवाब देंहटाएं
  5. kathya sundar hai, shabd bhee sundar , thoda aur Kaavy ke nikat honee chahiye..

    rachnaa ke liye badhayee

    Avaneesh

    जवाब देंहटाएं
  6. विचार करने को बाध्य करती है रचना...

    जवाब देंहटाएं
  7. aadarniya kumarendra saheb,

    apki kavita padhi .. bahut kuch sochne par mazboor karti hai ...

    jeevan ke yataarth ko likh diya hai aapne ..

    hum sab is par gaur karen to kuch na kuch changes apne jeevan me avashay la paayenge.

    badhi sweekar kariyenga

    vijay

    जवाब देंहटाएं
  8. आपका नंबर चाहिए सर मेरा नाम सतेंद्र शुक्ल है मेरा नंबर है 09015743899

    जवाब देंहटाएं

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