
आकांक्षा यादव अनेक पुरस्कारों से सम्मानित और एक सुपरिचित रचनाकार हैं।
राजकीय बालिका इंटर कालेज, कानपुर में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत आकांक्षा जी की कवितायें कई प्रतिष्ठित काव्य-संकलनों में सम्मिलित हैं।
आपने "क्रांति यज्ञ: 1857 - 1947 की गाथा" पुस्तक में संपादन सहयोग भी किया है।
अब नहीं लिखते वो खत
करने लगे हैं एस. एम. एस.
तोड़ मरोड़ कर लिखे शब्दों के साथ
करते हैं खुशी का इजहार
मिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
पिछले एस. एम. एस. का वजूद
एस. एम. एस. के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएँ सिमटती गईं
खो गयी सहेज कर रखने की परम्परा
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की कद्र का अहसास भी।
35 टिप्पणियाँ
बात तो सही है...दुनिया छोटी होती जा रही है और रिश्ते गौण।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
बहुत सुन्दर लोग इतने व्यस्त हो गये है की लिखने का समय भी नही है मानवता रिस्ते नाते सब छुटते जा रहे है
जवाब देंहटाएंआप कृपा करके एक बार मेरा भी ब्लोग भी पढकर देखें
http://jatshiva.blogspot.com/
क्या खूब लिखा आपने. दिल प्रसन्न हो गया.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता.खतों की बात ही कुछ और है...मेल और समस सूचना दे सकते हैं, संवेदना और भाव नहीं. आकांक्षा जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता.खतों की बात ही कुछ और है...मेल और समस सूचना दे सकते हैं, संवेदना और भाव नहीं. आकांक्षा जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंअब नहीं लिखते वो खत
जवाब देंहटाएंकरने लगे हैं एस. एम. एस.
तोड़ मरोड़ कर लिखे शब्दों के साथ
करते हैं खुशी का इजहार
मिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
पिछले एस. एम. एस. का वजूद
....bahut sahi andaj men jajbaton ko ukerati kavita...Congts.
मानवीय भावनाओं को छूती अति-सुन्दर छोटी सी, पर प्यारी कविता.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और वर्तमान स्थिति को उपयुक्त तरीके से बताती हुई कविता |
जवाब देंहटाएंSMS कविता अज के समाज का चेहरा दिखाती है. यह सही है की SMS के साथ ही भावनाएं भी सिमटती गयीं और रिश्ते भी..पर इलेक्ट्रॉनिक दौर में भावनाओं का कितना मोल बचा है, यह भी एक बहस का विषय है?
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर और मोहक कविता.
जवाब देंहटाएंमिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
जवाब देंहटाएंपिछले एस. एम. एस. का वजूद
एस. एम. एस. के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएं सिमटती गई
खो गई सहेज कर रखने की परम्परा.......Behad sanjidgi se likhi kavita hai..Badhai !!
एक अनूठी रचना !
जवाब देंहटाएंखतों की बात ही कुछ अलग है, उनसे प्यार व इंतजार जुदा हुआ है. पर समस तो इतने आते-जाते हैं कि रोज शाम को डिलीट करने पड़ते हैं...आकांक्षा जी कि कविता पहली नजर में ही आकर्षित करती है.
जवाब देंहटाएंखतों की बात ही कुछ अलग है, उनसे प्यार व इंतजार जुदा हुआ है. पर समस तो इतने आते-जाते हैं कि रोज शाम को डिलीट करने पड़ते हैं...आकांक्षा जी कि कविता पहली नजर में ही आकर्षित करती है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. लोग ख़त नहीं लिखेंगे तो डाकिया बाबू क्या करेगा. ख़त लिखते रहिये, यह दिलों को जोड़ता है.
जवाब देंहटाएंSMS से इतनी दिल्लगी सही नहीं है, कब डिलीट हो जाय किसने जाना. यह तो क्षणभंगुर प्राणी है.
