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बिटिया [कविता] - विजय कुमार सपत्ति

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हनी, तुझे मैंने पल पल बढ़ते देखा है!
पर तू आज भी मेरी छोटी सी बिटिया है!!

साहित्य शिल्पी रचनाकार परिचय:-


विजय कुमार सपत्ति के लिये कविता उनका प्रेम है। विजय अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा हिन्दी को नेट पर स्थापित करने के अभियान में सक्रिय हैं। आप वर्तमान में हैदराबाद में अवस्थित हैं व एक कंपनी में वरिष्ठ महाप्रबंधक के पद पर कार्य कर रहे हैं।

आज तू बारह बरस की है;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की....
मुझे अब भी याद है!!!

वही जो मेरे कंधो पर बैठकर,
चाकलेट खरीदने;
सड़क पार जाती थी!

वही, जो मेरे बड़ी सी उंगली को,
अपने छोटे से हाथ में लेकर;
ठुमकती हुई स्कूल जाती थी!

और वो भी जो रातों को मेरे छाती पर;
लेटकर मुझे टुकर टुकर देखती थी!

और वो भी,
जो चुपके से गमलों की मिटटी खाती थी!


और वो भी जो माँ की मार खाकर,
मेरे पास रोते हुए आती थी;
शिकायत का पिटारा लेकर!

और तेरी छोटी छोटी पायल;
छम छम करते हुए तेरे छोटे छोटे पैर!!!

और वो तेरी छोटी छोटी उंगुलियों में शक्कर के दाने!
और क्या क्या ......
तेरा सारा बचपन बस अभी है, अभी नही है!!!

आज तू बारह बरस की है;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की....
मुझे अब भी याद है!

वो सारी लोरियां, मुझे याद है ,
जो मैंने तेरे लिए लिखी थी;
और तुझे गा गा कर सुनाता था, सुलाता था !

और वो अक्सर घर के दरवाजे पर खड़े होकर,
तेरे स्कूल से आने की राह देखना;
मुझे अब भी याद आता है!

और वो तुझे देवताओ की तरह सजाना,
कृष्ण के बाद मैंने सिर्फ़ तुझे सजाया है;
और हमेशा तुझे बड़ी सुन्दर पाया है!

तुझे मैंने हमेशा चाँद समझा है….
पूर्णिमा का चाँद!!!

आज तू बारह बरस की है,
और ,वो छोटी सी मेरी लड़की;
अब बड़ी हो रही है!

एक दिन वो छोटी सी लड़की बड़ी हो जाएँगी;
बाबुल का घर छोड़कर, पिया के घर जाएँगी!!!

फिर मैं दरवाजे पर खड़ा हो कर,
तेरी राह देखूंगा;
तेरे बिना, मेरी होली कैसी, मेरी दिवाली कैसी!
तेरे बिना; मेरा दशहरा कैसा,मेरी ईद कैसी!

तू जब जाए; तो एक वादा करती जाना;
हर जनम मेरी बेटी बन कर मेरे घर आना….

मेरी छोटी सी बिटिया,
तू कल भी थी,
आज भी है,
कल भी रहेंगी….
लेकिन तेरे बैगर मेरी ईद नही मनेगी..
क्योंकि मेरे ईद का तू चाँद है!!!

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8 टिप्पणियाँ

  1. विजय जी,
    भावनाओं का अद्भुत संगम प्रवाहित किया आपने
    अपने शब्दों के गहन विचारणीय प्रयोग से..

    आपने प्रेम और वात्सल्य का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है
    अपनी इस कविता के माध्यम से..

    मुझे आपकी यह लाइन तो बहुत ही सुंदर लगी जिसने सच मे
    वो अपने भी पुराने दिन याद दिला देती है..



    और वो तेरी छोटी छोटी उंगुलियों में शक्कर के दाने!
    और क्या क्या ......
    तेरा सारा बचपन बस अभी है, अभी नही है!!!


    बहुत सुंदर!!!
    धन्यवाद,

    जवाब देंहटाएं
  2. भावनाओं से परिपूर्ण सुन्दर कविता

    जवाब देंहटाएं
  3. एक दिन वो छोटी सी लड़की बड़ी हो जाएँगी;
    बाबुल का घर छोड़कर, पिया के घर जाएँगी!!!
    ek bhavuk kavita

    जवाब देंहटाएं
  4. सपत्ति जी आपकी भाव भरी कविता एक बार फिर से बीते दिनों में ले गयी..सचमुच समय कितनी जल्दी बीत जाता है पता ही नहीं चलता.. कल की वो छोटी सी बिटिया की आज की वो बड़ी बड़ी बातें याद आते ही अत्तीत एक बार सामने आ जाता है

    जवाब देंहटाएं
  5. Prem aur vaatsaly foot foot kar baahar aa rahaa hi ......Vijasy ji ....man ko gudgudaa gayee aapki rachnaa.........

    जवाब देंहटाएं
  6. माँ का हृदय पाया है आपने
    पुत्री के पिता सौभाग्य आपका
    छोटी छोटी अंगुलियों में शक्कर के दाने
    अभि से क्युँ सोचा जाना उसका न जाने
    ममतामयी स्नेहिल रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. betoyan to sada hi aangan ki nannhi kaliya hoti hai jinko ek din jab hota hai
    aap ki kavita bahut sunder hain
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं

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