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भरती रही वो सिसकियां देखा कोई न था [ग़ज़ल] - प्रकाश'अर्श'

भरती रही वो सिसकियां देखा कोई न था।
किस चाल से चला के ज्‍युं आया कोई न था॥

किस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये।
कैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था॥

आंखें दो काली ऐसे थीं मशहूर शहर में।
दोनों जहां में जैसे के दूजा कोर्इ न था॥

देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था॥

मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥

*****
बहर ... २२१ २१२१ १२२१ २१२

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20 टिप्पणियाँ

  1. देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
    उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था॥
    वाह अर्श भाई वाह....कल आपसे बात हुई और आज आपकी ग़ज़ल पढने को मिली...याने सोने पर सुहागा हो गया...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...और ऊपर वाला शेर तो बाबर शेर है
    नीरज

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  2. वाह !! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल !! हर शेर सुन्दर....बधाई.

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  3. किस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये।
    कैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था॥

    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  4. हर शेर उम्दा है। बहुत अच्छी ग़ज़ल।

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  5. पंकज सक्सेना22 जून 2009 को 2:47 pm बजे

    वाह अर्श जी, बहुत खूब।

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  6. बहुत ख़ूब. पूरी ग़ज़ल निहायत ख़ूबसूरत है.

    मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
    देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
    मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
    देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
    पढ़ कर मज़ा आगया.
    बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ये...
    अंतिम पंक्तियों में ऐसा लगा जैसे की मेरे लिए लिखी गयी हैं...
    मीत

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई अर्श जी।

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  9. वाह अर्श जी..........बहूत ही सुन्दर ग़ज़ल पढने को मिली ....... शब्द अपने आप बोलते हैं जैसे....... लाजवाब ये दोनों शेर जिंदगी की कहानी कहते हैं

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  10. आप सभी आदरणीय और गुनी जानो को इस खाकसार का सलाम के आप सभी ने मुझे पसंद किया और मेरी हौसला अफजाई की आप सभी का प्यार मिला ये मेरे लिए किसी सौभाग्य या उपहार से कम नहीं है ...आदरणीय नीरज जी तो उस्ताद ग़ज़ल कारों में आते है कल उनसे मेरी बात हो पायी ये मेरे लिए सौभाग्य ही है .... ऊपर से ग़ज़ल पितामह श्री प्राण शर्मा जी और परम आदरणीय गुरु देव श्री महावीर का आर्शीवाद मिला ये बहोत बड़ी बात है मेरे लिए .... साथ ही सभी गुनी जनों को मेरा फिर से एक बारगी सलाम ....

    आप सभी का
    अर्श

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  11. किस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये।
    कैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था॥
    देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
    उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था॥
    वाह वाह्
    बहुत ही खूब सूरत गज़ल है हर शे ्र काबिले तारीफ है बधाई

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  12. देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
    उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था॥

    -बहुत बेहतरीन गज़ल बन पड़ी है.

    जवाब देंहटाएं
  13. देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
    उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था॥
    bahut hi pyara sher achchhi gazal
    badhai
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  14. मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
    देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥

    बेहद खूबसूरत अशआर! ये शेर मुझे बहुत पसंद आया हालाँकि सभी सुंदर हैं।

    जवाब देंहटाएं
  15. देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
    उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था॥

    मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर।
    देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था॥
    arsh ji bhut khub

    जवाब देंहटाएं
  16. कहने लगा वो शे’र जब आ कर के बज़्म में।
    फिर वो सभी के साथ था तन्हा कोई न था।

    हर हस्सास फ़र्द आप के किसी न किसी शे’र को अपने नज़दीक पायेगा। बहुत खूब!

    जवाब देंहटाएं
  17. देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही।
    उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था

    बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं

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