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आर्तनाद [कविता] - राजाभाई कौशिक



साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

सालासर में ६ नवम्बर, १९७३ को जन्मे राजाभाई कौशिक अजमेर के डी.ए.वी. कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत आयुर्वेद की ओर उन्मुख हुये और इस क्षेत्र में सुयश प्राप्त किया।
वर्तमान में राजस्थान के चुरू में निवास कर रहे राजाभाई ने अनेक कविताएं, लेख, व्यंग्य आदि लिखें हैं और कई सम्मान प्राप्त किये हैं। आप एक अच्छे चित्रकार भी हैं।
धरणी यौवन की
सुगन्ध से भरा हवा का झौंका
वो बारिश की बूंद
दिल में सिहरती तरंगे
धुलती प्रकृति, खिलती कलियाँ
बोली कोयल
भीगे बच्चे
फूटी घमोरी
कम्पित हुआ रोम-रोम कि....
तडप से बिजली गिरी कुछ दूर
एक आर्तनाद सुना गई
परनाले के नीर में
एक नीड बह गया
टीटहरी का वो बिलखना
कहीं पहाड से टकरा के रह गया
डर के बच्ची भी
माँ के आँचल से मुँह
ढक कर सो गई
न जाने उस गहन अंधेरे व
भावप्रवाह में
मेरी लेखनी भी कहीं खो गई............

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17 टिप्पणियाँ

  1. सुगन्ध से भरा हवा का झौंका
    वो बारिश की बूंद
    दिल में सिहरती तरंगे
    धुलती प्रकृति, खिलती कलियाँ
    एक आर्तनाद सुना गई
    परनाले के नीर में
    एक नीड बह गया
    टीटहरी का वो बिलखना
    बहुत खूब मित्र क्या बात है कितनी अच्छी तरह से आप ने प्रक्रति की सुन्दरता और उसकी भयानकता भयाबहता का चित्रण किया है अतुलनीय है मेरी बधाई स्वीकार करे
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  2. सब सह जाएंगे
    पर आपकी लेखनी का
    खोना सह न पाएंगे

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह !! क्या चित्र खींचा है आपने शब्दों के माध्यम से.....वाह वाह वाह !!!

    जवाब देंहटाएं
  4. भाव्प्रवाह मे अगर लेख्नी बह जाये तो ऐसी रचना घतती है बहुत सुन्दर आभार्

    जवाब देंहटाएं
  5. कुछ भी हो जाये लेखनी की धार बनी रहनी चाहिये वहीं से तो भावों की वर्षा होगी और फ़िर से एक नीड बनेगा.

    जवाब देंहटाएं
  6. चित्र उत्पन्न करती हुई कविता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. डर के बच्ची भी
    माँ के आँचल से मुँह
    ढक कर सो गई
    न जाने उस गहन अंधेरे व
    भावप्रवाह में
    मेरी लेखनी भी कहीं खो गई....

    सुन्दर चित्रण।

    जवाब देंहटाएं
  8. शब्द चयन तारीफ के काबिल है। सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  9. टीटहरी का वो बिलखना
    कहीं पहाड से टकरा के रह गया
    डर के बच्ची भी
    माँ के आँचल से मुँह
    ढक कर सो गई
    न जाने उस गहन अंधेरे व
    भावप्रवाह में
    मेरी लेखनी भी कहीं खो गई............
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति है।

    जवाब देंहटाएं
  10. राजाभाई कौशिक जी का साहित्य शिल्पी पर हार्दिक अभिनंदन।

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहद खूबसूरत ...सीधे दिल पर असर छोड़ने वाली रचना | कुछ समय पहले शिल्पी पर ही इसी तर्ज़ , " बादल को घिरते देखा था " भी पढी थी |
    प्रकृति में हर वस्तु हर भावः का अपना एक विलोम है और कई बार ये विलोम भाव एक साथ नज़र आते हैं .... बारिश में धुले हुए पत्तो के बीच बिलखती टिटहरी ऐसा ही कुछ आभास दे जाती है ...
    बहुत पसंद आयी आप की ये रचना .. बधाई ..

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर चित्रात्मक प्रस्तुति! बधाई स्वीकारें!

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर कविता....

    साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं

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