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पृथ्वी हो रही विकल [कविता] - आकांक्षा यादव



रचनाकार परिचय:-


आकांक्षा यादव अनेक पुरस्कारों से सम्मानित और एक सुपरिचित रचनाकार हैं।
राजकीय बालिका इंटर कालेज, कानपुर में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत आकांक्षा जी की कवितायें कई प्रतिष्ठित काव्य-संकलनों में सम्मिलित हैं।
आपने "क्रांति यज्ञ: 1857 - 1947 की गाथा" पुस्तक में संपादन सहयोग भी किया है।

खत्म होती वृक्षों की दुनिया
पक्षी कहाँ पर वास करें
किससे अपना दुखड़ा रोयें
किससे वो सवाल करें

कंक्रीटों की इस दुनिया में
तपिश सहना भी हुआ मुश्किल
मानवता के अस्थि-पंजर टूटे
पृथ्वी नित् हो रही विकल

सिर्फ पर्यावरण के नारों से
धरती पर होता चहुँ ओर शोर
कैसे बचे धरती का जीवन
नहीं सोचता कोई इसकी ओर।

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29 टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छा अकान्छा जी किसी के पास ये सोचने की फुर्शत ही कहाँ है याद तो तब आएगी जब सब ख़त्म हो जायेगा
    सादर
    प्रवीण पथिक

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. पर्यावरण संरक्षण को प्रेरित करना आज की जरुरत है.अन्यथा मानव-जीवन खतरे में पड़ जायेगा.आपकी कविता समयानुकूल है..बधाई !!

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  4. आकांक्षा जी! पर्यावरण को बचाने और लोगों को जागरूक करने की ओर मैं भी जुडा हुआ हैं. साहित्याशिल्पी पर इस सम्बन्ध में आपकी इतनी लाजवाब कविता देखकर टिपण्णी करने से रोक नहीं पाया....बहुत-बहुत आभार आपके इस सदप्रयास के लिए.

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  5. साहित्याशिल्पी पर लम्बे समय बाद आकांक्षा जी की रचना पढ़ रहा हूँ. कम शब्दों में बड़ी बात....हर किसी का प्रयास ही अंतत: रंग लायेगा.

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  6. खत्म होती वृक्षों की दुनिया
    पक्षी कहाँ पर वास करें
    किससे अपना दुखड़ा रोयें
    किससे वो सवाल करें
    .....आज के परिवेश में बेहद सार्थक सवाल उठती कविता..इस पर चिंतन की जरुरत है.आकांक्षा जी को ऐसी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.

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  7. सिर्फ कविता ही नहीं सुन्दर सन्देश भी....बधाई.

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  8. साहित्याशिल्पी पर पहली बार आया हूँ. आकांक्षा यादव जी की लेखनी प्रभावित करती है....

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  9. साहित्याशिल्पी पर पहली बार आया हूँ. आकांक्षा यादव जी की लेखनी प्रभावित करती है....

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  10. यदि अभी नहीं चेते तो धरा को विकल होने से कोई नहीं बचा पायेगा....सभी लोगों को कदम उठाने की जरुरत है.

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  11. लाजवाब कविता....इससे आपके सामाजिक सरोकारों की झलक मिलती है.

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  12. खुले स्थानों पर गन्दगी फैलाना,कचरा डालना और जलाना,प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग करना,भूमिगत जल को गन्दा करना आदि अनेक ऐसे कार्य है जिन पर हम स्वत रोक लगा सकते है!लेकिन हम. ऐसा ना करके सरकार के कदम का इंतजार करते है! आज हम ये छोटे किंतु महत्त्व पूरण कदम उठा कर पर्यावरण सरंक्षण में अपना अमूल्य योगदान दे सकते है !!
    _______________________________
    ....यही है युवा का सन्देश. आप भी शरीक हों !!

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  13. अतिसुन्दर आकांक्षा जी. पर्यावरण पर आपकी कविता पढ़कर मन प्रफुल्लित हो उठा.

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  14. सिर्फ पर्यावरण के नारों से
    धरती पर होता चहुँ ओर शोर
    कैसे बचे धरती का जीवन
    नहीं सोचता कोई इसकी ओर।
    ____________________________
    वर्तमान दौर में पर्यावरण के नाम पर हो रहे मजाक को उकेरती पंक्तियाँ....आपकी कविता भावों से भरी है और विचारों से भी.

