
"ओफ्फो!...पता नहीं कब अकल आएगी तुम्हें?'
"चलते वक्त देख तो लिया करो कम से कम कि पैर कहाँ पड रहे हैँ और नज़रें कहाँ घूम रही हैँ।" बीवी चिल्लाई
"क्यों?...क्या हुआ?"...
"कुछ तो शर्म करो...तुम्हारी बच्ची की उम्र की है"...
"तो?"...
"किसी को तो बक्श दिया करो कम से कम"...
"अरे!...सिर्फ देख ही तो रहा था और वैसे भी कौन सा तुम्हारी रिश्तेदार लगती है"...
"अरे!...अगर रिश्तेदार हो तो मैँ कभी परवाह भी ना करूँ लेकिन तुम ये जो हर किसी के पीछे लाईन लगाना शुरू कर देते हो...ये मुझे मंज़ूर नहीं"...
"अरे!..लड़की...लड़की होती है...उसके रिश्तेदार होने...या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता"...
"हाँ-हाँ!...तुम्हें क्यों फर्क पड़ने लगा?...तुम्हें तो बस लडकी दिखनी चाहिए..भले ही जैसी भी हो....ऐंगी-बैंगी...आडी-तिरछी...कोई भी चलेगी"..
"क्यों?...है कि नहीं?"...
"वैरी क्लैवर"...
"कमाल है....
तुम तो यार!..मेरी पसन्द-नापसन्द से अच्छी तरह वाकिफ हो".....
"हुँह!...लडकी दिखी नहीं कि जनाब चल देते हैँ सीधा नाक की सीध में मुँह उठा के और बात करते हैँ पसन्द-नापसन्द की"...
"कितनी बार समझा चुकी हूँ कि आजकल की लड़कियाँ एकदम चालू होती हैँ...इनके चक्कर में ना पड़ा करो लेकिन तुम्हें अक्ल आए..तब ना"...
"उसने मुस्कुरा के क्या देख लिया...हो गए एक ही झटके में शैंटी फ्लैट".. .
"तो?"....
"पहले तो सिर्फ नज़र फिसला करती थी जनाब की...अब तो खुद भी फिसलने लगे हैँ"
"वाह!....क्या तरक्की की जा रही है...वाह...वाह"...
"आ गए मज़े?.... गिर पडे ना...धडाम?"
"अब यहीं पड़े रहना चारों खाने चित...और हाँ!...उसी...ऊँचे सैंडिल वाली कलमुँही को ही बुला लेना ये गोबर से लिपे-पुते जूते साफ करने के लिए...मैँ तो चली अपने मायके"मेरी दयनीय हालत पे तरस खाने के बजाय बीवी बिना रुके लगातार बोले चली जा रही थी
"चलते वक्त देख तो लिया करो कम से कम कि पैर कहाँ पड रहे हैँ और नज़रें कहाँ घूम रही हैँ।" बीवी चिल्लाई
"क्यों?...क्या हुआ?"...
"कुछ तो शर्म करो...तुम्हारी बच्ची की उम्र की है"...
"तो?"...
"किसी को तो बक्श दिया करो कम से कम"...
"अरे!...सिर्फ देख ही तो रहा था और वैसे भी कौन सा तुम्हारी रिश्तेदार लगती है"...
"अरे!...अगर रिश्तेदार हो तो मैँ कभी परवाह भी ना करूँ लेकिन तुम ये जो हर किसी के पीछे लाईन लगाना शुरू कर देते हो...ये मुझे मंज़ूर नहीं"...
"अरे!..लड़की...लड़की होती है...उसके रिश्तेदार होने...या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता"...
"हाँ-हाँ!...तुम्हें क्यों फर्क पड़ने लगा?...तुम्हें तो बस लडकी दिखनी चाहिए..भले ही जैसी भी हो....ऐंगी-बैंगी...आडी-तिरछी...कोई भी चलेगी"..
"क्यों?...है कि नहीं?"...
"वैरी क्लैवर"...
"कमाल है....
तुम तो यार!..मेरी पसन्द-नापसन्द से अच्छी तरह वाकिफ हो".....
"हुँह!...लडकी दिखी नहीं कि जनाब चल देते हैँ सीधा नाक की सीध में मुँह उठा के और बात करते हैँ पसन्द-नापसन्द की"...
"कितनी बार समझा चुकी हूँ कि आजकल की लड़कियाँ एकदम चालू होती हैँ...इनके चक्कर में ना पड़ा करो लेकिन तुम्हें अक्ल आए..तब ना"...
"उसने मुस्कुरा के क्या देख लिया...हो गए एक ही झटके में शैंटी फ्लैट".. .
"तो?"....
"पहले तो सिर्फ नज़र फिसला करती थी जनाब की...अब तो खुद भी फिसलने लगे हैँ"
"वाह!....क्या तरक्की की जा रही है...वाह...वाह"...
"आ गए मज़े?.... गिर पडे ना...धडाम?"
"अब यहीं पड़े रहना चारों खाने चित...और हाँ!...उसी...ऊँचे सैंडिल वाली कलमुँही को ही बुला लेना ये गोबर से लिपे-पुते जूते साफ करने के लिए...मैँ तो चली अपने मायके"मेरी दयनीय हालत पे तरस खाने के बजाय बीवी बिना रुके लगातार बोले चली जा रही थी
"अब मैँ क्या इन गाय-भैंसो को जा-जा के इनवीटेशन देता फिरता हूँ कि यूं बीच सड़क के आ...गोबर और लीद करती फिरें?"मुझे ताव आ गया
"अच्छी भली डेयरियाँ बसा कर दी हैँ दिल्ली के कोने-कोने में अपनी सरकार ने कि अपना आराम से दुहो और लोड कर ले आओ दूध शहर में"...
