
डॉ. कुमार विश्वास न केवल बहुत अच्छे कवि व प्रस्तोता हैं अपितु अच्छे विचारक व लेखक भी हैं। "पाखी" पर निरंतर स्तंभ लिखते हुए उन्होंने समसामयिक विषयों पर अपनी बेबाक राय रखी है। साहित्य शिल्पी पर डॉ. विश्वास का नियमित स्तंभ "डॉ. कुमार विश्वास की कलम से..." का आरंभ करते हुए हम हर्षित हैं। साहित्य शिल्पी के पाठक नियमित रूप से डॉ. विश्वास के विचारों से अवगत होते रहेंगे। प्रस्तुत है पहली कड़ी:-
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महीने भर अपुन तो भाई लोगों की चुनाव-चकल्लस में चित्त लगाए रहे। आ पड़ी महानता के नीचे अचकचाए राहुल बाबा, हाशिए पर पड़े-पड़े पैदा हुई कुंठा से फ़नफ़नाए हुए जहरीले हुए वरूण गांधी, मतगणना–पूर्व तक अपने आगत के विषय में मीडिया के अधकचरे सोच से उपजी आश्वस्तिकारक बहसों से आत्म-मुग्ध नरेन्द्र मोदी, मतदाताओं के अचानक बेहद समझदार होने की अप्रत्याशित सूचना से शोचनीय अवस्था में पहुंचे लालू- पासवान, बरसों के संघर्ष से पैदा हुई स्वाभिमानी चमक से लबरेज लाल-सलाम को अंतिम प्रणाम की मुद्रा में पहुंचाती ममता, हीरों और अहंकार से लदी दलितों की दौलतमंद हवाई महारानी, समकालीन राजनीति के निर्लज्जतम पड़ाव पर ठिठकी नवाबी शहर रामपुर में लिखी जा रही शोले-2 की वीभत्स पटकथा। क्या नहीं था भाई? सारे चैनल एक तरफ़, ये सारे खल एक तरफ़। सौ हिन्दी फ़िल्मों के चमत्कारों में भी वो परम मनोरजन नहीं मिलेगा जो इन एक-दो महींनों में इन जोकरों ने पूरी तन्मयता से मंचित किया। ये किसी सस्ते चकलाघर पर हफ़्ता ना पहुंचने से बौखलाई पुलिस के आधी रात के छापे जैसा आदिम नंगई से लिथड़ा कोलाहल था, जिसमें अंदर की भगदड़ जब मतदान और परिणाम की लोकतांत्रिक रोशनी में पहुंची तो ठिठकने की बजाए और बदकलाम व बेहया हो गई।
डॉ॰ कुमार विश्वास का नाम किसी भी हिन्दी काव्य-रसिक के लिये अपरिचित नहीं है। देश के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में गिने जाने वाले डॉ॰ कुमार विश्वास के अब तक दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हुये हैं जिन्हें पाठकों का अपार स्नेह मिला है। ये अपने काव्य-वाचन के अंदाज़ के लिये सभी के चहेते हैं।
पर हमारा प्रणाम उन भारतीय मतदाताओं को, जो बड़े बिजूका-भाव से इन चिड़ीमारों की चैं-चैं देखते रहे, और बटन भर में इन्हें इनकी औक़ात दिखा दी। परिणाम से पहले मुझे अनेक मिले जो वरूण- नक्षत्र की गरमीं में पल-पल पिघलने जा रही भारतीय राजनीति की नई प्रतिमा के दिवा-स्वप्न देख रहे थे और हम से भी आंख फोड़ कर ऐसी ही कल्पना में खोने का धुआंधार तर्कपूर्ण आग्रह कर रहे थे। डर हम भी रहे थे कि कहीं किसी दिन इन्हीं का सत्य हमें अपने सत्य से एकाकार न करना पड़ जाए। फिर खुद को भरोसे में लिया, और सोचा कि ‘चांडाल की फूंक से अगर औलाद बचती हो, तो ऐसी औलाद मरी भली’। एक सामान्य सी बात भाई लोगों को क्यों समझ में नहीं आती कि इस उप-महाद्वीप में किसी