HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

चांऊग शी कांऊ जूं चीं चीं [व्यंग्य] - आलोक पुराणिक

स्वतंत्रता दिवस बीत चुका था। सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा-टाइप देशभक्ति कैसेट फिर से स्टोर में चले जाने चाहिए थे, कायदे से। पर नहीं ऐसा नहीं हुआ।

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा- एक गोरा बंदा गाना टाइप गा रहा था।

रचनाकार परिचय:-

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं तथा अंतर्जाल के साथ-साथ पिछले कई वर्षों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से स्तंभ लिख रहे हैं।



मैंने कहा भईया अच्छा है हिंदोस्तां, पर तू क्यों गा रहा है। यह तो हमें गाना चाहिए। पर फिलहाल गाने में असमर्थ हैं-क्योंकि पानी नहीं आया है तीन दिनों से, सो नहा नहीं पाये हैं। और सो नहीं पाये हैं, क्योंकि बिजली नहीं है सात दिनों से। पूरे मुहल्ले का बिजली-तार चोरी हो गया है, बिजली अफसरों के नेतृत्व में। इसके बावजूद हिंदोस्तां हमारा बहूत अच्छा है,क्योंकि होने को तो यह पाकिस्तान या बंगलादेश या श्रीलंका भी हो सकता था या युगांडा या सोमालिया भी-मैंने एक साथ सवाल, स्पष्टीकरण गोरे के सामने रखा।

गोरे ने बताया कि वह नोकिया मोबाइल कंपनी का मार्केटिंग मैनेजर है, जित्ते हैंडसेट उसकी कंपनी इंडिया में बेच चुकी है, उतनी तो उसके देश की कुल पापुलेशन भी नहीं है।

गोरे की बात में दम है। जिन देशों में पापुलेशन कंट्रोल हो गया, वहां मोबाइल की सेल डाऊन हो गयी।

थैंक्स टू इंडियन्स-जितनी आबादी दिल्ली के आठ-दस मुहल्लों की मिलाकर है, उतनी आबादी एक पूरे देश की है-फिनलैंड की, करीब पैंतालीस लाख, नोकिया कंपनी का देश।

पापुलेशन कंट्रोल हो गयी होती तो फिर इस कंपनी के लिए भारत सारे जहां से अच्छा नहीं रहता। पापुलेशन कंट्रोल नहीं हुई, सो सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हो लिया।

चांऊग शी कांऊ जूं चीं चीं –एक चीनी टाइप बंदा कह रहा है।

इसका मतलब है –सारे जहां से अच्छा से हिंदोस्तां हमारा-चीनी बंदा लक्ष्मी-गणेश का मार्केटिंग मैनेजर है, उन वाली गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों का, जो चीन से इंडिया लायी गयी हैं, दीवाली पर बेचने के लिए।
पर ये माल इंडिया आ कैसे गया-मैं चीनी से पूछ रहा हूं।
पुलिस, स्मगलर कोआपरेशन से-वह बता रहा है।

इंडिया में पब्लिक भले ही शिकायत कर ले कि पुलिस सहयोग नहीं करती, पर स्मगलर कभी शिकायत नहीं करते कि पुलिस का कोआपरेशन नहीं मिलता। अगर पुलिस कोआपरेटिव नहीं होती, तो बताइए कि क्या चीनियों के लिए हो सकता था-सारे जहां से हिदोस्तां हमारा।

नहीं ना।

इधऱ मैं सोच रहा हूं कि फिनलैंड, चीन वालों के जितना अच्छा है हिंदोस्तान, उतना हमारे लिए क्यों नहीं हो पाता।

एक टिप्पणी भेजें

9 टिप्पणियाँ

  1. अलोक पुराणिक जी,

    एक अच्छे व्यंग्य के लियें
    आपको बधाई......

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब आलोकजी।

    चुटीले व्‍यंग्‍य के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. चाऊ चिंग फ़ू फ़ू शी शी हू हू / यरा ल्के ब ज्श्ग़्य ज़अज ज्स व्स्फ़्य ज्स न्खि न्ज्न्ज़्ऩ्क ज्ज्सक ज्सिअस म्ज्च व्ह इयि ,़,स;स़़

    एक निरापद टिप्पणी

    जवाब देंहटाएं
  4. आलोक जी के आलेख में व्यंग्य की तीखी धार के साथ एक गंभीर प्रश्न भी ...... क्या यह तीर कभी निशाने पर लगेंगे ..... ?

    जवाब देंहटाएं
  5. सही और जलता हुआ मुद्दा उठाया है आलोक जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छा व्यंग्य है, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. hindustaniyon ki fitrat hai dikhawa karneki dapni sabhyata ko chhod kar paschatya sabhyata ko apnane ki is khani ke madhyam se apne is fitrat par achha vyangya kiya hai

    जवाब देंहटाएं
  8. एक और सुन्दर व्यंग्य हमेशा की तरह.

    जवाब देंहटाएं
  9. bahut nik ,swasthya wyang aur prek bhi .realy mujhe apaka wyang rachana pathene ke bad apap se esya utppan ho jata hai.........kiyo ki..........

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...