"लेकिन नहीं!..लोगों को कीडा जो काटता है कि 'प्योर' माल होना चाहिए।"
"माँ दा सिरर... मिलता है प्योर...अभी कल ही तो हज़ारों लीटर नकली दूध पकड़ा गया है कुरूक्षेत्र में"
"पता नहीं कास्टिक सोडे से लेकर टिटेनियम जैसे क्या-क्या हानिकारक तत्व मिलाते हैँ दूध का रंग और झाग बनाने के लिए".....
"मैँने तो यहाँ तक सुना है कि दूध को गाढा करने के लिए यूरिया और ब्लाटिंग पेपर का इस्तेमाल किया जाता है"...
"बिलकुल...पैसे के लालच में इनसान इतना अँधा हो चुका है कि वो किस हद तक नीचे गिर जाए...कुछ पता नहीं"....
"छी!...पता नहीं क्या-क्या 'स्टेरायड' मिलाते हैँ चारे में दूध बढाने के वास्ते" ...
"लेकिन सभी को बदनाम करने से क्या फायदा?....सभी थोड़े ही नकली दूध बेचते हैँ...अपने मोहल्ले का रामगोपाल तो सबको सामने ही दूध दुह के देता है"...
"मानी तुम्हारी बात कि सामने दुह के देता है लेकिन वो भी दूध का धुला नहीं है।"...
"वो कैसे?"....
राजीव तनेजा की हास्य-व्यंग्य पढ़ने और लिखने में विशेष रुचि है। वे बी कॉम करने के बाद दिल्ली में रैडीमेड दरवाज़े और खिड़कियों का व्यवसाय करते हैं। इनकी कुछ कहानियाँ तथा व्यंग्य रचनाएँ प्रकाशित हैं। 'हँसते रहो' नाम के एक लोकप्रिय चिट्ठा भी ये चला रहे हैं।
"वो ऐसे...कि बेशक वो पब्लिक के आँखों के सामने अपनी गाय-भैंस से दूध निकालने का स्वांग करें लेकिन सच यही है कि थोड़ा-बहुत पानी तो उसके डोल्लू में पहले से मौजूद रहता है लेकिन पब्लिक को तो बस थन से धार निकलती दिखाई देनी चाहिए....डाईरैक्ट फ्राम दा सोर्स"
"भले ही सुबह शाम इंजैक्शन ठुकवा ठुकवा के भैंस बेचारी का पिछवाडा क्यों ना सूजा पडा हो...इन्हें कोई फर्क नहीं पडता"
"पता नहीं अपनी मेनका कहाँ गायब हो जाती है ऐसे वक्त?"
"अरे!...वो तो अपने बेटे को दुनिया-जहाँ की बुरी नज़रों से बचाने की जुगत में मारी-मारी फिर रही है आजकल"...
"या फिर उसे भी शायद डाईरैक्ट फ्राम दा सोर्स की आदत पडी हो"बीवी उसकी भद्द पीटती हुई बोली
"हा...हा...हा"..
"कोई शराफत नाम की चीज़ ही नहीं बची है दुनिया में"
"अरे!...दूध तो बच्चों ने पीना होता है...उनके भविष्य के साथ तो खिलवाड ना करें कम से कम"बीवी तमक के हिस्टीरियाई अन्दाज़ में चिल्लाती हुई बोली
"तुम्हें तो बस कोई टॉपिक मिलना चाहिए..हो जाती हो तुरंत शुरू" ..
"अब!..गाय भैंस को क्या पता कि कहाँ गोबर करना है और कहाँ नहीं....उन्हें बस हूक उठनी है और उन्होंने बिना कुछ आगा-पीछा सोचे झट से पूंछ उठा देनी है"
"तुम गाय भैंस का रोना रो रहे हो...सामने देखो दिवार कैसी सनी पडी है"बीवी मुँह बना इशारा करती हुई बोली...
"स्साले!...न दिन देखते हैँ ना रात देखते हैँ" ...
"खाली दिवार दिखी नहीं कि बेशर्मों की तरह सीधा पैंट की ज़िप पे हाथ गया"मैँने हाँ में हाँ मिलाई
"कोई कंट्रोल-शंट्रोल भी होता है कि नहीं?"बीवी खुन्दक भरे स्वर में बोली
"लाख लिखवा दो कि "यहाँ मूतना मना है" लेकिन स्साले!...वहीं खडे होकर धार मारेंगे" मैँ भी शुरू हो गया
"औरत-मर्द में कोई फर्क ही नहीं करते...ना देखते हैँ कि कौन गुज़र रहा है पास से और कौन नहीं"
"शरम_वरम तो जैसे बेच खाई है सबने "भद्दा सा मुँह बनाते हुए बीवी बोली
"स्सालों ने पूरे देश को खुले शौचालय में तब्दील कर रखा है"
"किसी और देश में कर के दिखाएँ ऐसा तो पता चले"मैँ भी भडकता हुआ बोला
"काट के ना रख देगा वहाँ का कानून" बीवी हँसते हुए बोली
"बिना डण्डे के कोई नहीं सुधरता है"...
