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आस्था और क्षणिकायें [कविता] - राजीव रंजन प्रसाद


आस्था -१

मुझे गहरी आस्था है तुम पर
पत्थर को सिर झुका कर
मैने ही देवत्व दिया था
फिर
तुम तो मेरा ही दिल हो..

रचनाकार परिचय:-


राजीव रंजन प्रसाद का जन्म बिहार के सुल्तानगंज में २७.०५.१९७२ में हुआ, किन्तु उनका बचपन व उनकी प्रारंभिक शिक्षा छत्तिसगढ राज्य के जिला बस्तर (बचेली-दंतेवाडा) में हुई। आप सूदूर संवेदन तकनीक में बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल से एम. टेक हैं। विद्यालय के दिनों में ही आपनें एक पत्रिका "प्रतिध्वनि" का संपादन भी किया। ईप्टा से जुड कर उनकी नाटक के क्षेत्र में रुचि बढी और नाटक लेखन व निर्देशन उनके स्नातक काल से ही अभिरुचि व जीवन का हिस्सा बने। आकाशवाणी जगदलपुर से नियमित उनकी कवितायें प्रसारित होती रही थी तथा वे समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुईं। वर्तमान में आप सरकारी उपक्रम "राष्ट्रीय जलविद्युत निगम" में सहायक प्रबंधक (पर्यावरण) के पद पर कार्यरत हैं। आप "साहित्य शिल्पी" के संचालक सदस्यों में हैं।

आपकी पुस्तक "टुकडे अस्तित्व के" प्रकाशनाधीन है।


आस्था -२

हमारे बीच बहुत कुछ टूट गया है
हमारे भीतर बहुत कुछ छूट गया है
कैसे दर्द नें तराश कर बुत बना दिया हमें
और तनहाई हमसे लिपट कर
हमारे दिलों की हथेलियाँ मिलानें को तत्पर है
पत्थर फिर बोलेंगे
ये कैसी आस्था?

आस्था -३

सपना ही तो टूटा है
मौत ही तो आई है मुझे
जी नहीं पाओगे तुम लेकिन
इतनी तो आस्था है तुम्हे
मुझपर..

आस्था -४

पागल हूं तो पत्थर मारो
दीवाना हूँ हँस लो मुझपर
मुझे तुम्हारी नादानी से
और आस्थाये गढनी हैं...

आस्था -५

तुमनें
बहते हुए पानी में
मेरा ही तो नाम लिखा था
और ठहर कर हथेलियों से भँवरें बना दीं
आस्थायें अबूझे शब्द हो गयी हैं
मिट नहीं सकती लेकिन..

आस्था -६

मेरे कलेजे को कुचल कर
तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?
मेरे प्यार
मेरी आस्थायें सिसक उठी हैं
इतना भी यकीं न था तुम्हें
कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें
कलेजा चीर कर
तुम्हें फूलों पर रख आता..

एक टिप्पणी भेजें

32 टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढि़या एवं शानदार।

    राजीव को बधाई।
    यह संवेदनशीलता बनी रहे। इसीके दम पर तो दुनियां बरक़रार है।

    जवाब देंहटाएं
  2. एक मिसरा याद आ गया कि "सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा"।
    आस्था मानवीय संवेदनशीलता का एक अहम पहलू है। आपने इसके विभिन्न रूपों को बहुत सुंदर शब्दों में पिरोया है। बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी आस्थायें सिसक उठी हैं
    इतना भी यकीं न था तुम्हें
    कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें
    कलेजा चीर कर
    तुम्हें फूलों पर रख आता..

    गहरे उतर कर कहा है।

    जवाब देंहटाएं
  4. तुमनें
    बहते हुए पानी में
    मेरा ही तो नाम लिखा था
    और ठहर कर हथेलियों से भँवरें बना दीं
    आस्थायें अबूझे शब्द हो गयी हैं
    मिट नहीं सकती लेकिन..

    सभी क्षणिकायें बहुत अच्छी हैं। बधाई राजीव जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. पत्थर फिर बोलेंगे
    ये कैसी आस्था?
    क्षणिकाओं का सही आनंद आया।

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरे कलेजे को कुचल कर
    तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?
    मेरे प्यार
    मेरी आस्थायें सिसक उठी हैं
    इतना भी यकीं न था तुम्हें
    कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें
    कलेजा चीर कर
    तुम्हें फूलों पर रख आता..