भी प्रकार का अतिवाद गूलर की कपास और दीवार की घास जैसा ही है- ना चरने की, ना भरने की। तभी तो इस चुनाव में मतदाताओं ने बंगाल से गुजरात तक राम वाले और हराम वाले- दोनों को ही नागा सम्प्रदाय में पहुंचा दिया। कुछ को तो यह भाष्य अभी तक समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा कैसे हो गया कि रामस्वरूप बीमार हुए और फ़लस्वरूप मर गए। यही तो इस देश का चमत्कार है भईये। राजस्थान की घाघरा- लूंगड़ी वाली अकेली बालिका वधू एकता कपूर की मेट्रो बहुओं और कालजयी सासों के खटोले दलान में बिछा देने के लिए काफ़ी है। कांग्रेसियों की हालत तो परिणाम के समय बारात में न्यौछावर के सिक्के लूटते बच्चों जैसी हो गई। इतनी इफ़रात की उम्मीद तो चाची के किसी चमचे को नहीं थी। गज़ब का भाग्य ले कर उतरी हैं जम्बू-द्वीप की महारानी। उनके दस-नम्बरी नील पद्म-प्रासाद में बैठे बैठे ही क्षेत्र के क्षेत्र विजित हो जाते हैं। उनके क्षत्रप अपने घाव तक नहीं दिखा पाते कि उधर बाहर वाले जनपथ पर उनका महा-मस्तकाभिषेक शुरू हो जाता है। एक घर की गिरह में पड़े इस अद्भुत देश को देख कर सोचती तो वो भी होंगी, कि कहां आ फंसी? इतनी मनुहार और इतनी चक्रवर्ती चापलूसी से बेचारी चौंक- चौंक जाती हैं। और युवराज- उन पर तो पूरी भारत माता हमारी सारी मौसियों सहित बलिहारी है। अमेठी की एक जनसभा में युवराज ने वहां से अपने लगाव का एक किस्सा सुनाया, कि कैसे उनके बचपन में (शारीरिक) एक जले हुए गांव की एक जली हुई झोंपड़ी में बैठी एक जली-भुनी बुढिया ने उन्हें पास बुलाकर चाकलेट खाने को दी थी। मैं तो कवि आदमी ठहरा (‘आदमी’ सुविधानुसार हटा सकते हैं)। इस किस्से का भावार्थ समझ गया कि बाबा उन दिनों पापा के साथ दौरे पर गए थे, और उन्हीं दिनों जले-कुटे हिन्दुस्तान की जली-भुनी अवस्था में भारत माता ग्रामवासिनी ने उन्हें खानदानी चाकलेट के अहर्निश सेवन का आशीर्वाद प्रदान कर दिया था। ठीक ही है जी- मुगलों के समय से ही हम ‘जगदीश्वरोवा- दिल्लीश्वरोवा’ भजने के आदी हैं। तो बाप भी सही थे, और आप भी सही हैं। दरअसल भारतीय राजनीति का यह दिखावटी युवा-उत्कर्ष उतना ही फ़र्जी है जितना भारतीय राजनीति का पत्नियों, प्रेमिकाओं, विधवाओं, रक्षिताओं और वारांगनाओं की बहुलता से भरा नारी-प्रतिनिधित्व। अब स्वर्गीय राजीव गांधी, स्वर्गीय माधव राव सिंधिया, स्वर्गीय राजेश पायलट, स्वर्गीय जितेन प्रसाद, स्वर्गीय सुनील दत्त और प्रभावी रूप से जीवित मुलायम सिंह, वसुंधरा राजे, शरद पवार, नारायण राणे, मुरली देवड़ा, फ़ारूख अब्दुल्ला के कारण अगर राहुल गांधी, ज्योतिरादिय सिंधिया, सचिन पायलट, जतिन प्रसाद, प्रिया दत्त, अखिलेश यादव, दुष्यंत कुमार, सुप्रिया सूले, नीलेश राणे, मिलिंद देवरा और उमर अब्दुल्ला को हम भारतीय युवा राजनीति का वास्तविक हक़दार बना रहे हैं, तो भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी भी हमें रोहन गावस्कर को सौंप देनी चाहिए।
