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निंदा में भी प्रशंसा, व्याजस्तुति की रीत [काव्य का रचना शास्त्र: २०] - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'


व्याजस्तुति अलंकार हिंदी गीति-काव्य का एक अनूठा अलंकार है. सामान्यत: किसी की निंदा करें तो वह रूठ कर बैर पाल लेता है. इसलिए विद्वान् किसी की निंदा न करने की सलाह देते हैं किन्तु व्याजस्तुति ऐसी निंदा है जिसे करनेवाला निंदक रोष या क्रोध का पात्र नहीं बनता अपितु जिसकी निंदा की जाये वह प्रसन्न होकर निंदक पर स्नेह उडेलने लगता है.

जहाँ निंदा की आड़ में किसी की प्रशंसा की जाये वहाँ व्याजस्तुति अलंकार होता है. यह हर किसी के बस की बात नहीं है. इस अलंकार का प्रयोग करने के लिए भाषा पर अधिकार, समृद्ध शब्द-भंडार, बिम्ब तथा प्रतीकों की समझ तथा विषय के गुण-दोषों की जानकारी आवश्यक है.

साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।

आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।

आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।

वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।


काव्य में जहाँ प्रथमतः प्रत्यक्ष में किसी व्यक्ति या वस्तु की निंदा प्रतीत हो किन्तु वस्तुतः प्रशंसा का भाव निहित हो, वहाँ व्याजस्तुति अलंकार होता है.
निंदा में भी प्रशंसा, व्याजस्तुति की रीत.
निंदक पर सब उडेलें, नेह मान औ' प्रीत..

व्याजस्तुति निंदा अजब, लिए प्रशंसा-भाव.
बैर, द्वेष या क्रोध का, इसमें 'सलिल' अभाव..

ओढे निंदा-आवरण, जहाँ प्रशंसा-वाह.
व्याजस्तुति होती 'सलिल', नहीं डाह या आह..

उदाहरण:
१.
आडी-टेढी उग्र नर्मदा, दुष्टों को भी तार रहीं.
नरक रिक्त कर, 'सलिल' स्वर्ग भर,
कंकर-शंकर धार रहीं..

उक्त उद्धरण में प्रत्यक्षतः आड़े-टेढ़े व उग्रता के साथ बहने दुष्टों को भी मुक्ति देकर नर्क को खाली कर, स्वर्ग भर देने के लिए नर्मदा की निंदा की गयी प्रतीत होती है पर वस्तुतः उक्त तथा कंकर रुपी शंकर धारण करने के लिए नर्मदा का महिमा-गायन किया गया है.
२.
भस्म, जटा, विष, अहि सहित, गंग कियो तैं मोहि.
भोगी तैं जोगी कियो, कहा कहौं अब तोहि..

इन पंक्तियों में भी निंदा के बहाने गंगा की प्रशंसा का भाव निहित है. गंगा ने शिव को भस्म, जटा, विष और सर्पधारी बनाकर भोगी से योगी बना दिया. यह ऊपरी तौर पर निंदा प्रतीत होने पर भी वस्तुतः गंगा की सराहना ही है.
३.
मिट्टी की मटकी है मां..
रिसता ही रहता है
प्यार का जल बारह महीने ! -विपुल शुक्ल

यहाँ माँ की तुलना मिट्टी की मटकी से की गयी है, मटकी का रिसना उसका दोष है पर यहाँ इस दोष दर्शन में प्रशंसा-भाव निहित होने से व्याजस्तुति है.
४.
रसिक शिरोमणि, छलिया, ग्वाला,
माखनचोर, मुरारी.
वस्त्र-चोर, रणछोड़, हठीला,
मोह रहा गिरधारी.