"इन्हें तो बस डंडॆ का डर दिखे...तभी सीधे होंगे सब के सब"मेरा पारा भी हाई हो चला था
"तुम भी कौन सा कम हो?...तुम भी तो कई बार.....
"अरे!...उस दिन की बात कर रही हो ना तुम?...उस दिन तो मेरी तबियत ठीक नहीं थी"मैँ झेंपता हुआ बोला
"हाँ!...उस दिन तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी..आज इन सब की तबियत ठीक नहीं है"...बीवी दिवार के साथ सट कर खड़े लोगों की तरफ कनखी से इशारा करती हुई बोली
"अरे!...कभी-कभार की बात हो तो अलग बात है....यहाँ तो इन स्सालों ने रोज़ की आदत बना रखी है"
"एक बुरी आदत हो तो कोई सब्र भी कर ले लेकिन यहाँ तो....
"क्या यहाँ तो?"....
"यहाँ तो लोग बात बाद में करते हैँ...गाली पहले देते हैँ और छोटी-मोटी गाली देने को तो सब अपनी शान के खिलाफ समझते हैँ"
"तुम भी कमाल करती हो...अब कोई छोटी-मोटी गाली देगा तो लोगों ने उसे बेवाकूफ समझ इग्नोर कर देना है"...
"ओह!...अब समझी....तभी आजकल सबकी अटैंशन को अपनी तरफ डाईवर्ट करने के लिए हैवीवेट टाईप गालियाँ देने का फैशन चल रहा है"...
"और तो और माँ-बहन की पवित्र एवं पावन गालियाँ तो आजकल प्रशादे में प्रसाद स्वरूप मुफ्त मिलने लगी हैँ"मैँ हँसता हुआ बोला
"रहने दो...रहने दो...दूसरों पे उँगली उठाने से पहले खुद अपने गिरेबाँ में झाँक कर तो देख लो ...तुम भी कुछ कम नहीं हो"बीवी ताना मारते हुए बोली
"तुम तो बस हर बात में किसी ना किसी तरीके से मुझे घसीट लिया करो"...
"क्या मैँ कहता फिरता हूँ लोगों से कि यूँ सड़कों पे कूडा-करकट फैंक दिल्ली की ऐसी-तैसी कर डालो?... या फिर थूक-थूक के इसे थूकदान में तब्दील कर डालो?"अपने ऊपर आरोप लगता देख मेरा भडकना जायज़ था
"तुम ही बताओ कि क्या मैँ कहता फिरता हूँ इन पैसों के लालची 'गुटखा-खैनी' वालों से कि बच्चे-बच्चे को चस्का लगवा नशेडी बनवा दो?"...
"ऐसा मैँने कब कहा?"...
"अरे!...मेरा बस चले तो सब स्साले हराम के ं%$#@ को जेल की चक्की पीसने पे मजबूर कर दूँ"...
"दूसरों पे कीचड उछालना कितना आसान है?"....
"तुम्हारे हाथ में ही अगर ताकत आ जाए तो तुम ही क्या उखाड लोगे?"
"मैँ!...?"
"हाँ तुम?...तुम्हीं से बात कर रही हूँ मैँ"बीवी मेरा माखौल उडाते हुए बोली
"अरे!...मैँ तो दो दिन में...
हाँ!....दो दिन में ही सुधार के रख दूँ पूरी दिल्ली को"
"यूँ!...चुटकी में...... हाँ!..चुटकी में दिल्ली का चौखटा ना बदल डालूँ तो मेरा भी नाम राजीव नहीं"...
"ये!...ये स्साले?... इन्हें तो मैँ एक ही दिन में सिखा दूँ कि दिल्ली में कैसे रहा जाता है?"...
"कैसे सडकों पे चला जाता है?"...
"कैसे सडकों पे थूका जाता है?"...
"कैसे कचरा फैला दिल वालों की दिल्ली का बेडागर्क किया जाता है?"मैँ लगातार बोलता चला गया लेकिन मेरा गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था
"कैसे सरेआम कानूनों की धज्जियाँ उडाई जाती हैं"
"कैसे खुलेआम सिग्रेट-बीडी के सूट्टे लगा आम अवाम की नाक में दम किया जाता है?"मैँ आखरी कश लगा सिगार को पैर से मसलते हुए बोला
"इन स्सालों को तो नाम के लिए भी ट्रैफिक सैंस नहीं है"...
"ना किसी को पैदल चलने की अकल है...ना ही किसी को गाडी-घोडा दौडाने की"...
"बस मुँह उठाते हैँ और चल देते हैँ सीधा नाक की सीध में"...
"भले ही कोई पीछे सौ-सौ गाली बकता फिरे...इन्हें कोई मतलब नहीं"...
"कोई सरोकार नहीं कि पीछे कोई इनकी गाडी के नीचे आते-आते बचा....
"या!...ये खुद ही किसी गाडी से कुचले जाते अभी"बीवी ने बात पूरी की
"ऊपर से ये पैदल चलने वाले...उफ!...तौबा...पता नहीं कौन सी दुनिया में खोए रहते हैँ?"
"अरे!...ये तो ग्यारह नम्बर की बस पे सवार होते हैँ...यानी कि पैदल चलते हैं"
"और!..गलती तो हमेशा बडी गाडी की ही मानी जाती है"मैँ व्यंग्यपूर्वक चिढता हुआ बोला...