हमारा इस बात पर कोई दुराग्रह नहीं कि राजनीति आपका वंशानुगत कर्म है तो आप क्यूं ना करें। जरूर करें। बल्कि जोर-शोर से करें। लेकिन किसी भी बड़ी परीक्षा में ज़रूरी एक न्यूनतम अहर्ता तो प्राप्त कर लें। फिर ज़रा तपें, मंजें, जूझें, गिरें, निकलें, निखरें और तब वहां बैठने की सोचें जहां लाल बहादुर जैसे मर्द और अटल जी जैसे सहज पहुंचे थे। पर आपको तो जुम्मा-जुम्मा चार दिनों में ही सारे दिग्विजयी जनार्दन चुम्मा-चुम्मा करने लगते हैं। उम्मीद है कि नए कांग्रेसी युवराज की मां उन्हें ‘एन्टी- साईकोफैन्सी’ का टीका लगवाएंगी। ताकि नवजात इन बांझ- बुढियाओं की अतिशय बलईयां-धर्मी बीमारियों से बचा रहे।
पर मजा आ रहा है। रथ वाले इस सब का अरथ पूछ रहे हैं। भगवा-कुल का चिंतन शिविर लगने वाला है। फिर फ़ालतू खोपड़ी खुजा-खुजा कर बखत और बाईट दोनो खराब करेंगे। हारे क्यूं? अरे! इसके लिए इतना हल्कान काहे होना? सब फ़र्जी कारण भी फ़र्जी ही बताएंगे। हारे क्यूं का सीधा- सपाट कारण है- हारे इसलिए भैया कि लोगों ने तुम्हें वोट नहीं दिये, और वो इसलिए जीत गए, कि उन्हें लोगों ने वोट दिये। अब पूछो, कि जीतोगे कैसे? तो भईये, जब बाहरी वोट, आंतरिक खोट और परम लक्ष्य नोट, तीनों से मुक्त हो कर वहीं लौटोगे जहां से चले थे, तो तुम बिना मतदान के ही जीत जाओगे। इसका मतलब ये नहीं कि जो जीते वो इन तीनों बातों से परे है। पर वे जो भी हैं, अपने स्वधर्म पर अडिग है। बरसों से वो स्वार्थी, अवसरवादी, भ्रष्टाचारी, चापलूसों का गुट न होकर गैंग है। संयोग से मुखिया उन्हें वाल्मीकि मिल गया है। तो रामायण मजे से बंच रही है। पर तुम तो निकलते कश्मीर बचाने हो, और पहुंच कंधार जाते हो। राम की खोज में सरयू में गोता लगाते हो और लखनऊ के तट पर कांशीराम लेकर प्रकट होते हो। सार्वजनिक शुचिता और नैतिकता की भागवत बांचते हो, और तुम्हारे कथा-व्यास ही टी वी के कैमरों में चढावे की उल्टी करते पाए जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर बड़े बड़े होर्डिंग्स में तुम्हारे ज़मीनी नेता आसमान की ओर उंगली उठाए दिखते हैं, और देश नीचे से निकल जाता है। शहीद जवानों के ताबूतों से दलाली खाने वाले तुम्हारे संगी- साथियों के लिए तो ‘कफ़न-खसोटे’ वाली गाली भी खाली लगती है। जरा सिखाओ अपने नए पीलीभीती खरगोश को, इस देश में तो जयशंकर प्रसाद जी के चंद्रगुप्त की चाणक्य-छाया से तृप्त, यवन सेनापति सेल्यूकस की विदेशी पुत्री कार्नेलिया भी यही गाती है- ‘अरूण यह मधुमय देश हमारा’।
तो आदरणीय- फ़ादरणीय मजबूत नेता जी, अपने उस नए फ़ार्वर्ड शार्ट-लेग को समझाओ कि राम और रोम को बराबर समझे, और माई और ताई के आंगन वाले झगड़े को दालान का अखाड़ा ना बनाए और वही सब आप भी समझो। तभी अपने नए रंगरूटों को इस बार नगपुर वाले मार्मिक भारतीय गीतों के साथ- साथ यह भी याद करा सकोगे कि-
‘वरूण, यह मधुमय देश हमारा
जहां पहुंच अन्जान क्षितिज को मिलता एक किनारा”
जय जनता जनार्दन!
