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दिन दिवंगत हुए [आज जन्मदिवस पर विशेष प्रस्तुति] - डॉ. कुँअर बेचैन

डॉ. कुँअर बेचैन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। हिन्दी साहित्य जगत उन जैसी प्रतिभा को पा कर गौरवांवित हुआ है। आज उनके जन्मदिवस पर साहित्य शिल्पी परिवार उन्हे शुभकामनायें देता है तथा उनके दीर्घ जीवन की कामना करता है। - साहित्य शिल्पी

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रचनाकार परिचय:-


डॉ॰ कुँअर बेचैन का मूल नाम कुँअर बहादुर सक्सेना है।

आप की प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं- गीत-संग्रह: पिन बहुत सारे, भीतर साँकलः बाहर साँकल, उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख, एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की, दिन दिवंगत हुए, ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने काँच के, महावर इंतज़ारों का, रस्सियाँ पानी की, पत्थर की बाँसुरी, दीवारों पर दस्तक, नाव बनता हुआ काग़ज़, आग पर कंदील, आँधियों में पेड़, आठ सुरों की बाँसुरी, आँगन की अलगनी, तो सुबह हो, कोई आवाज़ देता है; कविता-संग्रह: नदी तुम रुक क्यों गई, शब्दः एक लालटेन, पाँचाली (महाकाव्य)

रोज़ आँसू बहे रोज़ आहत हुए
रात घायल हुई, दिन दिवंगत हुए
हम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहे
रिक्त मन में नई प्यास भरते रहे
रोज़ जिनके हृदय में उतरते रहे
वे सभी दिन चिता की लपट पर रखे
रोज़ जलते हुए आख़िरी ख़त हुए
दिन दिवंगत हुए !

शीश पर सूर्य को जो सँभाले रहे
नैन में ज्योति का दीप बाले रहे
और जिनके दिलों में उजाले रहे
अब वही दिन किसी रात की भूमि पर
एक गिरती हुई शाम की छत हुए !
दिन दिवंगत हुए !

जो अभी साथ थे, हाँ अभी, हाँ अभी
वे गए तो गए, फिर न लौटे कभी
है प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भी
दिन कि जो प्राण के मोह में बंद थे
आज चोरी गई वो ही दौलत हुए ।
दिन दिवंगत हुए !

चाँदनी भी हमें धूप बनकर मिली
रह गई जिंन्दगी की कली अधखिली
हम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिली
हर तरफ़ शोर था और इस शोर में
ये सदा के लिए मौन का व्रत हुए।
दिन दिवंगत हुए!

आज फिर एक बार हम आपको सुनवाने जा रहे हैं, कुँअर साहब की चर्चित गज़ल "ज़िंदगी यूं भी जली यूं भी चली मीलों तक" जिसमें उन्होंने जीवन की कुछ सच्चाइयों और कुछ मासूम भावनाओं को बड़े ही मोहक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है.




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17 टिप्पणियाँ

  1. डो. बेचैन को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें। कविता का आभार।

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  2. डॉ कुँअर बेचैन को जन्मदिन की शुभकामनायें... बहुत अच्छी कविता..बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें। कुँअर बेचैन जी को सुनना और पढना दोनों ही अच्छा लगता है। आज प्रस्तुत दोनों रचनायें मेरे पसंद की हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. पंकज सक्सेना1 जुलाई 2009 को 4:31 pm बजे

    चाँदनी भी हमें धूप बनकर मिली
    रह गई जिंन्दगी की कली अधखिली
    हम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिली
    हर तरफ़ शोर था और इस शोर में
    ये सदा के लिए मौन का व्रत हुए।
    दिन दिवंगत हुए!

    शुभकामना कुवर जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभकामनायें जन्‍मदिन की

    कविता पढ़वाई सच्‍चे मन की।

    जवाब देंहटाएं
  6. डॉ कुँअर बेचैन jee को जन्मदिन की शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  7. डॉ कुँअर बेचैन जी को जन्मदिन की बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरी हार्दिक शुभकामनाएं
    कुंवर बेचैन जी मेरे पसंदीदा कवियों में से हैं -सवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की जो सहजता कुंवर जी में दिखती , विरली है !
    इनकी एक हिन्दी गजल /या गीत जो भी कहिये -दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना मैं गुनगुनता रहता हूँ !
    कितना ऋणी हूँ मैं इस महान कवि का !

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  9. jam deen ki hardeek badhayi kuvar ji ki kavitayo me bhavo ke saath sath sabdo ko itne saral tarike se rakha jata hai ki deel ko chhu jaati hai mera prnaam swikaar kare
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

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  10. डा.साहब को जन्म दिवस पर विनम्रता से शुभकामनाएँ -
    Many Happy returns of the Day .......& Many more
    सुँदर कविता सुनवाने का साहित्य शिल्पी मँच को आभार
    - लावण्या

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  11. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  12. और यशस्वी हों! सुखी रहें।
    'दिन दिवंगत हुए' — जीवन-यथार्थ की कविता।
    मर्मस्पर्शी।
    बधाई!
    *महेंद्रभटनागर
    फ़ोन : ०७५१-४०९२९०८

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  13. डा. कुंवर बेचैन जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामान्यें.

    जवाब देंहटाएं
  14. Hardik shubhkamnaye....

    Aanad laabh ka suawsar pradaan karne ke liye sahity shilpi ka aabhar.

    जवाब देंहटाएं
  15. डा,कुँअर बेचैन जी को उनके जन्म-दिन पर ढेरों बधाई। आपकी कविता में लय और छंद का जादू सर चढ़ कर बोलता है और मन को अभिभूत करता है।

    जवाब देंहटाएं

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