
बिन कारण का कार्य ही, है विभावना मीत.
ज्यों प्रेयसी के दर्श बिन, जाग उठी हो प्रीत..
उदाहरण:
१. बिनु पद चले, सुने बिनु काना,
कर बिनु कर्म करे विधि नाना. - तुलसी
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।
२. सखि! इन नैनन ते घन हारे.
बिन ही ऋतु बरसत निशि-बासर,
सदा मलिन दोउ तारे.
३. नाचि अचानक ही उठे,
बिनु पावस वन मोर.
४. आनन रहित सकल रस भोगी.
५. नीर लिये नयनों के नभ में
कल्पित सपने टांक रहा हूं - दीपक गुप्ता
६.वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था,
हवाओं का रुख दिखा रहा था. -गुलज़ार
७.किस्मत हमको रो लेवे है,
हम किस्मत को रो ले हैं. - फिराक गोरखपुरी
८.दर्दे दरिया में आँसू भरे हुए
फरेबे आरजू ये हाथों धरे हुए
तब्दील हुई, शहर की तासीर
जज्बात भी पत्तों से झरे हुए
आए जब तूफां भरे हालात
सोच पुख्ता हौसले खरे हुए
खौफ तारी हर सूरतो कदम
धड़क रहे दिल आँखें डरे हुए
तेग थामेंगे हाथ कैसे सुरेश
मेरे ही दोस्त अदू हो परे हुए - डॉ. सुरेश तिवारी
९. उसको देखा भी नहीं, दे बैठे दिल हाय.
कलियों को देखे बिना भँवरा गीत सुनाय..-सलिल
20 टिप्पणियाँ
उसको देखा भी नहीं, दे बैठे दिल हाय.
जवाब देंहटाएंकलियों को देखे बिना भँवरा गीत सुनाय..
बेहतरीन.
सुन्दर जानकारी दी और एक से एक उदाहरण.आभार.
इस श्रंखला की सबसे खास बात है सलिल जी के दोहे में कही गयी परिभाषा तथा उदाहरण।
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंज्ञानवर्धन के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंNice Article. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
सलिक जी का ज्ञान अनुकरनीय है और प्रस्तुति प्रसंशनीय। आपके उदाहरण ही विषयवस्तु को समझा पाने में सक्षम होते हैं।
जवाब देंहटाएंबिन कारण का कार्य ही, है विभावना मीत.
जवाब देंहटाएंज्यों प्रेयसी के दर्श बिन, जाग उठी हो प्रीत..
धन्यवाद सलिल जी।
बहुत अच्छा आलेख, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसलिल जी आपके उदाहरण वैसे तो संमझाने में सफल होते हैं लेकिन आलेख इन दिनों अधिक संक्षिप्त हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंहवा से अनायास
पलट गया
डायरी का वो पन्ना
तुम्हारी याद आयी।
क्या इन पंक्तियों को मैं विभावना का उदाहरण मान सकती हूँ?
ITNEE SARAL JAANKAAREE SHAYAD HEE
जवाब देंहटाएंKAHIN AUR UPLABDH HO.
सच है कि एसी जानकारी नेट पर अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। सलिल जी को महति कार्य के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय। आपके स्तंभ की हमेशा प्रतीक्षा रहती है।
जवाब देंहटाएंआत्मीय पाठकों!
जवाब देंहटाएंआपकी रूचि हेतु धन्यवाद.
अनन्या जी!
आलेख के आकार से अधिक महत्व इस बात का है कि जो कहा जा रहा है वह संप्रेषित हो सका या नहीं? अब तक के किसी पाठ में पाठकों ने कथ्य स्पष्ट न होने की शिकायत नहीं की. केवल विस्तार के लिए लिखना उचित होगा क्या?
गद्य-पद्य में परिभाषा संक्षिप्त इसलिए है कि रुचिवान पाठक या शिक्षक उसका विस्तार अपने शब्दों में करें तथा सामान्य पाठक को अधिक लम्बा न लगे.
उदाहरण अधिक इसलिए कि हर पक्ष स्पष्ट हो तथा अलग-अलग काल व् कवियों की भाषा से पाठक परिचित हों. रचनाकार इनसे स्वयं की रचनाओं के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन पा सकें.
बहुधा प्रश्न ऐसे नहीं होते कि अधिक लम्बे उत्तर दिए जाएँ. आपके आदेश का पालन इस उत्तर को लम्बा कर कर दे रहा हूँ.
आपका उदाहरण पन्ना पलटने और याद आने में कोई अंतर्संबंध न हो तो ठीक है.
बार-बार अनुरोध किया है कि पाठक इन अलंकारों के नए उदाहरण स्वयं अथवा अन्य कवियों कि रचनाओं से लेकर भेजें, उर्दू तथा अन्य हिंदीतर भाषाओँ के उदाहरण भेजें तो यह श्रृंखला अधिक रोचक, शोधपूर्ण व पूर्ण होगी पर यह अनुरोध अब तक अनसुना ही है.
इसे मानना तो बड़ा कठिन है कि बिना कारण भी कुछ होता है | फिर भी काव्य इसे करने की छुट देता है तो बड़ा अच्छा है |
जवाब देंहटाएंमैं भी चाहता हूँ कि लेख और बड़ा हो जाये | लेकिन इससे लेख कि गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठा रहा हूँ |
आपके लेख किसी विज्ञान के लेख की तरह सार पूर्ण और मुद्दे पर ही होतें हैं | इसे साहित्य और विज्ञान का मिलन कहूंगा |
एक प्रयास इस विषय पर -
कल देर रात तक ,
चांदनी में जगता रहा,
सितारों को गिनता रहा,
सुबह सूरज की रोशनी में खो गया,
रात का जगा सुबह को सो गया ,
न जाने क्या होगया ?
अवनीश तिवारी
रात का जगा सुबह को सो गया ,
जवाब देंहटाएंयहाँ तो आपने सुबह सोने का कारण रात में जागने को बता दिया जबकि कारण न होना ही 'विभावना की शर्त है. शेष ठीक है.
Lajwab likha hai apne...!!
जवाब देंहटाएंjjjjjjjjjjjjjjjjjjj
जवाब देंहटाएंfdfd
जवाब देंहटाएंनाचि अचानक ही उठे,
जवाब देंहटाएंबिनु पावस वन मोर. Mujhe iska sapastikarn dijiye pls..
tnxs
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.