22 टिप्पणियाँ
कुमार विश्वास जी...
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी के आगे मैँ नतमस्तक हूँ...समझ नहीं आ रहा कि आपके इस आलेख की कैसे और किस हिस्से की तारीफ करूँ?...
एक-एक शब्द अपने आप में ज़बर्दस्त कटाक्ष लिए बैठा है....
आज से पहले कभी इतना अर्थ भरा व्यंग्य पढने को नहीं मिला
adbhut !
जवाब देंहटाएंabhinav !
anupam !
kumarji, anand aagaya.............shabdon se unka saaraa arth aapnee yon nichod kar choos liya hai jaise aaykar wale vyaapariyon ko choos lete hain .........saamyik bhi,saarthak bhi aur rochak bhi, har drishti se yah aalekh prabhavit karta hai __________BADHAAI___________
डॉ. विश्वास का लेखन उनकी मंच उपस्थिति की ही तरह चुटीला लेकिन सारगर्भित है | तमाम राजनैतिक संगठनों को आड़े हाथों लिया और अपनी निराली भाषा से उसे पठनीय और रोचक भी बनाया ... सुन्दर आलेख |
जवाब देंहटाएंराजनीति की कमजोरियों पर तीक्ष्ण प्रहार करता यह वैचारिक लेख अच्छा लगा |
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत उदाहरण सटीक हैं |
अवनीश तिवारी
bahut khoob.....
जवाब देंहटाएंचुनाव की चर्चा बेहतरीन है। पर इस शब्द पुराण में से विश्वास की धार में आने से माया, लालू, मुलायम जैसे पी एम इन वेटिंग वाले कैसे बचे रह गए, जो जो रह गए उनके साथ ये सख्त नाइंसाफी है। उनको भी व्यंग्य की इस साफी का पान कराना अनिवार्य था। पान न करते तो स्नान तो कराया ही जा सकता था। चाहे जबर्दस्ती ही सही ... खैर ...
जवाब देंहटाएंस्नान करने से पूर्व की दिगंबरता से बचने के लिए पान ही बेहतर रहता। इससे ओठों पर खूनी चमक जो उभर उभर आती। पान और स्नान के इस फेर से जो जो अंतर्ध्यान रहे हैं, वोटर की नजर और मार से वे भी बच नहीं सके हैं। वोटर की टर टर अब सिर्फ ध्वनि भर नहीं है बल्कि टंकार है, जिसने कईयों को लाचार कर दिया है। वे सिर धुन रहे हैं, देश की कुर्सियों के साथ घुन के माफिक चिपके हुए हैं।
विश्वास ने अपने लाजवाब शब्दों के जरिए इनके कानों में सीसा उड़ेलने का जो प्रयास किया है, वो काबिले तारीफ है।
कलम की कातिल जवानी यही है, यही शब्दों की रवानी है। इसी में छिपी बसी कई बादशाहों के खाक होने की छिपी कहानी है।
behtreen ........bahut achchh likha hai kumar ji ......
जवाब देंहटाएंVishwas Sir, Aapki kavitain to bahut padhi.... firs time koi article padha hain...aur 3 baar padha tab jaakar theek se samjha.....rajnik haal ka hasy aur vyang ke saath sunder sateek aur rochak prastutikarn .......mujhe nahi lagta ki opposition ko haar ki sameeksha ki jaroorat hain..apne article ki copy bhej digiye wajah clear ho jayegi... unnecessary bechare time waste karegay reason dhoodne mein :-)
जवाब देंहटाएंsir ji ..hattts ooff for this, ...altimate suparb ...rajniti ke mooh par ek karara jhapad ..or vo bhi itne badhya tarike se ..mind bowing ...jitni baar bhi padha ..kam padha ...
