
13 जुलाई को सावन माह का पहला सोमवार था। सावन में तीज का त्योहार मनाया जाता है। राजस्थान में इसे हरियाली तीज और उत्तर प्रदेश में कजरी तीज या माधुरी तीज कहा जाता है। हरापन समृद्धि का प्रतीक है। स्त्रियाँ हरे परिधान और हरी चूड़ियाँ पहनती हैं। हरे पत्तों और लताओं से झूलों को सजाया जाता है। झूले और कजरी के बिना सावन की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारे यहाँ हर त्योहार के पीछे कोई न कोई सामाजिक या वैज्ञानिक कारण होता है। कुछ लोगों का कहना है कि बरसात में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। झूला झूलने से हमें अधिक ऑक्सीजन मिलती है।
कजरी में प्रेम के दोनों पक्ष यानी संयोग और वियोग दिखाई देते हैं। कभी-कभी इसके पीछे बड़ी मार्मिक दास्तान भी होती है। आज़ादी के आंदोलन का दौर था। शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ था । एक नौजवान अपने प्रियतम से मिलने जा रहा था। एक अँग्रेज़ सिपाही ने गोली चला दी। मारा गया। मगर वह आज भी कजरी में ज़िंदा है - 'यहीं ठइयाँ मोतिया हेराय गइले रामा हो...।'

4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्मे देवमणि पांडेय हिन्दी और संस्कृत में प्रथम श्रेणी एम.ए. हैं।
अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रिय कवि और मंच संचालक के रूप में सक्रिय हैं। अब तक आपके दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- "दिल की बातें" और "खुशबू की लकीरें"।
मुम्बई में एक केंद्रीय सरकारी कार्यालय में कार्यरत पांडेय जी ने फ़िल्म 'पिंजर', 'हासिल' और 'कहाँ हो तुम' के अलावा कुछ सीरियलों में भी गीत लिखे हैं। फ़िल्म 'पिंजर' के गीत "चरखा चलाती माँ" को वर्ष 2003 के लिए 'बेस्ट लिरिक आफ दि इयर' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आपके द्वारा संपादित सांस्कृतिक निर्देशिका 'संस्कृति संगम' ने मुम्बई के रचनाकारों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई है।
मिर्ज़ापुर कइले गुलज़ार हो ...कचौड़ी गली सून कइले बलमू...
यही मिर्ज़ापुरवा से उड़ल जहजिया
पिया चलि गइले रंगून हो... कचौड़ी गली सून कइले बलमू...
इस कजरी को शास्त्रीय गायिका डॉ.सोमा घोष जब मुम्बई के एक कार्यक्रम में गा रही थीं तो उनके साथ संगत कर रहे थे भारतरत्न स्व.उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ। उन्होंने शहनाई पर ऐसा करुण सुर उभारा जैसे कलेजा चीरकर रख दिया हो। भाव भी कुछ वैसे ही कलेजा चाक कर देने वाले थे। प्रिय के वियोग में धनिया पेड़ की शाख़ से भी पतली हो गई है। शरीर ऐसे छीज रहा है जैसे कटोरी में रखी हुई नमक की डली गल जाती है -
डरियो से पातर भइल तोर धनिया
तिरिया गलेल जैसे नोन हो... कचौड़ी गली सून कइले बलमू...
डॉ.सोमा घोष को स्व.उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ अपनी पुत्री मानते थे। सोमा जी हर साल उस्तादजी की याद में कार्यक्रम करती हैं। पिछले साल के कार्यक्रम में उन्होंने 'यादें' नामक सीडी रिलीज़ की। उसमें यह लाइव कजरी शामिल है।
25 साल से मुंबई में हूँ। अपने गाँव में आख़िरी बार जो झूला देखा था उसकी स्मृतियाँ अभी भी ताज़ा हैं।आँख बंद करता हूँ तो झूले पर कजरी गाती हुई स्त्रियाँ दिखाईं पड़ती हैं - 'अब के सावन मां साँवरिया तोहे नइहरे बोलइब ना।' उन्हीं स्मृतियों के आधार पर लिखे गए चार गीत आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।
महीना सावन का
उमड़-घुमड़ आए कारे-कारे बदरा
प्यार भरे नैनों में मुस्काया कजरा
बरखा की रिमझिम जिया ललचाए
भीग गया तनमन भीग गया अँचरा
सजनी आंख मिचौली खेले बांध दुपट्टा झीना
महीना सावन का
बिन सजना नहीं जीना महीना सावन का
मौसम ने ली है अंगड़ाई
चुनरी उड़ि उड़ि जाए
बैरी बदरा गरजे बरसे
बिजुरी होश उड़ाए
घर-आंगन, गलियां चौबारा आए चैन कहीं ना
खेतों में फ़सलें लहराईं
बाग़ में पड़ गये झूले
लम्बी पेंग भरी गोरी ने
तन खाए हिचकोले
