
कच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है
छ्त सर पे गिर न जाए सहमी हुई नज़र है
सतपाल ख्याल ग़ज़ल विधा को समर्पित हैं। आप निरंतर पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होते रहते हैं। आप सहित्य शिल्पी पर ग़ज़ल शिल्प और संरचना स्तंभ से भी जुडे हुए हैं तथा ग़ज़ल पर केन्द्रित एक ब्लाग का संचालन भी कर रहे हैं। आपका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
तपती हुई ज़मीं की सुन ली है आसमाँ ने
बरसा है अपनी धुन मे हर कोना तर-ब-तर है
भीगे लिबास में से झलका बदन जो उसका
उसपे सब आशिकों की ठहरी हुई नज़र है
ग़म की तपिश से यारो थी सुर्ख़ लाल आँखें
ठंडक मिली है दिल को कुछ आँख आज तर है
टूटा है कहर उसपे सैलाब में घिरा जो
उसका ख़याल किसको जो शख़्स दर-ब-दर है.
10 टिप्पणियाँ
कच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है
जवाब देंहटाएंछ्त सर पे गिर न जाए सहमी हुई नज़र है
तपती हुई ज़मीं की सुन ली है आसमाँ ने
बरसा है अपनी धुन मे हर कोना तर-ब-तर है
वाह क्या खूब लिखा है सतपाल जी ने...............इतने अच्छे लाजवाब शेर लिखे हैं बस बार बार पढने को जे चाहता है. मिट्टी की सोंधी सोंधी गंध नज़र आती है इस ग़ज़ल में
सतपाल जी आपकी ग़ज़लें मैं विशेष रूप से पसंद करती हूँ। आप सरल भाषा में बडी बातें लिखते हैं।
जवाब देंहटाएंNice Gazal.
जवाब देंहटाएंalok Kataria
कच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है
जवाब देंहटाएंछ्त सर पे गिर न जाए सहमी हुई नज़र है
बहुत अच्छे सतपाल जी।
हमेशा की तरह एक अच्छी ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी बाकि सब अच्छा है , परंतु आशिकों की जगह गिद्धों का प्रयोग करना वाजिब था, क्योंकि दर्द के घाव से आशिक दूर रहते हैं। ये तो सिर्फ मुझे मौत के मंजर नजर आते है। फिर भी लोग कभि खुशी कभि गम गाते हैं।
जवाब देंहटाएंकच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है
जवाब देंहटाएंछ्त सर पे गिर न जाए सहमी हुई नज़र है
वाह..... सतपाल जी |
हर शेर में बात है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ग़ज़ल है, बधाई।
जवाब देंहटाएंकच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है
जवाब देंहटाएंछ्त सर पे गिर न जाए सहमी हुई नज़र
वह भाई वह क्या बात है बहुत खूब
saadar
praveen pathik
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.