"उल्टा!..मुआवज़ा और ले मरते हैं स्साले"बीवी का पारा भी हाई हो चला था
"अरे!...हाथ में सत्ता आ जाए एक बार...इन्हें तो दिल्ली का रुख कर मूतना भी भुलवा दूँ"
"हुँह!...थोथा चना...बाजे घना"....
"क्या?... क्या कर लोगे तुम?"बीवी मानों मुझे जोश दिलाने पे तुली थी
"मेरा बस चले तो सबसे पहले कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली उग रही इन फाईनैंस कम्पनियों को ही ताला लगवा दूँ"...
"क्यों?...उनको ताला लगवा देने से क्या होगा?"...
"स्साले!...ना बन्दा देखते हैं..ना बन्दे की जात और मोटर साईकिल बाँट डालते हैँ आठ-आठ"
"बस फाईल बनवाओ और ले जाओ"
"पागल के बच्चे!...पाँच-पाँच हज़ार में 'स्पलैंडर' और 'पल्सर' रेवड़ी की तरह बाँटते फिरते हैँ कि...ले बेटा!....मौज कर...बाकि देता रहियो आसान किश्तों में"....
"क्या कहा?....नही दे पाएगा?"...
"फिक्र छोड़ और चिंता ना कर".....
"हमने गुण्डे-पहलवान... ऊप्स!...सॉरी रिकवरी ऐजेंट पाले हुए हैँ ना इसी खातिर"...
"पता भी है कुछ?... अब तो नया स्यापा खडा होने वाला है"बीवी बोल पडी
"वो क्या?".....
"इस 'टाटा' के बच्चे की 'नैनो' ने तो और नाक में दम कर देना है"...
"वो कैसे? ...इतना अच्छा काम कर रहा है अगला....दुनिया की सबसे सस्ती कार"...
"वोही तो!......"बीवी के चेहरे पे असमंजस का भाव था
"जिसे देखो....वही 'नैनो' पे सवार दिखाई देगा"....
"तो?...बुरा क्या है इसमें?"
"भला क्या फर्क रह जाएगा अमीर और गरीब में?"बीवी अपनी मँहगी साडी का पल्लू ठीक करते हुए बोली
"दोनों एक ही गाडी में घूमते नज़र आएंगे"....
"तो?"...
"आखिर!...स्टेटस-व्टेटस भी कोई चीज़ होती है कि नहीं?"...
"हम्म!....फिर तो काम वाली बाईयां भी घरों में काम करने के लिए गाडी में आया करेंगी"मैँ मुस्कुराता हुआ बोला...
"हाँ!...नए बहाने मिल जाएंगे उन्हे काम चोरी के...कभी टायर पैंचर तो कभी ट्रैफिक जाम"बीवी बुरा सा मुँह बनाते हुए बोली
"ऊपर से अगर पुलिस का चालान हो गया तो समझो माई की दो दिन की छुट्टी"मैँने मन ही मन सोचा
"अभी तो हर किसी को नया-नया चाव चढ रहा है ना 'नैनो' का ...
पता तब चलेगा बच्चू!...जब पार्किंग की समस्या सर चढ के बोलेगी"बीवी मानों भविष्य की तरफ ताकती हुई बोली "अभी से बुरे हाल हैँ...आगे तो रखने तक को जगह तक ना मिलेगी"
"इस मामले में ये जापान वाले सही हैँ...पूरी दुनिया को गाडियों पे सवार कर दिया और खुद घूमते हैँ मजे से ट्रिन-ट्रिन करते बाई-साईकिल पे"....
"तुर्रा ये कि सेहत ठीक रहती है"...
"स्साले!...कंजूस कहीं के"मैँ बीच में ही बोल पडा
"सुना है!...वहाँ बन्दे को गाडी तब मिलती है जब वो पक्का सबूत दे देता है कि भईय्ये...इसे रखेगा कहाँ पर"बीवी के चेहरे प्रश्नवाचक चिन्ह मंडरा रहा था
"और नहीं तो क्या. .."मैँ उसकी जिज्ञासा शांत करता हुआ बोला
"अभी नौकरियों में 'रिज़र्वेशन' माँगा जा रहा है...आने वाले समय में 'पार्किंग' का भी कोटा फिक्स करने की 'डिमांड' उठने लगें तो कोई हैरत की बात नहीं"बीवी बोली
"ताज्जुब नहीं कि कल को कोई पायजामे की जेबों में हाथ डाले-डाले मज़े से यूँ ही टहलता-टहलता 'शो-रूम' जा पहुँचे और...जेब से दो-तीन बण्डल मेज़ पे धरता हुए बोले कि "भईय्या!...दो 'नैनो' देना....'डीलक्स' वाली"
"स्साले जय शनि देव.. जय बजरंग बली....का हुँकारा लगाते बिखारी तक 'नैनो' में भीख माँगते नज़र आएँगे"आने वाले समय का मंज़र मेरी आँखो के आगे नाचने लगा
"कल को नज़रबट्टू के नाम पर दफ्तर-दुकानों पे नींबू मिर्च टांगने वाले भी 'नैनो' पे आने लग जाएँ तो कोई अजब की बात न होगी।"
"बस!..थोडा सा अन्दाज़ बदल जाएगा उनका...धन्धे का नाम नींबू-मिर्ची से बदल कर मौडीफाई होता हुआ 'लैमन चिली वाला' हो जाएगा"बीवी मज़ाक में बोली
"मुझे तो अभी से अपने पप्पू की चिंता हो रही है"बीवी परेशान हो बोली
"वो क्यों?"मेरे चेहरे पे सवाल था
"कल को वो भी खिलौनों से आज़िज़ आ नैनो की ही डिमांड ना करने लगें"मेरी तरफ देख बीवी बोली
"कोई बडी बात नहीं"मैँने जवाब दिया
"कहीं बच्चों के लिए सस्ते पैट्रोल की डिमांड भी ना उठने लगे" मैँ मुस्कुराता हुआ बोला
"उफ!...तुम ये क्या 'नैनो' का पंगा ले के बैठ गए?...जब आएगी तब की तब देखी जाएगी"
"ठीक है!...कोई और बात करते हैँ"...