इन पंक्तियों में कृष्ण भगवान की आलोचना निहित होने पर भी उनका गुण-गायन है. अतः, व्याजस्तुति है.
५.
तुम गिरि लै नख पै धरयो, इन तुम कौं दृग कोर.
दो मैं तैं तुम ही कहो, अधिक कियो केहि जोर? - ठाकुर पृथ्वी सिंह (संवत १६६०-१७१७)

इस दोहे में प्रत्यक्षतः श्री कृष्ण को निर्बल कहे जाने पर भी उनकी प्रशंसा ही निहित है. अतः, व्याजस्तुति है.
६.
बिंदी लाल लिलार पै, दई बाल यहि हेत.
समझें आवत दृग पथिक, खतरा कौ संकेत. -अम्बिकाप्रसाद 'दिव्य'

यहाँ माथे पर लाल टीका लगाई रमणी को खतरा कहे जाने पर भी परोक्षतः प्रशंसा-भाव निहित होने से व्याजस्तुति है.

व्याजस्तुति का प्रयोग वर्तमान संदर्भों में बहुत कम हुआ है. पाठक इस अलंकार से सजी अपनी या अन्य कवियों की रचनाओं के उदाहरण भेजें.

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22 टिप्पणियाँ

  1. जैसे हीरे की अंगूठी
    हो जाता ग्रसित सूरज
    क्रोध में भी आँखें चमचमाती तुम्हारी
    प्यारी हो जाती हैं।

    मेरी यह व्याज स्तुति आपकी राय के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  2. निंदा में भी प्रशंसा, व्याजस्तुति की रीत.
    निंदक पर सब उडेलें, नेह मान औ' प्रीत..

    आलेख के लिये धन्यवाद सलिल जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. "व्याजस्तुति ऐसी निंदा है जिसे करनेवाला निंदक रोष या क्रोध का पात्र नहीं बनता अपितु जिसकी निंदा की जाये वह प्रसन्न होकर निंदक पर स्नेह उडेलने लगता है" नितांत सहजता से आप समझाते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. व्याजस्तुति निंदा अजब, लिए प्रशंसा-भाव.
    बैर, द्वेष या क्रोध का, इसमें 'सलिल' अभाव..

    ज्ञानवर्धन हुआ।

    जवाब देंहटाएं
  5. आचार्य सलिल जी का काम बहुत महत्व का है। अलंकार के इतने रूपों पर प्रकाश डालना और एसी स्तरीय सामग्री की निरंतरता के साथ; यह कोई मजाक नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  6. आचार्य संजीव सलिल जी के संग्रहणीय लेखों की हमेशा प्रतीक्षा रहती है।

    जवाब देंहटाएं
  7. निंदा में भी प्रशंसा तो एक पहलु हुआ कई बार प्रशंसा में भी निंदा छिपी होती है। क्या इसका भी व्याजस्तुति अलंकार से कोई संबंध है?

    जवाब देंहटाएं
  8. हमेशा की तरह संग्रहणीय आलेख है।

    जवाब देंहटाएं
  9. फिर से कहूँगा कि आपके उदाहरण और दोहे में कही गयी परिभाषाओं का जवाब नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीय संजीव सलिल जी का आभार कि आपने कविता को बारीकी से समझने का यह अवसर हमें व साहित्य शिल्पी परिवार को प्रदान किया। आपका कार्य महत्वपूर्ण है जो सर्वदा एक रिफ्रेंस सामग्री बन कर हिन्दी की सेवा करता रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  11. VIDVATAPOORN LEKH KE LIYE ACHARYA JEE KO BADHAAEE.

    जवाब देंहटाएं
  12. सभी पाठको का धन्यवाद तथा टिप्पणीकारों का आभार.

    nitesh ने कहा…
    जैसे हीरे की अंगूठी
    हो जाता ग्रसित सूरज
    क्रोध में भी आँखें चमचमाती तुम्हारी
    प्यारी हो जाती हैं।

    मेरी यह व्याज स्तुति आपकी राय के लिये।

    नितेश जी के इस महत्वपूर्ण उदाहरण पर अपना मत व्यक्त करने के पूर्व मैं सभी पाठकों व टिप्पणीकारों का मत आमंत्रित करता हूँ. अंत में मेरे मत से उन्हें खुद के मत को परखने का अवसर मिलेगा.

