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मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ......[कविता] - श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'

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Photobucket रचनाकार परिचय:-

श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' का जन्म 10 अक्तूबर 1959 को हुआ। आप आपात स्थिति के दिनों में लोकनायक जयप्रकाश के आह्वान पर छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे।

आपकी रचनाओं का विभिन्न समाचार पत्रों, कादम्बिनी तथा साप्ताहिक पांचजन्य में प्रकाशन होता रहा है। वायुसेना की विभागीय पत्रिकाओं में लेख निबन्ध के प्रकाशन के साथ कई बार आपने सम्पादकीय दायित्व का भी निर्वहन किया है।

वर्तमान में आप वायुसेना मे सूचना प्रोद्यौगिकी अनुभाग में वारण्ट अफसर के पद पर कार्यरत हैं तथा चंडीगढ में अवस्थित हैं।

मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ
कौन हो कैसे नहीं मैं जानता हूँ
किन्तु एक अभिनव महा उत्साह से
मैं आ रहा हूँ
मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ

धूल जाने चरण किसके छू मेरे माथे लगी
अतुल अनजानी अनल से वसन सारे जल गये
थी मलिन बस्ती डगर पा आज
तुम तक आ रहा हूँ
मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ

स्रष्टि का अविचल महामंडल घिरा प्रतिछोर से
दिव्य आभालोक मण्डित चकित हूं चहुंओर से
सत्य सलिला सरित तट पर
लो ... आज मैं भी आ रहा हूं
मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ

शून्य में पग चिन्ह फिरता खोजता
गहन गह्‍वर तमस में अनभिज्ञ धुंधले मार्ग पर
ओ बटोही अनत अंतस के सुनो
निसर्ग चलना ही पथिक का धर्म
चलता जा रहा हूँ
अव्यक्‍त मेरे युग बटोही ठहर
मैं भी आ रहा हूं.
मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ

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15 टिप्पणियाँ

  1. शून्य में पग चिन्ह फिरता खोजता

    'गहन गह्‍वर तमस में अनभिज्ञ धुंधले मार्ग पर

    ओ बटोही अनत अंतस के सुनो

    निसर्ग चलना ही पथिक का धर्म

    चलता जा रहा हूँ'

    antim panktiyan ek sundar sandes deti hui hain.

    bahut hi sundar kavita,badhaayee.

    जवाब देंहटाएं
  2. शून्य में पग चिन्ह फिरता खोजता

    गहन गह्‍वर तमस में अनभिज्ञ धुंधले मार्ग पर

    ओ बटोही अनत अंतस के सुनो

    निसर्ग चलना ही पथिक का धर्म

    चलता जा रहा हूँ
    ek bahut hi sachhi abhivyakti.

    जवाब देंहटाएं
  3. मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ
    शास्वत सत्य को व्यक्त करती हुई श्रीकांत जी की यह कविता नि;संदेह एक उत्कृष्ट रचना है. बहुत सुन्दर शब्दों के माध्यम से अनंत - पथ के राही की मनोदशा का जीवंत चित्रण है.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस सुन्दर अभिव्यक्ति ने तो मन ही मुग्ध कर लिया....बहुत ही सुन्दर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  5. मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ। - सारगर्भित रचन श्रीकान्त भाई। वाह। लेकिन कितने लोग सुन पाते हैं ये पदचाप जो कि यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में किमाश्चर्यम् प्रश्न का मूल भी है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  6. मिश्र जी बहुत ही सुंदर कविता है हर्दय के अन्दर क्या चल रहा है कितनी उथल पुथल है इस कविता से बखूबी पता चल रहा न जाने क्यूँ ये जानते हुए भी की म्रत्यु सत्य है हम अपनी आंखे बंद कर लेते है
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

    जवाब देंहटाएं
  7. मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ

    शाश्वत बात................ कदम दर कदन ये आवाज़ नज़दीक होती जाती है......
    लाजवाब रचना............ बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. bahut dino se main soch raha tha ki mrutyu par kuch likhu.. aaj aapki kavita padhkar pyaas bujh gayi .. aapne bahut shaandar likha hai ..

    badhai

    जवाब देंहटाएं
  9. भई वाह! कांत जी अच्छा दर्पण दिखाया बाज को आते देख कपोत सा निश्चिंत अंत निरा निर्लेप तमस से आश्वश्त शाधित संत श्री की कांत से चकित चाहे अट्टालिका अनंत म्रिग्त्रृष्णा तो मरे न मरे आगया वीथी का अंत

    जवाब देंहटाएं
  10. जीना यहाँ...मरना यहाँ

    इसके सिवा..जाना कहाँ


    सुन्दर कविता

    जवाब देंहटाएं
  11. स्रष्टि का अविचल महामंडल घिरा प्रतिछोर से
    दिव्य आभालोक मण्डित चकित हूं चहुंओर से
    सत्य सलिला सरित तट पर
    लो ... आज मैं भी आ रहा हूं
    मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ

    यही एक शश्वत सत्य है .जिसको भुलाया झुठलाया नहीं जा सकता है ...इस भाव को आपने बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया है ..जिसको याद रखना हर मनुष्य के बस की बात नहीं ..सच हर कोई जानता है ,पर वह एक भ्रम में जीता रहता है अच्छी लगी आपकी यह रचना शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  12. कविता बहुत ही हृदयस्पर्शी बन पड़ी है.जीवन और मृत्यु तो शाश्वत सत्य है पर इस कविता को पढने के बाद ज्ञात होता है ..कवि सहर्ष परमात्मा में लीन होना चाहते हैं तथा कथित मृत्यू का आलिंगन करना चाहते हैं ...पर ...

    जीना है क्यूँ कि जन्म है ..
    पर स्थिति कहाँ
    मरना है पर हाय
    मृत्यू भी तो नहीं !

    सोचलो तुम निर्जीव
    क्या सचमुच हो जीवित ?
    क्यूँ कि बचना ही तो नहीं है जीवन .....

    फिर से कहना चाहती हूँ ..वाकई कविता अपनी ही बाढ़ में समूचे वातावरण को बहाने की शक्ति रखती है

    जवाब देंहटाएं
  13. ............
    अतुल अनजानी अनल से वसन सारे जल गये
    थी मलिन बस्ती डगर पा आज
    तुम तक आ रहा हूँ
    मृत्यु की पदचाप सुनता जा रहा हूँ

    आत्मा से जुड़ी हुयी कविता ..... अत्यंत सुंदर

    - अपरा

    जवाब देंहटाएं

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