"कोई और क्या?....वही पुराने टॉपिक पे आ जाते हैँ".....
"हाँ!...ये सही रहेगा"....
"तुम बात कर रहे थे दिल्ली सुधारने की"...
"हाँ!....
"क्या हुआ उसका?"...
"बस!...बातों बातों में ही हवा हो गई बात?"...
"अरे!...ऐसे कैसे हवा हो गई बात?"...
"पहले मौका मिले तो सही...फिर दिखाता हूँ तुम्हें कि कैसे मैँ सबक सिखाता हूँ सबको"...
"सबको?"...
"हाँ!...हर खास औ आम को सिखा दूंगा कि कैसे थूका जाता है खुलेआम... वहीं थूके हुए को चटवा ना दिया तो मेरा भी नाम राजीव नहीं...
आक..थू"मैँ गला साफ कर खंखारता हुआ बोला......
"अपने घरों...दफ्तरों और तहखानों में थूक के तो देखो...तब पता चलेगा...खुद से ही घिन्न ना आने लग जाए तो कहना"बीवी मेरी हाँ में हाँ मिलाती हुई बोली
"इन स्साले ठेकेदारों को बता दूँगा कि कैसे लूटा जाता है सरकारी माल"...
"हथकडियां ना लगवा दी तो कहना"
"डण्डा!...हाँ डण्डा चलेगा जब मेरा तो बडे बडे सीधे हो जाएंगे"
"अरे!...किस-किस को सुधारोगे तुम?....सारा ढाँचा ही तो बिगडा पडा है दिल्ली का"...
"अरे!...तुम आवाज़ तो करो...एक-एक को ना ठीक कर दूँ तो मेरा भी नाम राजीव नहीं"...
"अब इन अवैध रिक्शाओं को ही लो...रोज़ तो जब्त करते फिरते हैँ 'एम.सी.डी' वाले...मगर अगले दिन फिर सडक पे हिण्डोले खा झूमते-गाते और नाचते नज़र आते हैँ"रिक्शेवालों की मनमानी से त्रस्त आम भारतीय नारी की आवाज़ थी ये
"मैँने तो सुना है कि पूरा का पूरा मॉफिया होता है इस गोरखधन्धे के पीछे"...
"हाँ!...रजिस्ट्रेशन के नाम पे एक-एक पर्ची पे बीस-बीस रिक्शे रजिस्टर करवा रखे हैँ स्सालों ने"....
"ओह!....फिर तो लाखों का खेल होता होगा हर रोज़"...
"और नहीं तो क्या?"...
"मैँने तो सुना है कि शँकर लॉण्डरी वाले के पास...अपने....खुद के हज़ार रिक्शे हैँ"
"सही सुना है.....अब बीस से तीस रुपए फी रिक्शे के हिसाब से अपने आप हिसाब लगा ले कि कितने का गेम बजाता होगा वो हर रोज़"....
"लेकिन फिर उसे ये लॉण्डरी जैसा दो टके का काम.....
"अरे!...करना पड़ता है...दिखावे के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है"...
"लेकिन!...जो हो गया सो हो गया... अब और नहीं"...
"सारी की सारी 'मॉफिया गिरी' धरी की धरी रह जाएगी पट्ठे की जब मेरा कटर चलेगा"
"कटर चलेगा?"बीवी चौंकती हुई बोली
"हाँ!...'कटर'.... 'कटर' चलवा दूंगा...सबके अवैध रिक्शाओं पर"...
"ये नहीं कि जब्त कर गोदाम में फिकवा दूँ ताकि कुछ ले-दे के फिर से सडको पर हुड़दंग मचाते फिरें?"
"एक ही बार में टंटा खतम कर दूंगा इनका"...
"बिलकुल!...ना रहेगा बाँस और ना ही बजने देना इनकी बाँसुरी"
"काट के इतने टुकडे करवा देना कि कबाडी भी दो रुपए किलो से ऊपर का भाव लगाने से पहले सौ बार सोचे"बीवी भी तैश में आ मेरा साथ देती हुई बोली...
"थैंक्स फॉर दा सपोर्ट"...
"वो सब तो ठीक है लेकिन......इन पैदल चलने वालों का क्या करोगे?"
"कैसे सिखाओगे इन्हें तमीज़ से चलना?"
"पागल के बच्चे!....मुँह उठाते हैँ और चल देते हैँ सीधा नाक की सीध में"
"इनके लिए तो मैँ लठैत पहलवानों की भर्ती करूँगा"....
