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जीवन का गणित [कविता] - मोहिन्दर कुमार


साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-
मोहिन्दर कुमार
का जन्म 14 मार्च, 1956 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में हुआ। आप राजस्थान यूनिवर्सिटी से पब्लिक- एडमिन्सट्रेशन में स्नातकोत्तर हैं।

आपकी रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं साथ ही साथ आप अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं। आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में एक हैं। वर्तमान में इन्डियन आयल कार्पोरेशन लिमिटेड में आप उपप्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं।

जीवन कोई गणित नहीं है
ना ही मनुष्य कोई आकृति
यहाँ समीकरण स्थापित सूत्रों से नहीं
अपितु
समय की मांग अनुसार सुलझाए जाते हैं

यहाँ कब आधार पैरों तले से खिसक जाए
कब सरल वक्र बने
कब सम विषम हो
कोई कह नहीं सकता
कभी गोलाकार, कभी वर्गाकार, कभी आयताकार
होती पृष्टभूमि पर
आधार और लम्ब की भूमिकाएँ बदल जाती है

यहाँ एक और एक दो नहीं होते, ना ही ग्यारह
हो जाता है
एक और अधिक मोटा
एंव जन्म लेती एक डकार
पहला एक करता अपने सपने साकार
दूसरे एक को खाता और पचा जाता
अंक और रेखायें
कभी किसी के नहीं होते
जो इनसे खेलता है
भरमा जाता है

सबसे ऊपर और सबसे आगे रहने वाले
कुछ अलग ढंग से चढते और दौडते हैं
किसके कांधे पर पैर, कौन बना सीढी
कौन गिर पडा
इन विचारो से खुद को नही जोडते हैं

इस खेल में सब भूल जाते हैं
जीवन सरल रेखा नहीं
दुनिया भी गोल है
ऊंचाई के अन्तिम छोर पर कुछ है
जो सब को नुकेलता है
एक बार फ़िर से नीचे धकेलता है

जो इस सत्य को जान जाते है
जीवन के समीकरण को
इस तरह सुलझाते हैं
अंकों को रिश्तों से अलग रख
प्रेम रस चखते हैं, चखाते हैं

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9 टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया , जिन्दगी के समीकरण क्या इतनी आसानी से समझ आते हैं , और इबारतें पढ़ते जब सुबह से शाम आ जाती है तब गठरी टटोलते हैं | आपने गणितीय दृष्टिकोण से देखकर कविता रची , धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  2. जिंदगी भी लगता है पैथागोरेस की इक्वेशन की तरह आसानी से नहीं सुलझती................ लाजवाब लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी वैचारिक कविता!
    बधाई मोहिन्दर जी!

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन के गूढ रहस्यों को गणितीय माध्यम से.. समीकरणों के जरिए समझने और समझाने की प्रक्रिया अच्छी लगी

    जवाब देंहटाएं
  5. jivan jitna saral hai,
    ise janna utna hi klisht aur durooh hai .....aapne iske goodh arthon ko jo saral shabd diye hain ,main unse abhibhoot hoon aur apni haardik badhai preshit karta hoon.......
    jai ho!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही बेहतरीन कविता है सीधा बार करती है खाश कर ये लाईने
    सबसे ऊपर और सबसे आगे रहने वाले
    कुछ अलग ढंग से चढते और दौडते हैं
    किसके कांधे पर पैर, कौन बना सीढी
    कौन गिर पडा
    इन विचारो से खुद को नही जोडते हैं

    जवाब देंहटाएं
  7. mohinder ji
    bahut shaandar dang se aapne zindagi ki philosphy ko darshaya hai ..badhai

    जवाब देंहटाएं
  8. मैं किसे कहूं, मेरे साथ चल,
    यहां हर सर पर सलीब है...
    कोई दोस्त है न रकीब है,
    तेरा शहर कितना अजीब है...

    मोहिंदर जी, सबसे पहले अपने गुनाह-ए-अज़ीम के लिए माफी चाहता हूं...अपनी रिपोर्ट में उसी शख्स का नाम भूल गया, जिससे ब्लॉगर्स मीट में पहला हाथ मिलाया था...

    बाकी मैंने विशुद्ध ब्लागर्स मीट की जो बात अपनी पोस्ट पर रखी, उसे अन्यथा न लें...हर बारिश की शुरुआत उस बूंद से होती है
    जो धरती पर आते ही उसमें समा जाती है...खामियां बेशक रही हों लेकिन फरीदाबाद का सम्मेलन ब्लॉगर्स की एकजुटता के लिए मील का पत्थर साबित होगा...इसका पूरा श्रेय साहित्य शिल्पी के कर्मठ सिपाहियों को जाता है...बाकी आपने आगे आने वाले ब्लागर्स सम्मेलन के लिए जो खाका खींचा है, वो सर्वत्र स्वागतयोग्य है...मुझे क्या करना है, बस आदेश कीजिएगा...

    जवाब देंहटाएं

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