
अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
कहानी कल लिखेंगी ये समय की देहलीजों पर
किताबों में हैं उलझे ऐसे अब कपड़े नये कोई
जरा ना माँगते बच्चे ये त्योहारों व तीजों पर
हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
न पूछो दास्तां महलों में चिनवायी मुहब्बत की
लुटे हैं कितने तख्तो-ताज यां शाही कनीजों पर
वो नजदीकी थी तेरी या थी मौसम में ही कुछ गर्मी
तू ने जो हाल पूछा तो चढ़ा तप और मरीजों पर
लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर
भला है जोर कितना,देख,इन पतले-से धागों में
टिकी है मेरी दुनिया मां की सब बाँधी तबीजों पर
मेजर गौतम राजरिशी का जन्म १० मार्च, १९७६ को सहरसा (बिहार) में हुआ। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी व भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत वर्तमान में आप कश्मीर में पदस्थापित हैं।
गज़ल व हिन्दी-साहित्य के शौकीन गौतम राजरिशी की कई रचनायें कादम्बिनी, हंस आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
अपने ब्लाग "पाल ले एक रोग नादाँ" के माध्यम से वे अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं।
22 टिप्पणियाँ
अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
जवाब देंहटाएंकहानी कल लिखेंगी ये समय की देहलीजों पर
परिपक्व और सशक्त ग़ज़ल।
बीजों के अंकुरण को कोंपलों का फूटना लिखना बिम्ब की दृष्टि से क्या सही है? भाव की दृष्टि से कोई कमी नहीं बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है।
जवाब देंहटाएंलेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
जवाब देंहटाएंहँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर
बेहतरीन मेजर साहब।
बहुत अच्छी ग़ज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रत्येक शेर प्रसंशनीय है।
जवाब देंहटाएंNice Gazal. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
जवाब देंहटाएंवो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
कहानी कल लिखेंगी ये समय की देहलीजों पर
क्या कहूँ नि्शब्द हूँ लाजवाब एहसास हैं आपके पा्स
ऐसी संवेदनायें किसी खास शख्सीयत मे ही हो सकती हैं बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्
बहुत सुन्दर लगी आपकी यह गजल
जवाब देंहटाएंलेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर
भला है जोर कितना,देख,इन पतले-से धागों में
जवाब देंहटाएंटिकी है मेरी दुनिया मां की सब बाँधी तबीजों पर
...behatrin bhavabhivyakti !!
गौतम जी,
जवाब देंहटाएंआपकी गजल 'अभी जो कोंपलें फूटी हैं' पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. दिल की गहराइयों से लिखा है.---
"पढ़ कर तेरे ख़्याल मन ये सोंचने लगा है;
फौजी जिगर में दर्द ये बसता कहाँ है,
कन्धों पर थामे हुए हथियार फौलादी ;
उंगलियाँ रचती मगर सुकुमार बयाँ है"
बहुत - बहुत बधाई!
किरण सिन्धु.
उम्दा गज़ल
जवाब देंहटाएंहैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
जवाब देंहटाएंवो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
bahut sundar....
kya khoob ghazal !
जवाब देंहटाएंbahut khoob ghazal !
waah !
waah !
गौतम जी सचमुच ये कोपलें भारत की खेती को अवश्य लहलहाएगी....
जवाब देंहटाएंbehatreen ghazal waaaaaaaah
जवाब देंहटाएंवाह गौतम, छा गये भई..बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंजोरदार
जवाब देंहटाएंहैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
जवाब देंहटाएंवो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
Dear Gautma is she'r ne nihal kar dia.Aur matle me Anil ne sahi kaha ke beejoN se ankur nikalne chahiye,,,konple to tahniyoN par phooTte haiN lekin..is she'r
हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
वो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
pe qurbaan..jiyo bahut sundar aaj tak ka sabse best she'r hai ye aapka.
कमाल.......लाजवाब ......
जवाब देंहटाएंहैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
जवाब देंहटाएंवो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
भला है जोर कितना,देख,इन पतले-से धागों में
टिकी है मेरी दुनिया मां की सब बाँधी तबीजों पर
मज़ा हि आ गया ये शेर पढकर तो..वाह-वाह..
लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
जवाब देंहटाएंहँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर
.....
लेगा ये वक्त करवट फिर नया इक दौर आयेगा
हँसेगी ये सदी तब चंद लम्हों की तमीजों पर
waah....kya baat hai....bahut khoob....
aabhar...
हैं देते खुश्बू अब भी तेरी हाथों वाली मिहदी की
जवाब देंहटाएंवो टाँके थे बटन जो तू ने मेरी कुछ कमीजों पर
Wah kya baat hai
Aapki gazal ke har sher mein wah kah uthi
magar upar wala sher bahut gudguda dene wala tha
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.