
समय ! धीरे धीरे चल !
कितने हैं बाकी काम अभी,
कुछ तुझको भी है ध्यान ?
सब तुझसे बंध कर चलते हैं
उन्हें भी याद कर , नादान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
जो बिछडे साथी हैं उनका भी
कर लिहाज धर बाँह सभी,
भूखे, प्यासे मानव दल का,
बनना होगा विश्वास अभी -
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
ना व्यर्थ गँवाना अपने को,
शोर शराबे भरी गलियों में,
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रंगरेली हो,
क्या उनसे ही हो बात सभी ?
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
राह तकें राजा रंक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्यगान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
इस पृथ्वी पट पर तू है,
भूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
11 टिप्पणियाँ
LAVANYA JEE KEE LEKHNI NE EK AUR
जवाब देंहटाएंACHCHHA GEET DIYA HAI.
बहुत सुन्दर गीत है लावण्या जी। बधाई।
जवाब देंहटाएंतज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
जवाब देंहटाएंरच आज कोई नव शौर्यगान!
sundar
Avaneesh Tiwari
बहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंसमय को सुंदर संबोधन।
जवाब देंहटाएंसमय को एक नया aayaam दिया है.......... sundar prabhaavi रचना
जवाब देंहटाएंBAHOT PASAND AAYEE YE RACHANAA WESE BHI LAVANYA DIDI KE KALAM KE JOR KE BAARE ME KUCHH BHI KAHNAA MERE KUBE KE TO BAAHAR KI BAAT HAI BAHOT HI KHUBSURAT RACHANAA SALAAM INKE LEKHANI KO...
जवाब देंहटाएंARSH
हम समय के पुजारी हैं. महाकाल की उपासना हमारी विरासत है. सामयिक परिप्रेक्ष्य में समय को आराधती यह रचना पठनीय मात्र नहीं अपितु मननीय भी है. लावण्या जी को साधुवाद.
जवाब देंहटाएंसिर्फ समय ही तो बस में नहीं है हमारे
जवाब देंहटाएंहोता तो दुनिया में दुखी नहीं होते सारे
एक सुंदर गीतनुमा कविता, बधाई ।
सिर्फ समय ही तो बस में नहीं है हमारे
जवाब देंहटाएंहोता तो दुनिया में दुखी नहीं होते सारे
एक सुंदर गीतनुमा कविता, बधाई ।
सुन्दर भावभरी रचना है..परन्तु समय कहां धीरे चलता है.. सब को उसी के साथ कदम मिलाना पडता है..
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.