    निधि अग्रवाल ने कहा…
    निंदा में भी प्रशंसा तो एक पहलु हुआ कई बार प्रशंसा में भी निंदा छिपी होती है। क्या इसका भी व्याजस्तुति अलंकार से कोई संबंध है?

    निधि जी! आने
    सुना होगा 'जो मजा इन्तिज़ार में है वो विसाले-यार में नहीं' आप भी इन्तिज़ार की घड़ियों का मजा लीजिये. आपके प्रश्न का उत्तर इस लेखमाला की अगली कड़ी में मिलेगा.

    राजीव जी!

    मैं अपनी कसौटी पर खुद को असफल पा रहा हूँ .
    अब तक जितने अलंकार चर्चा में आये हैं अगर उन्हें पाठक और रचनाकार समझ सके होते तो प्रकाशित हो रही रचनाओं तथा पाठकों के पत्रों में उनका उल्लेख बढा होता.

    अब भी कविता को सुन्दर कहनेवाले घटे नहीं हैं. सुन्दरता आकार से जुडी होती है. कविता का आकार केवल छोटा या बड़ा होता है सुन्दर या असुंदर नहीं. कविता सरस या नीरस होती है. कविता को सुन्दर कहना वैसे ही गलत है जैसे किसी रूपसी को स्वादिष्ट कहना अस्तु...

    काश हम हिन्दीभाषी हिंदी के साथ अनाचार करना छोड़ सकें.

    जवाब देंहटाएं
  13. "सलिल" जी!
    बड़ी हीं आसानी से आप हर बात को समझा जाते हैं। नित्य नए अलंकारों को जानने का हमें अवसर प्राप्त हो रहा है, इसके लिए मैं आपका तह-ए-दिल से आभारी हूँ।

    आपने अपनी टिप्पणी में जो सुंदरता और कविता की बात की है, वो मुझे सही से समझ नहीं आई। कृप्या उस पर प्रकाश डालेंगे।

    धन्यवाद,
    विश्व दीपक

    जवाब देंहटाएं
  14. तनहा जी!

    आप सहमत होंगे कि हर शब्द एक विशिष्ट अर्थ में प्रयोग किया जाता है.

    विशेषणों का प्रयोग विशेषता बताने के लिए होता है.

    सुन्दरता किसी आकार से सम्बन्ध रखती है. निराकार वास्तु न तो सुन्दर हो सकती है न असुंदर, जैसे हवा. कविता की विशेषता उसके भाव, रस, अलंकार, बिम्ब, प्रतीक, सामयिकता, सन्देश, लय, मधुरता, मर्मस्पर्शिता, ह्रदय-बेधकता आदि हैं. कविता का आकार क्या है? उसे केवल बड़ी या छोटी पंक्ति संख्या के आधार पर कह सकते हैं. उसे पतला-मोटा, सुन्दर-असुंदर, स्वादिष्ट-बेस्वाद, रम्य, मोहक नहीं कह सकते. कविता को सुन्दर कहना उतना ही गलत है जितना किसी सुन्दर वस्तु, दृश्य या व्यक्ति को स्वादिष्ट कहना.

    किसी विशेषण का प्रयोग करने के पूर्व उसका अर्थ जानना जरूरी है. हम शिक्षा के आरम्भ से भाषा को सबसे कम महत्त्व देते हैं जबकि भाषा ही हर विषय को समझाने का माध्यम है. शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी सभी गणित और विज्ञानं को अधिक महत्त्व देते हैं. भाषा की समझ प्रारंभ से ही विकसित नहीं हो पाती. इसी कारण ऐसी त्रुटियां करनेवाले को वे गलत नहीं लगतीं.

    जवाब देंहटाएं
  15. हाय!हाय! बड़ी क़ातिल लग रही हो।
    क्या ये व्याजस्तुति अलंकार का उदाहरण हो सकता है?

    जवाब देंहटाएं

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