
किस चाल से चला के ज्युं आया कोई न था॥
किस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये।
कैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था॥
आंखें दो काली ऐसे थीं मशहूर शहर में।
दोनों जहां में जैसे के दूजा कोर्इ न था॥
देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
उस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था॥
मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
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बहर ... २२१ २१२१ १२२१ २१२
20 टिप्पणियाँ
देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
जवाब देंहटाएंउस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था॥
वाह अर्श भाई वाह....कल आपसे बात हुई और आज आपकी ग़ज़ल पढने को मिली...याने सोने पर सुहागा हो गया...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...और ऊपर वाला शेर तो बाबर शेर है
नीरज
वाह !! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल !! हर शेर सुन्दर....बधाई.
जवाब देंहटाएंकिस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये।
जवाब देंहटाएंकैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था॥
बहुत खूब।
हर शेर उम्दा है। बहुत अच्छी ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंवाह अर्श जी, बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंPRIY ARSH KEE SUNDER GAZAL PAR
जवाब देंहटाएंBADHAAEE.
बहुत ख़ूब. पूरी ग़ज़ल निहायत ख़ूबसूरत है.
जवाब देंहटाएंमुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
पढ़ कर मज़ा आगया.
बधाई.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ये...
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियों में ऐसा लगा जैसे की मेरे लिए लिखी गयी हैं...
मीत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई अर्श जी।
जवाब देंहटाएंवाह अर्श जी..........बहूत ही सुन्दर ग़ज़ल पढने को मिली ....... शब्द अपने आप बोलते हैं जैसे....... लाजवाब ये दोनों शेर जिंदगी की कहानी कहते हैं
जवाब देंहटाएंआप सभी आदरणीय और गुनी जानो को इस खाकसार का सलाम के आप सभी ने मुझे पसंद किया और मेरी हौसला अफजाई की आप सभी का प्यार मिला ये मेरे लिए किसी सौभाग्य या उपहार से कम नहीं है ...आदरणीय नीरज जी तो उस्ताद ग़ज़ल कारों में आते है कल उनसे मेरी बात हो पायी ये मेरे लिए सौभाग्य ही है .... ऊपर से ग़ज़ल पितामह श्री प्राण शर्मा जी और परम आदरणीय गुरु देव श्री महावीर का आर्शीवाद मिला ये बहोत बड़ी बात है मेरे लिए .... साथ ही सभी गुनी जनों को मेरा फिर से एक बारगी सलाम ....
जवाब देंहटाएंआप सभी का
अर्श
किस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये।
जवाब देंहटाएंकैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था॥
देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
उस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था॥
वाह वाह्
बहुत ही खूब सूरत गज़ल है हर शे ्र काबिले तारीफ है बधाई
देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
जवाब देंहटाएंउस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था॥
-बहुत बेहतरीन गज़ल बन पड़ी है.
देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
जवाब देंहटाएंउस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था॥
bahut hi pyara sher achchhi gazal
badhai
saader
rachana
मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
जवाब देंहटाएंदेखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
बेहद खूबसूरत अशआर! ये शेर मुझे बहुत पसंद आया हालाँकि सभी सुंदर हैं।
दिलकश गजल के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंदेता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
जवाब देंहटाएंउस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था॥
मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
arsh ji bhut khub
कहने लगा वो शे’र जब आ कर के बज़्म में।
जवाब देंहटाएंफिर वो सभी के साथ था तन्हा कोई न था।
हर हस्सास फ़र्द आप के किसी न किसी शे’र को अपने नज़दीक पायेगा। बहुत खूब!
देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
जवाब देंहटाएंउस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था
बेहतरीन
बेहतरीन प्रकाश भाई।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.