

तपती धरती खोज रही है
सीने में दरार लिए,
बाट देख रहे सभी किसान
आँखों में इक आस लिए;
कहाँ गए तुम काले मेघ?
सूखी खेती देख - देख कर
नयनों में जल भरने लगा है,
कैसे जलेगा घर का चूल्हा
सोंच - सोंच मन डरने लगा है;
कब आओगे काले मेघ?
नदी - नहर सब थम से गए हैं
वृक्ष सभी कुम्हलाये हुए,
कैसे चैन पड़े प्राणी को
बिना तुम्हारे आये हुए;
तरस भी खाओ काले मेघ!
अब जो देर हुई आने में
यम के दूत डराने लगेंगे,
पशुओं के बाडों के ऊपर
गिद्ध चील मंडराने लगेंगे
सुनो गुहार हे काले मेघ!
13 टिप्पणियाँ
आरे बादल काले बादल.........
जवाब देंहटाएंमॉनसून के इंतजार में बादल को मनाने की कोशिश अच्छी लगी..........
ek baar fir badhai ho aunty!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर !
जवाब देंहटाएं-नितिन
लगता है आपकी पुकार ऊपरवाले ने सुन ली है...यहाँ दिल्ली में तो बरखा ने आने के संकेत दे दिए हैँ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबधाई !सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंआपकी गुहार ही शायद
तानसेन ने मल्हार के रूप मे
गाई होगी तब
सिन्धु पर किरण के प्रभाव ने
मेघ को जन्म दिया था
बादलों ने आपकी पुकार सुन ली...वो आ रहे हैं...इतनी सुन्दर कविता जो उन्हें पुकार रही है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!!
जवाब देंहटाएंयहाँ अरुणाचल में तो अब मेघ ही मेघ हैं :)
जवाब देंहटाएंआज तो किरण जी आपकी फरियाद सुन ली गयी है फरीदाबाद में भी सुबह से बारिश हो रही है।
जवाब देंहटाएंकाले मेघों की प्रतीक्षा तो सभी को है.............
जवाब देंहटाएंअच्छे भाव से सजी कविता
बहुत अच्छी कविता, बधाई।
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जवाब देंहटाएंबधाई एक उत्कृष्ट रचना
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.