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तुम्हारे बाद भी [पिता को समर्पित एक कविता] - धीरेन्द्र सिंह

मैं वाकिफ हूं
नाबीना तो नहीं हूं
तुम्हारे हांथों को देखा है मैंने

रोज धूप में सिके सिकाए हाँथ
जब सर में फेरते हो तो
पथरीली आँखों को बोझिल कर जाते हो

सुबह-सुबह की वो गरमा-गरम चाय
तुम्हारे बाद भी जीभ जलाती रहेगी

साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-


धीरेन्द्र सिंह का जन्म १० जुलाई १९८७ को छतरपुर जिले के चंदला नाम के गाँव में हुआ था| आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा चंदला में ही पूरी की। वर्तमान में आप इंदौर में अभियन्त्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं| कविताएँ लिखने का शौक आपको अल्पायु से ही था, किन्तु पन्नो में लिखना कक्षा नवीं से प्रारंभ किया| आप हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में रचनाएं लिखते हैं। आपका 'काफ़िर' तखल्लुस है|

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15 टिप्पणियाँ

  1. रोज धूप में सिके सिकाए हाँथ
    जब सर में फेरते हो तो
    पथरीली आँखों को बोझिल कर जाते हो

    ..........मर्म स्पर्शी

    शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं वाकिफ हूं
    नाबीना तो नहीं हूं
    तुम्हारे हांथों को देखा है मैंने

    ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं।
    थोड़ी और बड़ी होती तो मज़ा आ जाता।

    बधाई स्वीकारें।
    -विश्व दीपक

    जवाब देंहटाएं
  3. रोज धूप में सिके सिकाए हाँथ
    जब सर में फेरते हो तो
    पथरीली आँखों को बोझिल कर जाते हो

    अच्छे मनोभाव।

    जवाब देंहटाएं
  4. छोटी किंतु अच्छी

    अनुज कुमार सिन्हा

    भागलपुर

    जवाब देंहटाएं
  5. रोज धूप में सिके सिकाए हाँथ
    जब सर में फेरते हो तो
    पथरीली आँखों को बोझिल कर जाते हो
    ...
    ..
    .

    पिता के लाड़ सी अधूरी रचना...

    खबरी

    जवाब देंहटाएं
  6. कविता बहुत अच्छी है इसे इस रौ में आगे बढाईये। मुझे भी यह अभी अधूरी लग रही है।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुबह-सुबह की वो गरमा-गरम चाय
    तुम्हारे बाद भी जीभ जलाती रहेगी
    सच में मित्र बहुत ही बेहतरीन कविता वो दिन भुलाये ही नहीं जा सकते

    जवाब देंहटाएं
  8. pathrili aankhon ko bojhil karne ki baat seedhe dil me utar gayi
    waah waah waah
    kya baat hai !

    जवाब देंहटाएं
  9. nishabd kar diya dheerendra ji aapne to ... itni shashakt rachna padhne ke baad ab kya kahun .. mere paas shabd nahi hai ...

    salaam karunga aapki lekhni ko ...


    vijay

    जवाब देंहटाएं
  10. रोज धूप में सिके सिकाए हाँथ
    जब सर में फेरते हो तो
    पथरीली आँखों को बोझिल कर जाते हो

    दिल को choone wali कविता.............

    जवाब देंहटाएं
  11. PRIY DHEERENDRA JEE,
    AAPKEE KAVITA"TUMHARE
    BAAD BHEE" CHHOTEE HOTE HUE BHEE
    BADEE LAGEE HAI.MEREE BADHAAEE
    SWEEKAAR KIJIYE.

    जवाब देंहटाएं
  12. priy jyeshth paathako aapne meri rachna saraahi.......bahut-ahut aabhari hun...

    pran ji aapne bhi saraaha aapka bhi bahut ahut shukriya....

    जवाब देंहटाएं
  13. धीरेन्द्र जी आपकी रचनाएँ हमेसा से ही एक गहराई लिए होती है जहाँ तक पहुँच पाना सभी के बस की बात नहीं !आपकी वही छवि इस रचना में भी है,बहुत कम लोग है जो पिता के बारे में लिखते है आपने इस रचना से पिता के प्रेम और उनकी नयी छवि पेस की है जिसके लिए आपको उन सभी लोगो की तरफ से धन्यवाद् जो पिता से प्रेम करते है हम आपसे आंगे भी ऐसी कामना रखते है! आपका मित्र -शिवम् द्विवेदी

    जवाब देंहटाएं
  14. सँक्षिप्त किँतु, ह्र्दयग्राही रचना
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं

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