मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में जन्मे अमन दलाल एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा में बी.टेक. के विद्यार्थी हैं।
लेखन में बहुत अर्से से रूचि है। विद्यालयीन स्तर पर लेखन, वाद-विवाद आदि के लिये कई बार पुरुस्कृत भी हुये हैं। अंतरजाल पर भी सक्रिय हैं।
जज्बात पे मेरे रहम की नज़र कर,
इनायत हो, पाकीजा मेरे शामो-सहर कर,
मेरी दुआएं भी अब मुकम्मल हों!
मेरे दिल की जमीं पर ऐसी, नमाज़-ऐ-अज़र कर
फरियाद है, अब मुझे तू प्यार कर...
मेरे खवाबों को भी, रहमतें नवाज़ कर,
जेहन में मेरे भी, छोटा एक घर कर,
उस खुदा का रुतबा, और बढ़ा ज़रा
आकर आवाज़ मेरी, नई ग़ज़ल कर
फरियाद है, अब मुझे तू प्यार कर...
हो, न यकीं गर मुकद्दर पर,
भावो से मेरे अजान, वो गीता-उवाच कर,
मिसालों में कहीं रख छोड़ मुझे,
थाम ले दामन, दिल पर नज़रे-करम कर,
फरियाद है, अब मुझे तू प्यार कर...
अब मुझे तू प्यार कर...
6 टिप्पणियाँ
जेहन में मेरे भी, छोटा एक घर कर,
जवाब देंहटाएंbahut khoob
मेरे दिल की जमीं पर ऐसी, नमाज़-ऐ-अज़र कर
जवाब देंहटाएंफरियाद है, अब मुझे तू प्यार कर...
kya baat kahi hai apne
सुधार की बहुत गुंज़ाइश है अभी!
जवाब देंहटाएंमेरे दिल की जमीं पर ऐसी,
जवाब देंहटाएंनमाज़-ऐ-अज़र कर फरियाद है,
अब मुझे तू प्यार कर...
sundar likha hai .....
बहुत सुन्दर। बधाई हो।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे अमन भाई... भाव उमड़ कर आ रहे हैं .. शब्दों से अधिक शिल्प को महत्व दें तो और सुन्दर परिणाम पाएंगे | :-)
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.