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  16. खत्म होती वृक्षों की दुनिया
    पक्षी कहाँ पर वास करें
    किससे अपना दुखड़ा रोयें
    किससे वो सवाल करें
    EXCELLENT
    REALLY, HUM BIRDS KE BARE MEIN NA SOCH KAR SAWARTHI BA GAYE H.
    SHUKRIYA.
    DHANYAVAD.

    जवाब देंहटाएं
  17. आज जरुरत है कि भारत समेत पूरे विश्व को एक पवित्र अभियान से जोड़ते हुए न सिर्फ वृक्षारोपण की तरफ अग्रसर होना चाहिए बल्कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की दिशा में भी प्रभावी कदम उठाने होंगे। तो आइये हम संकल्प लें कि इस दिन हम एक वृक्ष अवश्य लगायेंगे, न सिर्फ लगायेंगे बल्कि इसके फलने-फूलने की जिम्मेदारियों का भी निर्वाह करेंगे।....तभी पृथ्वी विकल होने से बचेगी.

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  18. खत्म होती वृक्षों की दुनिया
    पक्षी कहाँ पर वास करें
    किससे अपना दुखड़ा रोयें
    किससे वो सवाल करें
    EXCELLENT
    REALLY, HUM BIRDS KE BARE MEIN NA SOCH KAR SAWARTHI BAN GAYE H.
    SHUKRIYA.
    DHANYAVAD.
    hpsshergarh@gmail.com
    RAMESH SACHDEVA
    DIRECTOR,
    HPS DAY-BOARDING SENIOR SECONDARY SCHOOL,
    "A SCHOOL WHERE LEARNING & STUDYING @ SPEED OF THOUGHTS"
    SHERGARH (M.DABWALI)-125104
    DISTT. SIRSA (HARYANA) - INDIA
    HERE DREAMS ARE TAKING SHAPE
    +91-1668-230327, 229327

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  19. सुनहरा सन्देश देती सुन्दर कविता.......... आज की ज़रुरत है पर्यावरण की समस्या को समझने की

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  20. कविता के माध्यम से आपने सही बात कही. दुर्भाग्यवश आजकल पर्यावरण कि रक्षा और वृक्षारोपण के नाम पर तमाम NGO और सरकारी विभाग अपनी जेबें भर रहे हैं. उन्हें शायद एहसास नहीं कि जीवन ही नहीं रहेगा तो इस करतूत का क्या करेंगे. आपकी अन्य रचनाएँ पढना चाहूँगा.

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  21. पर्यावरण और उससे जुड़े मुद्दों के प्रति आम धारणा बदलने में साहित्यकार/समाजसेवी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आप कविताओं से यूँ ही अलख जगाती रहें आकांक्षा जी....शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  22. पर्यावरण और उससे जुड़े मुद्दों के प्रति आम धारणा बदलने में साहित्यकार/समाजसेवी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आप कविताओं से यूँ ही अलख जगाती रहें आकांक्षा जी....शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  23. पर्यावरन पर अच्छी रचना... badhai Sweekaare.
    अच्छा लगा आपको पढना...!

    जवाब देंहटाएं
  24. न सावन के झुले होंगें, न बालू के टीले होंगें नदियो के नाम ही होंगें, पथ पथरीले ही होंगें कुछ करें वक्त रहते,अपने लिये गिद्द मंडराते होंगें आकांक्षा जिवन की मिटे, यदि पेड युं ही कटे

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत अच्छी कविता.....सन्देश भी सटीक....पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करके मनुष्य न केवल अपने लिए अपितु भोले-भाले पशु-पक्षियों के लिए भी संकट पैदा कर रहा है......लेकिन स्वार्थी मनुष्य ये कब समझेगा??

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

    जवाब देंहटाएं
  26. आकांक्षा जी,

    कविता एक सवाल उठाती है हमारी सामूहिक जिम्मेवारी पर और उत्तरदेहिता पर। हम सभी महिमा मंडन के संस्कारों से बाहर आ ही नही पा रहे हैं, सिर्फ नारा नही चलेगा, यह जीवन की बात है कुछ करना पड़ेगा हम से हर एक को।

    बधाईयाँ।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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