"वो किसलिए?"....
"वो इसलिए मेरी जान कि इधर इन्होंने गलत तरीके से सडक पार की...और उधर लट्ठ बरसा"...
"दे दनादन....सडाक....सडाक"
"पट्ठों को हथकडी लगवा वहीं 'रेलिंग' से ही बँधवा ना दिया तो मेरा नाम भी राजीव नहीं"
"फोटो अलग से खिंचवाना ऐसे नमूनों की"...
"वो किसलिए?"...
"ताकि जान ले पूरा इंडिया...और मान ले पूरा इंडिया"
"मान ले पूरा इंडिया?"मेरे चेहरे पे प्रश्न था
"हाँ!...पूरा इंडिया कि देख लो...जान लो... क्या हष्र होने जा रहा है अब बद्द-दिमागों का"
"इस सब से फायदा?"....
"बहुत!...पडेगी एक को..लगेगी सबको...सभी सीधे हो जाएंगे"...
"हाँ!....बहुत देख लिया आराम से समझा समझा के"
"और नहीं तो क्या?....लातों के भूत बातों से भला कब माने हैँ जो अब मानेंगे?"
"यही इलाज है इनका...डण्डा सर पे हो तो बडे बडे सीधे हो जाते हैँ"...
"यहाँ तो ना डर है और ना ही कानून की परवाह है किसी को"
"सही है बाहरले देशों का कानून...इधर जुर्म किया और उधर पुलिस सज़ा देने को तत्पर"
"यहाँ!.....यहाँ तो स्साला जुर्म आज करो...सज़ा का कोई पता नहीं...कब मिले...मिले ना मिले..कोई गारैंटी नहीं"
"सालों तक लंबे केस चलते हैं....किसी को सज़ा होते देखा है?"....
"नहीं ना?".... इसीलिए तो बेडागर्क हुए जा रहा है हिन्दोस्तां का"...
"आम जनता भी तो इन्हीं नेताओं से सबक लेती है"...
"देखती है कि जब इनका बाल भी बांका नहीं हो पा रहा तो अपना क्या बिगडेगा"बीवी भी मेरे रंग में रंग चुकी थी
"मुझे तो अरब देशों का कानून बहुत पसन्द है जी"बीवी प्यार से इठलाती हुई बोली...
"वो भला क्यूँ?"..
"जैसा जुर्म...वैसी सज़ा....चोरों के हाथ काट दिए जाते हैं और ब्लातकारियों के......
"हा...हा...हा"...
"और नशे के सौदागरों को पूरी ज़िन्दगी जेलों में सडने के लिए छोड दिया जाता है"बीवी पुन: गँभीर होती हुई बोली
"एक तो पहले से ही यहाँ के हालात बुरे हैँ ...ऊपर से ये फिरंगी कल्चर बेड़ागर्क करने को आ गया"...
"फिरंगी कल्चर?"...
"कौन सा फिरंगी कल्चर?"...
"कैसा फिरंगी कल्चर?"मैँ झटके खा चौंकता हुआ बोला
"अरे!...ये मुआ 'गे' कल्चर और कौन?"...
"अरे!...इसमें क्या खराबी है?...अब तो माननीय हाईकोर्ट ने भी....
"हाँ-हाँ....तुम भला क्यूँ विरोध करने लगे इसका?....तुम खुद भी तो....
"बस-बस!...अब अगर एक शब्द भी फालतू का मुँह से निकाला ना.....तो मुझ से बुरा कोई ना होगा"मैँ गुस्से में बीवी के चेहरे पे मुक्का तान हाँफता हुआ बोला
"फाल्तू की बकवास करने की कोई ज़रूरत नहीं है....सिर्फ काम की बात करो"...
"हुँह!...ये ना बोलो....वो ना बोलो...तुम कहो तो अपना मुँह ही सिल लूँ"....
"वैसे आईडिया बुरा नहीं है"मैँ मुस्कुराता हुआ बोला...
"हाँ-हाँ!...तुम तो यही चाहोगे कि मेरी ज़बान को ताला लग जाए"....
"अरे मेरी अम्मा!...बोल....तुझे जो बोलना है...हँसी-खुशी से बोल"...
"अब क्या बोलूँ?...तुम्हें तो मेरी सारी बातें ही फाल्तू की नज़र आती हैँ"...
"अरे नहीं!...वो तो मैँ बस ऐसे ही मज़ाक कर रहा था"...
"तू बोल...बिन्दास हो के बोल"मैँ बीवी से पुचकारने वाले अन्दाज़ में बोला...
"अब तो बस ऊपरवाला ही मालिक है अपने देश का".....
"वो क्यों?"...
"पता नहीं क्या मिलता है लोगों को अच्छी खासी चल रही लाईफ को बिगाड के?"...
"किसकी बात कर रही हो?"अब प्रश्न मेरे चेहरे पे आसीन था
"बेडागर्क कर के रख दिया है इन मसाज पार्लरों ने"मेरी बात सुने बिना ही बीवी बोलती चली गई
"हाँ!...दिन पर दिन उगते भी तो कुकुरमुत्तों की तरह जा रहे हैँ"...