जवाब देंहटाएंआकांक्षा जी! आपकी लेखनी से सुन्दर भाव परिलक्षित हो रहे हैं. SMS उसी का नतीजा है..शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंदरकते रिश्ते, दरकती संवेदनाएं, दरकते शब्द...सब अर्थ प्रधान युग का कमल है.आकांक्षा जी! आपकी नन्हीं सी कविता बहुत मासूमियत से सब कुछ कह जाती है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमाज बदल रहा है. व्यक्ति की सोच तथा जीवन शैली दिन-प्रतिदिन अपने तक सीमित होती जा रही है. तकनीक ने मनुष्य को सीमित कर दिया है, संवेदनहीन बना दिया है. आपकी कवितायेँ इस और लोगों का ध्यान आकृष्ट कर रही हैं...साधुवाद !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता। बधाई आकांक्षा जी।
जवाब देंहटाएंइस नज़रिए से तो हमनें कभी देखा ही नहीं था.....बहुत अच्छी कविता....
जवाब देंहटाएंसाभार
हमसफ़र यादों का.......
आकांक्षा जी,
जवाब देंहटाएंनाम को सार्थक करती हुई आपकी कविता 'एस.ऍम.एस'बदलती हुई परम्परा को प्रतिविम्बित करती है.बहुत ही सरल भाषा में आपने सिमटती
हुई अभिव्यक्ति की दुनिया को अपनी रचना में स्थान देकर एक सराहनीय कार्य किया है.बधाई!
किरण सिन्धु.
आकांक्षा,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब--
भावनाएँ सिमटती गईं
खो गयी सहेज कर रखने की परम्परा
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की कद्र का अहसास भी।
बधाई! कितना सच्च कह दिया.
खो गयी सहेज कर रखने की परम्परा
जवाब देंहटाएंलघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की कद्र का अहसास भी।
===
बहुत सुन्दर! पर मैने मोबाईल मे अभी भी सहेज कर रखे हुए है उनके अक्स
अहसास में रहेगी सदा
जवाब देंहटाएंसांस समय की
बदलाव की बयार बहेगी
बह रही है
सब कुछ कह रही है
छोटा होना ही है
आज बड़ा होना
टूटना ही है जुड़ना
दूर होना ही सिमटना
जिसे कहते हैं हम घटना
वो भी घटता कहां है
बढ़ता ही जाता है
घटना का घट भारी हो जाता है।
छोटी सी प्यारी सच्ची कविता...
जवाब देंहटाएंआपने यह क्या कह दिया आकांक्षा जी, आपने इतनी सही बात क्यों लिख दी, न जाने उन लोगों पर क्या गुजरेगी जो चिट्ठी लिखना ही नहीं जानते, उन्हें तो यह भी पता नहीं होगा कि पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्र किसे कहते हैं । जागो युवा पीढ़ी जागो, अपने फलक को विस्तार दो, संकुचित करते करते स्वयं भी संकुचित होते जा रहे हो ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता...सच कहा आपने
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंHappy icecream day.
जवाब देंहटाएंसमय की पुकार है..
जवाब देंहटाएंवनस्पति प्रिय होंगे वह.. कागज के लिये पेड को होम नहीं करना चाह रहे होंगे.. इसी लिये एस एम एस से काम चला रहे होंगे :)
सुन्दर कविता के लिये बधाई
बहूत ही सार्थक, yathaart रचना है........... सच में rishte chote होते जा रहे हैं.......
जवाब देंहटाएंआकांक्षा यादव का कवि-मन उनकी लघु-कविता "एस एम एस" में उत्तराधुनिक हो रहे समाज और उसमें निरंतर फैल रहे विज्ञान-उपकरणों की सुविधा से पगी बीमार आदतों और सिकुड़ती मानवीय संवेदनाओं की तलाश में विकल है। छोटी बहर की अत्यंत सफल कविता मानी जानी चाहिये। - सुशील कुमार
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.