जवाब देंहटाएंaapne to neta logo ko chod diya
जवाब देंहटाएंMasha Allaha esa lagta hain aapne shabdho k roop main Missile daagi hain. aapka shabd roopi missile dagne main koi saani nahi hain. esa lagta hain jaise khud sakchhatkaar Sarswati ji aapke hatho ko nirdesh de rahi thi jab aap ye likh rahe the aur bramha ji aapko rajniti ka bramh gyan de rahe honge.
जवाब देंहटाएंAaapke shabd roopi aag k gole man ko romanchit kar dete hain mano khud Agmi Dev ne Avtar le liya ho aapke shabdo k roop main.
Ham aapke iss Adamiya sahas k abbhari hain aur asha karte hain k hume Bhabisaya main aapke ye aag k gole roopi shabd Jwalamookhi bankar humare Samne aaye..humare Soye huain Gyan ko Jagaye.
Hum aapke samne adnne se prani hain hum aap sab logo ko prarit karte ho ...mera thoda ek chhota sa prayas aapko prarit karne ka ek Kavita Dwara jo maine apne Balykaal main padhi thi.....prastut hain..../
Veer tum Badhe chalo
Dheer tum badhe Chalo
samne Pahadho,
chahe singh Ki dahad ho,
veer tum bade chalo,
Dheer tum badhe chalo,
Agni Dadhak- Dhadak,
Jawala bhadk-Bhadak,
tum sithil raho
tum adde raho ,
tum daro nahi
tum maro nahi ,
manjil se pehle rooko nahi .
veer tum badhe chalo,
dheer tum bhadhe chalo.
Masha Allaha esa lagta hain aapne shabdho k roop main Missile daagi hain. aapka shabd roopi missile dagne main koi saani nahi hain. esa lagta hain jaise khud sakchhatkaar Sarswati ji aapke hatho ko nirdesh de rahi thi jab aap ye likh rahe the aur bramha ji aapko rajniti ka bramh gyan de rahe honge.
जवाब देंहटाएंAaapke shabd roopi aag k gole man ko romanchit kar dete hain mano khud Agmi Dev ne Avtar le liya ho aapke shabdo k roop main.
Ham aapke iss Adamiya sahas k abbhari hain aur asha karte hain k hume Bhabisaya main aapke ye aag k gole roopi shabd Jwalamookhi bankar humare Samne aaye..humare Soye huain Gyan ko Jagaye.
Hum aapke samne adnne se prani hain hum aap sab logo ko prarit karte ho ...mera thoda ek chhota sa prayas aapko prarit karne ka ek Kavita Dwara jo maine apne Balykaal main padhi thi.....prastut hain..../
Veer tum Badhe chalo
Dheer tum badhe Chalo
samne Pahadho,
chahe singh Ki dahad ho,
veer tum bade chalo,
Dheer tum badhe chalo,
Agni Dadhak- Dhadak,
Jawala bhadk-Bhadak,
tum sithil raho
tum adde raho ,
tum daro nahi
tum maro nahi ,
manjil se pehle rooko nahi .
veer tum badhe chalo,
dheer tum bhadhe chalo.
Bhai sab,
जवाब देंहटाएंSoch raha hun ki isme se kuchh chura kar, tuk milakar, manchiy kaviyo ko bechne ke liye tender notice publish kara dun.
Shakti
विश्वास जी क्या शाल में लपेट के जूते मारे है. दिल खुश हो गया . असल में कई जगह जूता शाल से बहार आ गया , वो तारीफे काबिल है.
जवाब देंहटाएंjiss shiddat aur khoobsurti se aapne iss vyang ko kagaz par ukera hai....woh hame vartmaan lachar vyavastha ke baare main kuch na kuch sonchne par majboor kar deta hai..................aur aapko ek prasidh kavi ki paridhi se nikaal kar ek sahaj,sulabh, sampoorna sahityakaar ke roop main isthapit karta hai,jo gyata hai,shabdon ka jaadugar hai,sammohan aur sadharnikaran ka swami hai........