"आज की तारीख में कोई गली...कोई मोहल्ला अछूता नहीं है इनसे"
"पता नहीं क्या आग लगी है आजकल के नौजवानों को"बीवी का आवेश बडता ही जा रहा था
"पार्लर की आड में सारे उल्टे काम...." मुझे अपने बैंकाक के दिन याद आ गए
"खुल के क्यों नहीं कहते कि रंडीखाना बना रखा है"...
"अरे!...मेरे हाथ में पावर आ जाए तो पुलिस का पहरा ना बिठवा दूँ इन मसाज पार्लरों पर तो कहना"
"एक-एक की ऐसी ठुकाई करवाउंगा की आने वाली सात पुश्तें तक जान जाएँगी कि 'मसाज' कैसे करवाई जाती है"
"और मेरा बस चले तो सबसे पहले ये सब लेटेस्ट मोबाईल बन्द करवाउंगी"...
""वो क्यों?"...
"बडे गन्दे 'एम.एम.एस' बनाने और दिखाने का चलन चल निकला है आजकल"
"हाँ!...हर बन्दा मोबाईल में कुछ ना कुछ पुट्ठा सामान लिए फिरता है"मैँने बात पूरी की
"जिसे देखो किसी ना किसी लडकी की छुप कर उसकी मर्ज़ी के बिना फोटो खींच रहा होता है"
"सही है..." मैँने सहमति जता दी
"तुम कौन सा कम हो?...तुम ने भी तो उस दिन"बीवी आँखे तरेरती हुए मुझसे बोली....
"अरे यार!...उसका चेहरा थोड़ा फोटोजैनिक लगा तो....
"फोटोजैनिक चेहरा तो तुम्हारी बीवी...तुम्हारी बेटी और तुम्हारी माँ का भी.....
"बस-बस....
"क्यों?...लगी ना मिर्ची"....
"ये तो सोचो कि किसी दिन कोई इसी तरह तुम्हारी भी माँ-बहन या बीवी एक कर देगा तो तुम क्या करोगे?"बीवी भडकते हुए बोली
"वो...म्मैँ....मैँ..
"तुम स्साले!...मर्द ...सभी एक जैसे होते हो... लडकी देखी नहीं कि लार टपकने लगती है.... काबू में नहीं रख पाते अपने जज़्बात"
"उफ!...तुम भी टॉपिक ले के बैठ गई?"...
"अरे!...अगर सामने से....फ्रंट पैनल से थोडी-बहुत लिफ्ट मिलती है...तभी हम मर्दों में हिम्मत जागृत होती है...वर्ना हमारे जैसा डरपोक और धर्मभीरू इनसान तो पूरे जहाँ में लाख ढूँढने से भी ना मिलेगा "मैँ बिगडी बात सम्भालता हुआ बोला
"क्या बात?...आज तुम्हारा दिल कहीं और ...और दिमाग कहीं और है"....
"मतलब?"...
"बात हो रही थी दिल्ली सुधारने की और तुम किसी ना किसी तरीके से उल्टे-सीधे किस्से घुसेड असली...मुद्दे की बात को ही गोल कर देती हो" "...
"ठीक है बच्चा!...तो फिर तुम ही अपनी बात पूरी कर लो"...
"लेकिन.....
"मेरा क्या है?...मैँ ठहरी मस्त-मलंग जोगन....
"मैँ तो किसी भी दिन बातों ही बातों में अपनी भड़ास निकाल लूँगी"बीवी दार्शनिक अन्दाज़ में सर हिलाते हुए बोली...
"थैंक्स....
"तो फिर ध्यान से मग्न हो कर सुनो"...
"जी गुरूदेव"बीवी हाथ जोड़ मुस्कुराती हुई बोली
"एक बार मेरे हाथ में पावर आने दो....फिर देखना कि कैसे मैँ इन स्साले कामचोर बाबुओं को सस्पैंड कर एक ही झटका से बताता हूँ कि कैसे ड्यूटी पे आए बिना हाज़री लगवाई जाती है"
"स्साले!...मुफ्त में सरकारी तनख्वाह डकारते हैँ".....
"बाप का माल समझ रखा है क्या?"...
"वो सब तो ठीक है पर इन नेताओं का क्या करोगे?"
"जीना हराम कर रखा है इन्होंने आम पब्लिक का...इन्हें तो बस पैसे वाले ही नज़र आते हैँ"
"इनकी तो मैँ...."मैँने बात अधूरी छोड दी
"जेल की रोटी खाने पे मजबूर ना कर दिया तो कहना"
"चक्की पीसते-पीसते सब सीख जाएंगे कि...
कैसे बड़ी बड़ी मॉलों को लाईसैंस दे आम छोटे दुकानदारों से जीने का हक ही छीन लिया जाता है?"
"कैसे बडे-बडे लाल...हरे और नीले फ्रैश स्टोरों को कोठियों में खोलने की इज़ाज़त दे आम आदमी की रोज़ी-रोटी पे लात मारी जाती है"...
"सिखा दूंगा इन्हें कि कैसे पिछले दरवाज़े से मज़दूर वर्ग का सर्वेसर्वा होने पर भी नंदी को ग्राम में भेजा जाता है"...