    कविता नें सिहरा दिया। मन को छू लेने वाली क्षणिकाये हैं। सभी अच्छी।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी क्षणिकयें हैं, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. राजीव जी ....

    कमेन्ट थोडी देर बाद करूँगा ... आपके मन की इस छवि को हमने अभी तक देखा न था... थोडा डूबने दीजिये ..फिर लिखता हूँ ...कुछ आपकी इस बेमिसाल अभिव्यक्तियों पर.....

    आपका
    विजय

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर प्रेम क्षणिकायें हैं। बिम्ब बहुत सुन्दर और नये हैं।

    हमारे बीच बहुत कुछ टूट गया है
    हमारे भीतर बहुत कुछ छूट गया है
    कैसे दर्द नें तराश कर बुत बना दिया हमें
    और तनहाई हमसे लिपट कर
    हमारे दिलों की हथेलियाँ मिलानें को तत्पर है
    पत्थर फिर बोलेंगे
    ये कैसी आस्था?

    जवाब देंहटाएं
  10. राजीव जी आपकी अपनी खासियत से अलग कविता है। बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  11. राजीव जी,

    आस्था के विभिन्न रूप दिलकश हैं. संवेदनशील लेखन के लिये बधाई

    जवाब देंहटाएं
  12. पंकज सक्सेना23 जून 2009 को 12:37 pm बजे

    आस्था पर सारी रचनायें पसंद आयीं।

    जवाब देंहटाएं
  13. आस्थायें अबूझे शब्द हो गयी हैं
    मिट नहीं सकती लेकिन......

    सभी क्षणिकाएं पाठक से एक सहज सा सम्बन्ध और संवाद स्थापित कर रही हैं जिस के लिए ना पाठक ना कविता को ही को प्रयास करना पड़ रहा है | काफी वृहद् स्पेक्ट्रम है इस प्रस्तुति का |

    मुझे तुम्हारी नादानी से
    और आस्थाये गढनी हैं...
    बड़ी मासूम सी चुनौती लगी ... :-)

    जवाब देंहटाएं
  14. आस्था और क्षणिकाएं
    राजीव जी ने अपनी रचना 'आस्था' में शब्दों के माध्यम से एक ऐसी पीड़ा को व्यक्त किया है जिसे वही अनुभव कर सकता है जिसे यह पीड़ा मिली है.
    ' हमारे भीतर बहुत कुछ टूट गया है
    हमारे भीतर बहुत कुछ छूट गया है
    कैसे दर्द ने तराश कर बुत बना दिया हमें'
    आस्था के किले में हम स्वयं को कितने निश्चिंत और सुरक्षित महसूस करते हैं, परन्तु जब आस्था टूटती है तो यह मजबूत किला ताश के महल की तरह ढह जाता है
    और रह जाती है एक मृतप्राय जिन्दगी अपनी अभिशप्त साँसें जीने के लिए.अत्यंत सार्थक अभिव्यक्ति .
    किरण सिन्धु .

    जवाब देंहटाएं
  15. Hi Rajive

    Tumharey room anek haiN aur sabhi roopoN mein tum ne kamaal haasil kiya hai. Kavi, aalochak, Blogger! excellent. Tumhari kavitaeiN Modern kavita ka khoobsoorat namoona hain. Lekin keval vichar nahin, in kavitaoon mein Human Sensitivity zabardast hai.

    Tejendra Sharma
    Katha UK, London

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  16. मन की बेलगाम संवेदनाओं को लाजवाब अभिव्यक्ति दी है........... बहूत ही सुन्दर लिखा है

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  17. AASTHA KE VIBHINN ROOP ATI SUNDAR
    HAIN.BADHAAEE.

    जवाब देंहटाएं
  18. पागल हूं तो पत्थर मारो
    दीवाना हूँ हँस लो मुझपर
    मुझे तुम्हारी नादानी से
    और आस्थाये गढनी हैं...
    राजीव जी हतप्रभ हूँ आज मैं आप के लेखन को समझ पाया बहुत ही बेहतरीन रचनाये मेरा सादर प्रणाम स्वीकार करे
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

    जवाब देंहटाएं
  19. राजीव जी भावों से ओतप्रोत आस्था ने सीधा हृदय को छू कर संवाद स्थापित किया. बहुत खूब--
    मेरे कलेजे को कुचल कर
    तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?
    भीतरी संवेदनाएँ झकझोर दी.
    खूबसूरत रचना पर बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  20. हरेक क्षणिका अपनने आप मुंह से वाह निकाल गयी....