पुरवा संग मन डोले जैसे लहरों बीच सफ़ीना
बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
महक उठी पुरवाई
मन की चोरी पकड़ी गई तो
धानी चुनर शरमाई
छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना
कजरी गाएं सखियां सारी
मन की पीर बढ़ाएं
बूंदें लगती बान के जैसे
गोरा बदन जलाएं
अब के जो ना आए संवरिया ज़हर पड़ेगा पीना
*****
सावन के सुहाने मौसम में
खिलते हैं दिलों में फूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
होती है सभी से भूल सनम सावन के सुहाने मौसम में ।
यह चाँद पुराना आशिक़ है
दिखता है कभी छिप जाता है
छेड़े है कभी ये बिजुरी को
बदरी से कभी बतियाता है
यह इश्क़ नहीं है फ़िज़ूल सनम सावन के सुहाने मौसम में।
बारिश की सुनी जब सरगोशी
बहके हैं क़दम पुरवाई के
बूंदों ने छुआ जब शाख़ों को
झोंके महके अमराई के
टूटे हैं सभी के उसूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
यादों का मिला जब सिरहाना
बोझिल पलकों के साए हैं
मीठी सी हवा ने दस्तक दी
सजनी कॊ लगा वॊ आए हैं
चुभते हैं जिया में शूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
*****
झूम के बादल छाए हैं
तेरी चाहत , तेरी यादें , तेरी ख़ुशबू लाए हैं ।
बरसों बाद हमारी छत पर झूम के बादल छाए हैं ।
सावन का संदेस मिला जब
महक उठी पुरवाई
बूंदों ने छेड़ी है सरगम
रुत ने ली अंगड़ाई
मन के आंगन में यादों के महके महके साए हैं ।
जब धानी चूनर लहराई
बाग़ में पड़ गए झूले
मन में फूल खिले कजरी के
तन खाए हिचकोले
बिजुरी के संग रास रचाते मेघ प्यार के आए हैं ।
दिन में बारिश की छमछम है
रातों में तनहाई
किसने लूटा चैन दिलों का
किसने नींद चुराई
दिल जलता है लेकिन आँसू आँख भिगोने आए हैं ।
*****
बरसे बदरिया
बरसे बदरिया सावन की
रुत है सखी मनभावन की
बालों में सज गया फूलों का गजरा
नैनों से झांक रहा प्रीतभरा कजरा
राह तकूं मैं पिया आवन की
बरसे बदरिया सावन की
चमके बिजुरिया मोरी निंदिया उड़ाए
याद पिया की मोहे पल पल आए
मैं तो दीवानी हुई साजन की
बरसे बदरिया सावन की
महक रहा है सखी मन का अँगनवा
आएंगे घर मोरे आज सजनवा
पूरी होगी आस सुहागन की
बरसे बदरिया सावन की
**********
15 टिप्पणियाँ
बालों में सज गया फूलों का गजरा
जवाब देंहटाएंनैनों से झांक रहा प्रीतभरा कजरा
राह तकूं मैं पिया आवन की
बरसे बदरिया सावन की
-सभी रचनाऐं एक से बढ़कर एक!! वाह!! आनन्द आ गया.
Its raining outside and i am reading your poems again and again.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
तीनों ही रचनायें भिगोने वाली हैं।
जवाब देंहटाएंबारिश के सभी रंग आपकी कविताओं में झूम कर आये हैं:
जवाब देंहटाएंउमड़-घुमड़ आए कारे-कारे बदरा
प्यार भरे नैनों में मुस्काया कजरा
बरखा की रिमझिम जिया ललचाए
भीग गया तनमन भीग गया अँचरा
सजनी आंख मिचौली खेले बांध दुपट्टा झीना
महीना सावन का
बिन सजना नहीं जीना महीना सावन का
सारे गीत बहुत सुंदर हैं .. बारिश तो है नहीं इस वर्ष .. इन्हें पढकर ही सारे रंग देख लिए !!
जवाब देंहटाएंdevmaniji,
जवाब देंहटाएंbahut sundar !
atyant manbhavan...savan ki baat
hay re.........aanand aagaya
badhaai !
देवमणि जी आपका काव्य-मल्हार बहुत पसंद आया। सभी रचनायें अच्छी हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कवितायें, बधाई।
जवाब देंहटाएंसावन के तीनों गीत अनुपम हैं। बधाई देवमणि जी।
जवाब देंहटाएंबरसात में बरसात के गीत पढने का आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंSavan ke geeton ka anand hi alag hai...wakai lajwab !!
जवाब देंहटाएंतेरी चाहत , तेरी यादें , तेरी ख़ुशबू लाए हैं ।
जवाब देंहटाएंबरसों बाद हमारी छत पर झूम के बादल छाए हैं ।
सावन के गीत पढ़ कर मन आनंद विभोर हो उठा. बधाई हो पाण्डेय जी.
Bhaut achhi kavita
जवाब देंहटाएंBahut khub
Bhaut achhi kavita
जवाब देंहटाएंBahut khub
Very Nycc Poem
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.