
सोच रही हूँ कि क्या करूँ? करने के लिये यूँ तो बहूत कुछ है, पर जब से बीमारी ने घेरा है, चाह कर भी कुछ नही कर पा रही। एक वो दिन थे जब लगता काश एक दिन इन सभी कामो से छुट्टी मिल जाती... और भगवान जी ने सुन ली, दे दी छुट्टी| वो भी एक दिन की नही, लम्बी छुट्टी| अब यह छुट्टे काटे नही कट रही| भगवान जी इतना भी नही सुनना था ना मेरी बात| मै तो नादान थी, मुर्ख थी, बेवकूफ थी.. माफ कर दीजिये... और यह छुट्टी वापस ले लीजिये। मुझे नही चाहिये ऐसी छुट्टी.. भगवान जी प्लीज... मान जाईये ना मेरी बात.. जैसे पिछली बार माने थे... प्लीज भगवान जी....
गुड़िया ओ गुड़िया पापा जी बुला रहे हैं... निंद्रा, नही नही तंद्रा या फिर सोच जो कह लीजिये पर ब्रेक लग गया|जैसे तैसे उठने कि कोशिश कर रही थी कि कमरे मे पापा जी खुद आ गये ज्यूस का गिलास लिये|
"नही नही लेटी रहो... अभी आराम करना जरूरी है, लो ज्यूस पियो"
"पापा जी मैं तो आ ही रही थी... लेटे लेटे मै परेशान हो गयी हूँ" पर पापा जी ने एक नही सुनी| बिस्तर पर ही ज्यूस पीना पड़ा| थोड़ी देर बाद वो चले गये|
एक बार फिर से मै और मेरी तन्हाई रह गये कमरे मे, पर इस बार थोड़ी से खुशी थी| पापा जी कितने प्यार से ज्यूस लाये थे मेरे लिये| कितने प्यार से पिलाया, जैसे मै छोटी से बच्ची हूँ कोई ३-४ साल की और पुचकार पुचकार के मुझे ज्यूस पिलाया जा रहा हो... वाह... यह एहसास भी अद्म्भुत है.. शुक्रिया भगवान जी|
8 टिप्पणियाँ
मुझे मालूम है कि यह लघुकथा
जवाब देंहटाएंलघु भी है और सच्ची भी
गरिमा को ईश्वर दे इतनी शक्ति
वो हो जाए पहले से भी अच्छी।
बहुत बढ़िया लगी कथा. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से मै और मेरी तन्हाई रह गये कमरे मे. ये पक्ति मन को छूती है और सच बयान करती है
जवाब देंहटाएंसुन्दर अहसास। भावुक करने वाली रचना।
जवाब देंहटाएंbahut achhi tarh se vhvnayo ko prdrasit kiya hai
जवाब देंहटाएंdhanybaad
हर एक को कभी ना कभी ऐसे घटनाक्रम से गुज़रना पड़ता है....
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी
man bheeg gaya hai bhav se
जवाब देंहटाएंaapki laghukatha k prabhaav se
लगभग मिलते जुलते विषय पर आपकी एक और लघुकथा साहित्य शिल्पी पर पढी थी। यह भी उतनी ही सशक्त कहानी है।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.