    इतनी सुन्दर भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचनाओं ने शब्दहीन कर दिया..कैसे प्रशंशा करूँ समझ नहीं पा रही....

    जवाब देंहटाएं
  21. वाह क्या खूब लिखते हैं...
    उस दिन जब आपसे मिला था तो आपके बोलने के अंदाज़ से भी प्रभावित हुआ था...
    शुभकामनायें...
    मीत

    जवाब देंहटाएं
  22. ‘आस्था’ शीर्षक से छ: पहल की राजीव रंजन प्रसाद की प्रस्तुत क्षणिकाओं में प्रेम की अजस्र निर्मल धारा बह रही है जहाँ आस्था और विरह का विरल संयोग भासमान होता है जो कविता को न सिर्फ़ गहराई प्रदान करता है अपितु भावों के तल को अधिक विस्तार देता है। यहाँ भावनाओं का फुहड़पन नहीं, न ही वासनाओं की बू हैं। यही कारण है कि कवि की अपने प्रेयसी में निस्सीम आस्था पाठक के मन को झंकृत भी करती है-

    मुझे तुम्हारी नादानी से
    और आस्थायें गढनी हैं...

    कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें
    कलेजा चीर कर
    तुम्हें फूलों पर रख आता..

    कहना अतिशयोक्ति न होगा कि प्रेम के यही प्रतिमान मानवीय सम्वेदनाओं के तार को मजबूती प्रदान करते हैं वर्ना ईश्क-मुश्क, जुल्फ़, झील सी आँखें और होठों की जाम वाली प्रेम-कवितायें जो आज के दौर में खूब लिखी जा रही है, का कोई साहित्यिक मूल्य नहीं। राजीब की इन कविताओं की भाषिक संरचना भी संयमित और धारदार है।
    कह सकते हैं कि उपर्युक्त विशिष्टताएँ इनकी प्रेम कविता ‘आस्था’ को कई मायनों में अन्य कवियों की प्रेम कविताओं से अलगाती है।

    जवाब देंहटाएं
  23. हम जब भी यहाँ आएंगे
    कुछ मन को छू जाने वाले,
    कुछ दिल की गहराइयों में उतर जाने वाले,
    कुछ हृदय को स्पन्दित करने वाले,
    और
    कुछ मस्तिष्क को झंकृत कर देने वाले,
    अनमोल शब्द
    कुशल शिल्पियों के तराशे हुए
    हमारी झोली में आ गिरेंगे
    पूरी आस्था है हमें
    और है एक अटूट विश्वास

    जवाब देंहटाएं
  24. सपना ही तो टूटा है
    मौत ही तो आई है मुझे
    जी नहीं पाओगे तुम लेकिन
    इतनी तो आस्था है तुम्हे
    मुझपर..

    बहुत अच्छी क्षणिकयें हैं, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  25. aapki kshnikaaon ne kshan bhar me

    itnaa kuchh kah diya ki baanch kar

    man bheetar tak dhnya ho gaya

    badhaai !

    जवाब देंहटाएं
  26. पागल हूं तो पत्थर मारो
    दीवाना हूँ हँस लो मुझपर
    मुझे तुम्हारी नादानी से
    और आस्थाये गढनी हैं...
    bahut khoob likha hai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  27. सपना ही तो टूटा है
    मौत ही तो आई है मुझे
    जी नहीं पाओगे तुम लेकिन
    इतनी तो आस्था है तुम्हे
    मुझपर..
    ...
    ..
    .
    बेहद संवेदनशील... राजीव जी की क्षणिकाएं पहली बार पढ़ी हैं...
    सादर
    खबरी

    जवाब देंहटाएं
  28. पागल हूं तो पत्थर मारो
    दीवाना हूँ हँस लो मुझपर
    मुझे तुम्हारी नादानी से
    और आस्थाये गढनी हैं....


    आपकी संवेदनशील रचनाएँ...भीतर तक छू गई

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत अच्छी क्षणिकायें हैं।

    जवाब देंहटाएं
  30. rajiv ji

    aapki sabhi kshanikaye achhi lagi
    badhai.

    nisha

    जवाब देंहटाएं

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