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माँ [कविता] - विपुल शुक्ला


मेरे हिस्से की
परेशानियां झेल लेती है
जैसे रोटी और आग के बीच
आ जाये तवा.. !
मां..

कवि परिचय:-
गाडरवारा, जिला नरसिंहपुर में 28 मार्च, 1988 को जन्मे विपुल शुक्ला की पूरी शिक्षा-दीक्षा भोपाल के निकट होशंगाबाद मे हुई। इन्होंने जिस विद्यालय मे शिक्षा ग्रहण की उसी में इनकी माताश्री श्रीमती आभा शुक्ला हिन्दी की शिक्षिका थीं। काव्य प्रतिभा इन्हें अपनी माँ से विरासत मे मिली है। अपनी पहली कविता इन्होंने विद्यालय की पत्रिका "प्रगति" के लिये कक्षा ग्यारहवीं में लिखी।

वर्तमान में रसायन अभियांत्रिकी के छात्र विपुल अनेक प्रतिष्ठित अंतर्जाल पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं तथा अनेक कवि-सम्मेलनों में भी शिरकत कर चुके हैं

सुई की पीठ पर पडा
छेद है
जिसने अपने अंतस से
धागे को पिरोकर
सिये हैं हमारे जीवन के
सबसे उधडॆ हुये पल !
खुद पर लटका लेती है वो
हमारे जज़्बात,
मुश्किलें और परेशानियां

दरवाजे के पीछे,
दीवार पर लगी कील है मां !
अपनी हसरतों के
एक-एक पायदान पर चढाकर
पहुंचाती है ऊंचाई तक
पता है..
ऊंचाई पर सीढी खुद नहीं रहती
वो तो बस रास्ते में रहती है
मां की तरह !

अगर घर है शिवालय
तो हम सबके सिर पर लटकी
मिट्टी की मटकी है मां..
रिसता ही रहता है
प्यार का जल बारह महीने !

मां..
भगवान के भोग में डली
तुलसी की पत्ती है.. जिसके बिना
स्वीकार नहीं करते वो कुछ भी !

पिछ्ले बयालीस सालों से
बैठी है
वेटिंग रूम में..
कर रही है इंतज़ार
लेट हो गयी है
खुशियों की ट्रेन !
मेरी मज़बूत मां की आंखें
भर आती हैं आजकल बेबात ही
कमज़ोर हो रही हैं
बांध की दीवारें !
दोनो हाथों से
खोद रहा हूं मैं
बडी बडी नहरें..
ताकि निकाल सकूं
अभावों का सारा पानी
और मिल पाये दीवार को
थोडी सी राहत!

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11 टिप्पणियाँ

  1. एक भाव पूर्ण रचना ... निदा फाजली साहब की माँ कविता याद आ गयी .. क्लाइमेक्स अच्छा है बहुत. अपने आप ही में एक कविता है क्लाइमेक्स . सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  2. ताज्जुब है किसी और ने टिप्पणी नहीं की थी अब तक . कविता वाकई बहुत अच्छी है ..

    जवाब देंहटाएं
  3. माँ के ममत्व से भरपूर एक प्रभावी कविता


    बधाई स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
  4. गहरे मनोभावों से युक्त कविता।

    जवाब देंहटाएं
  5. Aapki is kavita par kuch shabd mere bhi:

    Sadiyuon se banati aayee hain peediyan
    Aane waali peddiyuon ke liye seedhiyan

    aapka
    Neelesh
    Aap mere blog par ek kavita maa par pad sakte hain.. blog pata hai:
    http://www.yoursaarathi.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर लिखा है अगर घर है शिवालय तो हम सबके सिर पर लटकी हुई मटकी है मां
    लोग मां बाप के प्रति संवेदनहीन होते जा रहे आपके विचार पढकर बहुत प्रभाव पङेगा मैंने भी लिखा है मां का आंचल कृपा पढकर देखना
    मेरा ब्लोग भी एक वार पढकर देखे
    http://jatshiva.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  7. अच्छा लिखा है,

    माँ का ममत्व निश्चय ही बहुत महान है, और उसका बड़ी ही खूबसूरती से चित्रण किया है,

    इसी तरह लिखते रहो हम सभी को तुमसे बहुत उम्मीदें है.

    जवाब देंहटाएं
  8. पिछ्ले बयालीस सालों से
    बैठी है
    वेटिंग रूम में..
    कर रही है इंतज़ार
    लेट हो गयी है
    खुशियों की ट्रेन !
    मेरी मज़बूत मां की आंखें
    भर आती हैं आजकल बेबात ही
    कमज़ोर हो रही हैं
    बांध की दीवारें !
    दोनो हाथों से
    खोद रहा हूं मैं
    बडी बडी नहरें..
    ताकि निकाल सकूं
    अभावों का सारा पानी
    और मिल पाये दीवार को
    थोडी सी राहत!

    behad bhawpurna aur mahaan panktiyan hain yeh jisne mere antarman ke saare baandhon ko gira diya....mere paas shabd nahin hain is kavita ke liye, main nahi samajhti ki yeh paripurna rachna ke baare me likh kar iske saath nyay kar sakoongi...wakai achchi hai...badhai!!

    जवाब देंहटाएं

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