जवाब देंहटाएंsahitya shilpi ke pahle lekh ke liye bahut bahut saaduvaad.......aane waale samay main aapki lekhni ek nayi sahitya kranti layegi aisa vishvas hai.............jaisa main hamesha aapke liye kahti hoon ki aapka gadhya lekhan unn sabhi aalochakon ke liye ek karara jawab hai jo aapko "KANTH KA DHANI" kavi matr batane ki bhool karte hain........aapke lekhan ke utrottar vikas ki kamna ke saath....kisi kaaljayi rachna ki satat pratiksha main
anant shubhkamnaayen
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं" जय हो डॉ कुमार विश्वास "
जवाब देंहटाएंचुनावों की समीक्षा करते हुए लिखे गए पिछले १ माह मे लिखे गए सभे स्तंभों लेखों और सम्पादकीय टिप्पणीयों को एक तरफ रखें और कुमार के इस लेख को एक तरफ तो यकीनन लगता है कि कुमार लिखित इस लेख का पलडा भारी है. मैं कोई दीवाना कहता है के अति प्रसिद्ध लेखक और मंच के सर्व प्रिय कवि डॉ कुमार विश्वास का बहुत पुराना प्रशंसक हूँ आज उन्होंने इस लेख के माध्यम से हमारी आँखे खोल दी हैं और दिखाया है कि अर्जुन अगर धनुष वान नहीं चला कर तलवार से लडे तो भी एक योद्धा के रूप मैं बेजोड़ होगा. इस लेख मे शब्दों का प्रवाह, कथ्य की धार और भाषा का श्रृंगार है. राजनीति की गहरी समझ और उसका चिर मूल्यों के साथ जुडाव है.
हरि प्रसाद शर्मा ( ०९८२८०१८५८६ )
as usual sir...
जवाब देंहटाएंvyangya agar sarthak ho to uska koi saani nahi...
aapne jis sahajta se bhartiya rajniti ke is katu satya ko paribhashit karne me apni lekhni ka yogdaan kiya hai uske liye ham sabhi bharatwasi aap k aabhaari hain..
अमेठी की एक जनसभा में युवराज ने वहां से अपने लगाव का एक किस्सा सुनाया, कि कैसे उनके बचपन में (शारीरिक) एक जले हुए गांव की एक जली हुई झोंपड़ी में बैठी एक जली-भुनी बुढिया ने उन्हें पास बुलाकर चाकलेट खाने को दी थी। मैं तो कवि आदमी ठहरा (‘आदमी’ सुविधानुसार हटा सकते हैं)। इस किस्से का भावार्थ समझ गया कि बाबा उन दिनों पापा के साथ दौरे पर गए थे, और उन्हीं दिनों जले-कुटे हिन्दुस्तान की जली-भुनी अवस्था में भारत माता ग्रामवासिनी ने उन्हें खानदानी चाकलेट के अहर्निश सेवन का आशीर्वाद प्रदान कर दिया था।
जवाब देंहटाएंkya khoob kaha aapne...
अब स्वर्गीय राजीव गांधी, स्वर्गीय माधव राव सिंधिया, स्वर्गीय राजेश पायलट, स्वर्गीय जितेन प्रसाद, स्वर्गीय सुनील दत्त और प्रभावी रूप से जीवित मुलायम सिंह, वसुंधरा राजे, शरद पवार, नारायण राणे, मुरली देवड़ा, फ़ारूख अब्दुल्ला के कारण अगर राहुल गांधी, ज्योतिरादिय सिंधिया, सचिन पायलट, जतिन प्रसाद, प्रिया दत्त, अखिलेश यादव, दुष्यंत कुमार, सुप्रिया सूले, नीलेश राणे, मिलिंद देवरा और उमर अब्दुल्ला को हम भारतीय युवा राजनीति का वास्तविक हक़दार बना रहे हैं, तो भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी भी हमें रोहन गावस्कर को सौंप देनी चाहिए।
bilkul sahi balki main to kahta hun arjun tendulkar ko.... jyada yogya hain (kyonki sachin jo jyada yogya the...)..
hamesha ki tarah acchi rachna aapki.. shukriya...
bhai kumar visvas ji
जवाब देंहटाएंdarasal ye neta log hai hi isee ke kabil. aapne bahut thik hi inako lapeta hai. lekhan par meri badhayee!
santram pandey
dy.Resident Editor
Dainik Prabhat
MEERUT,UP
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