HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

उँगलियाँ थाम के खुद [गज़ल] - कुँअर बेचैन



रचनाकार परिचय:-


डॉ॰ कुँअर बेचैन का मूल नाम कुँअर बहादुर सक्सेना है।

आप की प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं- गीत-संग्रह: पिन बहुत सारे, भीतर साँकलः बाहर साँकल, उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख, एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की, दिन दिवंगत हुए, ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने काँच के, महावर इंतज़ारों का, रस्सियाँ पानी की, पत्थर की बाँसुरी, दीवारों पर दस्तक, नाव बनता हुआ काग़ज़, आग पर कंदील, आँधियों में पेड़, आठ सुरों की बाँसुरी, आँगन की अलगनी, तो सुबह हो, कोई आवाज़ देता है; कविता-संग्रह: नदी तुम रुक क्यों गई, शब्दः एक लालटेन, पाँचाली (महाकाव्य)

उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे

उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से
मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे

बस उसी दिन से खफा है वो मेरा इक चेहरा
धूप में आइना इक रोज दिखाया था जिसे

छू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर गई
इक गजल शौक से मैंने कभी गाया था जिसे

दे गया घाव वो ऐसे कि जो भरते ही नहीं
अपने सीने से कभी मैंने लगाया था जिसे

होश आया तो हुआ यह कि मेरा इक दुश्मन
याद फिर आने लगा मैंने भुलाया था जिसे

वो बड़ा क्या हुआ सर पर ही चढ़ा जाता है
मैंने काँधे पे `कुँअर' हँस के बिठाया था जिसे

एक टिप्पणी भेजें

9 टिप्पणियाँ

  1. कुंवर बेचैन साहब की ग़ज़लें मुझे हमेशा बेचैन कर देती हैं। महत्वपूर्ण साहित्य वही होता है जो अपने पाठक को सोचने के लिये मजबूर कर देता है। यह ग़ज़ल हर पीढ़ी के नौजवानों का ख़ूबसूरत सा चित्रण है। हर मां बाप जब अपने बच्चे के अवांछित व्यवहार की तरफ़ देखते हैं तो कह उठते हैं - उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे।

    इस ग़ज़ल का एक एक शेर बेशकीमती है। मैं कुंवर भाई को लंदन में भी सुन चुका हूं और भारत में भी। एक रात अचानक दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर हुई मुलाक़ात बरसों याद रहेगी। मुझे यह कहते हुए गर्व महसूस होता है कि मैं भी इस अज़ीम शायर के जानने वालों की फ़ेहरिस्त में कहीं शामिल हूं। मेरी पुत्री दीप्ती के विवाह में वेल्स के डा. निखिल कौशिक ने कुंवर भाई का यह गीत सबको सुनाया था - नदी बोली समंदर से, मैं तेरे पास आई हूं........।

    साहित्यशिल्पी को इस ग़ज़ल के लिये धन्यवाद।

    तेजेन्द्र शर्मा
    कथा यू.के. (लंदन)

    जवाब देंहटाएं
  2. उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से
    मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे


    इतनी गहरी और जिंदगी के करीब ग़ज़ल लिखने के लिए dhanyvaad kunvar जी का और aabhaar आपका

    जवाब देंहटाएं
  3. उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से
    मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे

    दे गया घाव वो ऐसे कि जो भरते ही नहीं
    अपने सीने से कभी मैंने लगाया था जिसे

    कुँअर जी का अंदाज ही अलग है।

    जवाब देंहटाएं
  4. मर्मस्पर्शी रचना हेतु साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन एक द्वँद्व ही है इस गज़ल मेँ बहुत मर्मस्पर्शी अहसास हैँ
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  6. जिन्दगी की सच्चाईयों के इतने करीब है यह गजल कि पढ कर एक बार आंखों मे आंसू झिलमिलाने लगते हैं. आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. kya baat hai
    kya baat hai

    kunvarji ko baanchna aur sunna donon hi anand dete hain

    adbhut...abhinav...anupam ghazal !

    KUNVARJI...ABHINANDAN !!!!!

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...