
१५ जुलाई १९८४ को फर्रुखाबाद में जन्मे प्रवीण कुमार शुक्ल रसायन विज्ञानं में स्नातक हैं और फिलहाल बवाना में नोकिया सेल्लुलर में बतौर ऍम.आई.एस. कार्यरत हैं।
कवितायें लिखने का शौक बचपन से है। कुछ ऐसा देख कर या सुन कर या महसूस कर जिससे हृदय की भावनाएं उद्वेलित होने लगें तो उन्हें शब्द देने का प्रयास करते रहते हैं।
कवितायें लिखने का शौक बचपन से है। कुछ ऐसा देख कर या सुन कर या महसूस कर जिससे हृदय की भावनाएं उद्वेलित होने लगें तो उन्हें शब्द देने का प्रयास करते रहते हैं।
वो पत्थर तोड़ती थी तो क्या हुआ?
आखिर वो मेरी माँ ही तो थी
नहीं आती थी उसको मेरी भाषा
मौन में ही सही बात करती तो थी
उसके पास गहने नहीं थे
उसके पास कपडे भी नहीं थे
पर वो था जो नारी को नारीत्व देता है...
माँ को ममत्व देता है
उसके पास थी लज्जा
वो बिस्तर पर शायद कभी ही सोई हो
कुछ पाने की चाह में शायद कभी ही रोई हो
हर व्यथित दिन की शुरुआत
वो मुस्करा कर करती थी
तल्लीन हो जाती थी अपने काम में
जेठ के भरे घाम में
जिसके बदले उसे मिलते थे पैसे..
जिससे बमुश्किल खरीदती थी
दो जून की रोटी
मेरे व मेरे भाईयो के लिए
मुझे याद नहीं कभी भी
कि हो उसने कोई फरमाइश।
क्या नहीं रही होगी
उसके दिल में कोई ख्वाइश?
आखिर वो नारी ही तो थी?
वो पत्थर तोड़ती थी तो क्या हुआ
आखिर वो मेरी माँ ही तो थी।
रात की आड़ में मैंने उसे नहाते देखा था
शर्मिंदगी में आंसू बहाते देखा था
हर आहट पर
लपेट लेती थी चीथडो को,
अपने वदन के चारो ओर
चेष्टा थी खुल ना जाए
पाँव का कोई पोर
सुन्दरता क्या है सुन्दर क्या
क्या वो यह नहीं जानती थी?
कपड़ो से उसका सम्बन्ध
बमुश्किल शरीर ढकने का ही था।
उसे नहीं मालूम था
शिक्षा और साक्षरता के बारे में
पर उसमे मानवीयता थी।
वो दयनीयता की देवी थी
क्या फर्क पड़ता है
वो भूंख से तड़प तड़प कर मरी
दर्द और अवसाद में डूव कर मरी
इंसानियत का ढोंग करने वालों के लिए
वो एक भिखारिन ही तो थी...
वो पत्थर तोड़ती थी तो क्या हुआ।
आखिर वो मेरी माँ ही तो थी...
14 टिप्पणियाँ
वो बिस्तर पर शायद कभी ही सोई हो
जवाब देंहटाएंकुछ पाने की चाह में शायद कभी ही रोई हो
हर व्यथित दिन की शुरुआत
वो मुस्करा कर करती थी
तल्लीन हो जाती थी अपने काम में
जेठ के भरे घाम में
जिसके बदले उसे मिलते थे पैसे..
जिससे बमुश्किल खरीदती थी
दो जून की रोटी
मेरे व मेरे भाईयो के लि
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है प्रवीन जी को बहुत बहुत मुबारक्
प्रवीण जी माँ पर जितना लिखा जाये बहुत कम है माँ वो अनुभव है वो शक्ति है जिसे शब्द दिए ही नहीं जा सकते जितना लिखा जाये कम है हम सब की माँ है और हमें उनसे स्नेह भी है पर संसार में कुछ ऐसी भी माये है जो माँ शब्द में अपने आस्तित्व को तलाशती है ,,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति है मेरी शुभ कामनाये आप के साथ है
बहुत अच्छी तरह से एक यैसे तबके की स्त्री की स्तिथि को दिखाने का प्रयाश किया है जिनकी तरफ हम ध्यान ही नहीं देते बहुत ही अच्छी है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब प्रवीण जी माँ के ऊपर बहुत ही अच्छी कविता है दो शब्द मैं भी कहूँगा उंगली थामे नन्हे हाथ
जवाब देंहटाएंपंख पसारे माँ का साथ
बदले संगी
पर मंजिल का पंथ न बदला
बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला
bahut achhi kavita hai praveen ji maine aap ka blog bhi dekaha aapki maa ko lekar asri kavitaye bahut hi achhi hai aur is kavita ki to baat hi alag hai
जवाब देंहटाएंbahut hi sundera aabhivyakti
जवाब देंहटाएंबहूत ही भावोक, मार्मिक रचना............ पर माँ की कोई भी रचना.......... माँ पर लिखी कोई भी रचना नये विशवास का संचार करती है........... माँ जैसे भी हो............. जैसी भी हो........... बस माँ ही है ......... बहुत बहुत दिल को छूने वाली
जवाब देंहटाएंvery good praveen ji bhaut chha likha aapne maa ke bare me bahut accha aage bhi ham ummed karte hai ki aap aur rishto ke bare me likhte rahenge hamari duaye aapke sath hai ,wasim
जवाब देंहटाएंप्रवीन जी, आपकी हर नई रचना और परिपक्व हो रही है... बेहद भावुक रचना...
जवाब देंहटाएंखबरी
+91-9953717705
-
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http://deveshkhabri.blogspot.com
भावुकता से भरी कविता. निश्चय ही मां तो मां ही होती है उसका स्थान सबसे ऊपर है शायद ईश्वर से भी पहले. सुन्दर कविता के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंbahut hi bhavna prdhan kavita hai
जवाब देंहटाएंpraveen ji ,
जवाब देंहटाएंhats off to you for this wonderful poem ..itni shashkat rachna is visay par bahut dino ke baad padhne ko mili hai ...
aapko dil se badhai deta hoon
तल्लीन हो जाती थी अपने काम में
जवाब देंहटाएंजेठ के भरे घाम में
जिसके बदले उसे मिलते थे पैसे..
जिससे बमुश्किल खरीदती थी
दो जून की रोटी
मेरे व मेरे भाईयो के लि
bhaut hi behtreen badhayi swikaar kare
आप सब लोगो का इतना प्यार और स्नेह दिखने के लिए मैं आप का आभार व्यक्त करता हूँ और आप का ऋणी महशुश करता हूँ आप अपना प्यार और स्नेह यो ही बनाये रखे
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.