
डॉ॰ कुँअर बेचैन का मूल नाम कुँअर बहादुर सक्सेना है।
आप की प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं- गीत-संग्रह: पिन बहुत सारे, भीतर साँकलः बाहर साँकल, उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख, एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की, दिन दिवंगत हुए, ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने काँच के, महावर इंतज़ारों का, रस्सियाँ पानी की, पत्थर की बाँसुरी, दीवारों पर दस्तक, नाव बनता हुआ काग़ज़, आग पर कंदील, आँधियों में पेड़, आठ सुरों की बाँसुरी, आँगन की अलगनी, तो सुबह हो, कोई आवाज़ देता है; कविता-संग्रह: नदी तुम रुक क्यों गई, शब्दः एक लालटेन, पाँचाली (महाकाव्य)
उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे
उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से
मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे
बस उसी दिन से खफा है वो मेरा इक चेहरा
धूप में आइना इक रोज दिखाया था जिसे
छू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर गई
इक गजल शौक से मैंने कभी गाया था जिसे
दे गया घाव वो ऐसे कि जो भरते ही नहीं
अपने सीने से कभी मैंने लगाया था जिसे
होश आया तो हुआ यह कि मेरा इक दुश्मन
याद फिर आने लगा मैंने भुलाया था जिसे
वो बड़ा क्या हुआ सर पर ही चढ़ा जाता है
मैंने काँधे पे `कुँअर' हँस के बिठाया था जिसे
9 टिप्पणियाँ
कुंवर बेचैन साहब की ग़ज़लें मुझे हमेशा बेचैन कर देती हैं। महत्वपूर्ण साहित्य वही होता है जो अपने पाठक को सोचने के लिये मजबूर कर देता है। यह ग़ज़ल हर पीढ़ी के नौजवानों का ख़ूबसूरत सा चित्रण है। हर मां बाप जब अपने बच्चे के अवांछित व्यवहार की तरफ़ देखते हैं तो कह उठते हैं - उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे।
जवाब देंहटाएंइस ग़ज़ल का एक एक शेर बेशकीमती है। मैं कुंवर भाई को लंदन में भी सुन चुका हूं और भारत में भी। एक रात अचानक दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर हुई मुलाक़ात बरसों याद रहेगी। मुझे यह कहते हुए गर्व महसूस होता है कि मैं भी इस अज़ीम शायर के जानने वालों की फ़ेहरिस्त में कहीं शामिल हूं। मेरी पुत्री दीप्ती के विवाह में वेल्स के डा. निखिल कौशिक ने कुंवर भाई का यह गीत सबको सुनाया था - नदी बोली समंदर से, मैं तेरे पास आई हूं........।
साहित्यशिल्पी को इस ग़ज़ल के लिये धन्यवाद।
तेजेन्द्र शर्मा
कथा यू.के. (लंदन)
बेहतरीन ग़ज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंउसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से
जवाब देंहटाएंमैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे
इतनी गहरी और जिंदगी के करीब ग़ज़ल लिखने के लिए dhanyvaad kunvar जी का और aabhaar आपका
उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से
जवाब देंहटाएंमैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे
दे गया घाव वो ऐसे कि जो भरते ही नहीं
अपने सीने से कभी मैंने लगाया था जिसे
कुँअर जी का अंदाज ही अलग है।
मर्मस्पर्शी रचना हेतु साधुवाद.
जवाब देंहटाएंजीवन एक द्वँद्व ही है इस गज़ल मेँ बहुत मर्मस्पर्शी अहसास हैँ
जवाब देंहटाएं- लावण्या
बार बार पढा।
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की सच्चाईयों के इतने करीब है यह गजल कि पढ कर एक बार आंखों मे आंसू झिलमिलाने लगते हैं. आभार
जवाब देंहटाएंkya baat hai
जवाब देंहटाएंkya baat hai
kunvarji ko baanchna aur sunna donon hi anand dete hain
adbhut...abhinav...anupam ghazal !
KUNVARJI...ABHINANDAN !!!!!
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