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अभी जो कोंपलें फूटी हैं [ग़ज़ल] - गौतम राजरिशी


अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
कहानी कल लिखेंगी ये समय की देहलीजों पर

किताबों में हैं उलझे ऐसे अब कपड़े नये कोई
जरा ना माँगते बच्चे ये त्योहारों व तीजों पर

हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर

न पूछो दास्तां महलों में चिनवायी मुहब्बत की
लुटे हैं कितने तख्तो-ताज यां शाही कनीजों पर

वो नजदीकी थी तेरी या थी मौसम में ही कुछ गर्मी
तू ने जो हाल पूछा तो चढ़ा तप और मरीजों पर

लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर

भला है जोर कितना,देख,इन पतले-से धागों में
टिकी है मेरी दुनिया मां की सब बाँधी तबीजों पर
रचनाकार परिचय:-
मेजर गौतम राजरिशी का जन्म १० मार्च, १९७६ को सहरसा (बिहार) में हुआ। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी व भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत वर्तमान में आप कश्मीर में पदस्थापित हैं।
गज़ल व हिन्दी-साहित्य के शौकीन गौतम राजरिशी की कई रचनायें कादम्बिनी, हंस आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।

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22 टिप्पणियाँ

  1. अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
    कहानी कल लिखेंगी ये समय की देहलीजों पर

    परिपक्व और सशक्त ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  2. बीजों के अंकुरण को कोंपलों का फूटना लिखना बिम्ब की दृष्टि से क्या सही है? भाव की दृष्टि से कोई कमी नहीं बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है।

    जवाब देंहटाएं
  3. लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
    हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर
    बेहतरीन मेजर साहब।

    जवाब देंहटाएं
  4. हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
    वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर

    अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
    कहानी कल लिखेंगी ये समय की देहलीजों पर
    क्या कहूँ नि्शब्द हूँ लाजवाब एहसास हैं आपके पा्स
    ऐसी संवेदनायें किसी खास शख्सीयत मे ही हो सकती हैं बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर लगी आपकी यह गजल


    लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
    हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर

    जवाब देंहटाएं
  6. भला है जोर कितना,देख,इन पतले-से धागों में
    टिकी है मेरी दुनिया मां की सब बाँधी तबीजों पर
    ...behatrin bhavabhivyakti !!

    जवाब देंहटाएं
  7. गौतम जी,
    आपकी गजल 'अभी जो कोंपलें फूटी हैं' पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. दिल की गहराइयों से लिखा है.---
    "पढ़ कर तेरे ख़्याल मन ये सोंचने लगा है;
    फौजी जिगर में दर्द ये बसता कहाँ है,
    कन्धों पर थामे हुए हथियार फौलादी ;
    उंगलियाँ रचती मगर सुकुमार बयाँ है"
    बहुत - बहुत बधाई!
    किरण सिन्धु.

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  8. हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
    वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
    bahut sundar....

    जवाब देंहटाएं
  9. गौतम जी सचमुच ये कोपलें भारत की खेती को अवश्य लहलहाएगी....

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह गौतम, छा गये भई..बेहतरीन!!

    जवाब देंहटाएं
  11. हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
    वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
    Dear Gautma is she'r ne nihal kar dia.Aur matle me Anil ne sahi kaha ke beejoN se ankur nikalne chahiye,,,konple to tahniyoN par phooTte haiN lekin..is she'r
    हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
    वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
    pe qurbaan..jiyo bahut sundar aaj tak ka sabse best she'r hai ye aapka.

    जवाब देंहटाएं
  12. हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
    वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर

    भला है जोर कितना,देख,इन पतले-से धागों में
    टिकी है मेरी दुनिया मां की सब बाँधी तबीजों पर

    मज़ा हि आ गया ये शेर पढकर तो..वाह-वाह..

    जवाब देंहटाएं
  13. लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
    हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर
    .....


    लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
    हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर


    waah....kya baat hai....bahut khoob....


    aabhar...

    जवाब देंहटाएं
  14. हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
    वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर

    Wah kya baat hai

    Aapki gazal ke har sher mein wah kah uthi

    magar upar wala sher bahut gudguda dene wala tha

    जवाब देंहटाएं

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