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दर्दे दरिया में आँसू भरे हुए [ग़ज़ल] - डॉ. सुरेश तिवारी

दर्दे दरिया में आँसू भरे हुए
फरेबे आरजू ये हाथों धरे हुए

तब्दील हुई, शहर की तासीर
जज्बात भी पत्तों से झरे हुए

आए जब तूफां भरे हालात
सोच पुख्ता हौसले खरे हुए

खौफ तारी हर सूरतो कदम
धड़क रहे दिल आँखें डरे हुए

तेग थामेंगे हाथ कैसे सुरेश
मेरे ही दोस्त अदू हो परे हुए

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10 टिप्पणियाँ

  1. आए जब तूफां भरे हालात
    सोच पुख्ता हौसले खरे हुए

    बहुत बढिया

    जवाब देंहटाएं
  2. कमाल के ग़ज़ल है आपके,
    बेहद चुनिंदा शब्दो से भरे हुए.
    पढ़ कर ऐसा लगा मानो,
    दिल के मुरझाए फूल हरे हुए.

    जवाब देंहटाएं
  3. आए जब तूफां भरे हालात
    सोच पुख्ता हौसले खरे हुए
    bhut khub mitr
    meri bdhayi swikaar kare
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढिया गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  5. रिश्तों का टिकाऊपन,
    अब प्यार पर निर्भर नहीं,
    वह निर्भर करता है,
    अर्थ की शक्ति पर,
    सुख-सुविधाओं के सामान पर,
    रिश्तों की जितनी अधिक ज़रूरतें
    पूरी होंगी,
    प्यार गहराता जाएगा,
    यदि आप ऐसा न कर सके,
    रिश्तों का विशाल भवन,
    रेत के महल की तरह,
    कुछ पल में भरभरा कर गिर जाएगा । आए जब तूफां भरे हालात
    सोच पुख्ता हौसले खरे हुए
    बधाई ! डा.साहेब

    जवाब देंहटाएं
  6. तब्दील हुई, शहर की तासीर
    जज्बात भी पत्तों से झरे हुए...

    बहुत सुंदर...दर्द का बयान है

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर दिलकश गजल... हर शेर अपने आप में एक पूर्ण गजल है

    जवाब देंहटाएं

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