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कुछ मुक्तक [कविता] - सुधा भार्गव



रचनाकार परिचय:-


श्रीमती सुधा भार्गव का जन्म ८ मार्च, १९४२ को अनूपशहर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। बी.ए., बी.टी., विद्याविनोदिनी, विशारद आदि उपाधियाँ प्राप्त सुधा जी का हिन्दी भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला पर भी अच्छा अधिकार है।

बिरला हाईस्कूल, कोलकाता में २२ वर्षों तक हिन्दी शिक्षक रह चुकीं सुधा जी की कई रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। परिषद भारती, कविता सम्भव-१९९२, कलकत्ता-१९९६ आदि संग्रहों में भी आपकी रचनायें सग्रहित हैं। बाल कहानियों की आपकी तीन पुस्तकों "अंगूठा चूस", "अहंकारी राजा" व "जितनी चादर उतने पैर पसार" के अतिरिक्त "रोशनी की तलाश में" (२००२) नामक काव्य-संग्रह भी प्रकाशित है। कई लेखक संगठनों से जुड़ी सुधा भार्गव की रचनायें रेडियो से भी प्रसारित हो चुकीं हैं।

आप डा. कमला रत्नम सम्मान तथा प.बंगाल के "राष्ट्र निर्माता पुरुस्कार" से भी सम्मानित हो चुकी हैं।

अपना बनाने को न दिल लगायें,
मन बहलाने को न सपनों मेँ जागेंगे
नजरे नहीं उठायेंगे, नजरे नहीं मिलायेंगे,
बस उनसे कह दो, न आयें पीछे पीछे
हम तो चले जायेंगे!

*****

दर्द के नग्मों से जडी ए ग़ज़ल
तुझे छू न सकें, महसूस करते हैं
सुन न सकें, गुनगुनाते हैं
तू मिटा रही है खुद को,
करीब माझी खडे हैं
हम ठंडी आहेँ भरते हैं
पलकोँ को उठा तो जरा
करीब माझी खडे हैं

*****

हमनें माँगा था प्यार से प्यार
तुम भिख़ारी समझ बैठे
दो पसे हाँथ में रख कर
कर्तव्य की इतिश्री कर बैठे।

*****

बनावटी इतने बनो न
दामन में आग लग जाये
असलियत अंधेरे में गुम हो
मिल्कियत में नफ़रत मिल जाये

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11 टिप्पणियाँ

  1. पंकज सक्सेना25 जून 2009 को 1:22 pm बजे

    सभी मुक्तक अच्छे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय सुधा भार्गव जी का साहित्य शिल्पी पर हार्दिक अभिनंदन। बहुत अच्छे मुक्तक हैं विशेषकर यह -

    हमनें माँगा था प्यार से प्यार
    तुम भिख़ारी समझ बैठे
    दो पसे हाँथ में रख कर
    कर्तव्य की इतिश्री कर बैठे।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति। आभार सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छे मुक्तक हैं लेकिन गुंजाईश थी और बेहतर की।

    जवाब देंहटाएं
  5. परम आदरणीय सुधा जी बहुत ही सुंदर वैसे तो मैं आप की बहुत सी रचनाये पढ़ चूका हूँ पर इन मुक्तकों
    (हमनें माँगा था प्यार से प्यार
    तुम भिख़ारी समझ बैठे
    दो पसे हाँथ में रख कर
    कर्तव्य की इतिश्री कर बैठे।)
    ने तो मन मोह लिया मेरा प्रणाम स्वीकार करे .
    सादर
    प्रवीण पथिक

    9971724648

    जवाब देंहटाएं
  6. अनिल कुमार जी से सहमत हूँ कि और बेहतर की गुंजाइश थी।

    जवाब देंहटाएं
  7. साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  8. itte sukomal aur maasoom muktak

    baanch kar man me gahre tak tripti

    ho gayi..

    ___aapko haardik badhaai !

    जवाब देंहटाएं

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