"सिखा दूंगा कि कैसे गिने-चुने निशानों का डिमालिशन कर पूरी पैसे वाली जमात को बचाया जाता है"
"सिखा दूंगा कि कैसे अपने धूल फाँकते उजाड और बंजर जोहड़ों को सरकारी पैसे से हॉट बज़ार या सुभाष चन्द्र बोस स्मारक में तब्दील करवा अपनी तिजोरियां भरी जाती हैँ"
"कैसे सरकारी गोपनीय दस्तावेजों का नाजायज़ इस्तेमाल कर आने वाले समय में एक्वायर होने वाली ज़मीन गरीब किसानों से कौडियों के दाम ले बाद में लाखों करोडों नहीं बल्कि अरबों कमाए जाते हैं"
"कैसे अपने नेम फेम की खातिर मैट्रो का रूट तब्दील करवाया जाता है"बीवी भी पिल पडी
"कैसे सौ के ऊपर सीधा पाँच सौ का टैक्स लगा ट्रैफिक चॉलान की फीस को बढाया जाता है"...
"कैसे सरकारी जमीन पे रातों रात झुग्गी बस्तियँ बसवा अपना वोट बैंक मज़बूत किया जाता है"...
"कैसे उन्हें नई जगह बसाने की आड में हज़ारों लाखों जाली पर्चियाँ अपने लोगों में पैसे ले ले बाँटी जाती हैँ"
"कैसे सरकारी ड्रा में मलाईदार प्लॉट अपनों के नाम किए जाते हैँ"बीवी का गुस्सा कम होने को ही नहीं था
"कैसे पैसे ले ले कुक्करमुत्ते की भांति उगने वाली जाली फ्राड कंपनियो को राज्य में काम करने की छूट दी जाती है"
"कैसे प्राईवेट बिजली कम्पनी को नए तेज़ भागते मीटर लगाने की छूट देकर करोडों के वारे-न्यारे किए जाते हैँ"
"कैसे ऑटो टैक्सी के इलैक्ट्रानिक मीटरों के जरिए पब्लिक की जेब से पैसा खींचा जा सकता है"बिना रुके मैँ भी बोलता रहा
"इतना सब कुछ हो रहा है लेकिन जनता है कि कुछ कहती ही नहीं"
"अरे!...ये फुद्दू पब्लिक है...ये कुछ नहीं जानती है"
"हमारे यहाँ डर नहीं है ना किसी को कानून और समाज का"
"मौका मिले सही...अनपढ या पढा लिखा....कोई भी कानून तोडने से गुरेज़ नहीं करता"
"मज़ा आता है...शेखी दिखाई देती है इसमें...भीड में सबसे अलग...सबसे जुदा होने की चाहत होती होगी शायद इस सब की वजह"
"अब ये ट्रैफिक पुलिस वालों का आलम तो देखो...हर एंटरी के नाम पे जहाँ पचास का पत्ता झटकते थे टैम्पो वालों से...
सरकारी चॉलान बढने से इन्होंने भी अपना रेट बढा दिया है"...
"ऊपर से सीनाजोरी देखो इनकी...कहते हैँ कि हम यहाँ क्या मुफ्त में.......
"मेरा बस चले तो इन साले सभी रिश्वतखोरों के 'एम.एम.एस' बनवा के इनके दूध धुले चेहरों का 'लाईव टैलीकास्ट' करवा दूँ"
"साले!...खुदा समझते हैँ अपने आप को"....
"जिसे देखो!....वही दिल्ली की कब्र खोदने पे उतारू है"
"अब इन ब्लू लाईन वालो को ही लो...बन्दे की जान की कोई कीमत ही नहीं है इनकी नज़र में....दो-चार को तो ऐसे ही ...रोज़ाना खामख्वाह में रौंद डालते हैँ"
"इन स्साले!...ब्लू लाईन वालो की तो मैँ....
"सुना है!...सब की सब बडे नेताओ की हैँ इसलिए इनके खिलाफ लाख आवाज़ें उठने के बावजूद भी बेधड़क हो के कुचले चली जा रही हैँ पब्लिक को"
"मेरे हाथ में ताकत आ जाए बस एक बार... सब के परमिट कैंसल करवा के दिल्ली से बाहर फिंकवा दूंगा कि...
बस!...बहुत हो गया"...
"चलो अब!...यू.पी....बिहार"
"अरे!...तब तो बहुत दिक्कत हो जाएगी"....
"इतनी भीड...इतने लोग....इतनी पब्लिक"....
"बाप रे!....
"होती रहे मेरी बला से.... क्या मुझ से पूछ के आए थे दिल्ली?"....
"लेकिन....
"अरे मेरी धन्नो!...कुछ पाने के लिए...कुछ खोना भी ज़रूरी होता है कि नहीं?"मैँ समझाता हुआ बोला
"हा!...होता तो है लेकिन...
"अरे!..तू चिंता छोड़ और अपनी परेशानी को हर"....
"बेफिक्र रह!....एक ही झटके में नहीं साफ होगा इन 'ब्लू लाईन' बसों का पत्ता"मैँ तसल्ली देता हुआ बोला....
"तो फिर?"...
"सिलसिलेवार ढंग से कुछ ही महीनों में सबकी बत्ती गुल कर दूंगा दिल्ली से"
"तब तक क्या हाथ पे हाथ धर पब्लिक घर पे बैठी रहेगी?"....
"अरी मेरी मुन्नी!....'कार्पोरेट सिस्टम' लागू करूगा मुम्बई के माफिक"...
"एक ही कम्पनी की दो-दो हज़ार बसें होंगी कम से कम"....
"अरे वाह!....फिर तो पब्लिक भी खुश...कम्पनी भी खुश"....
"और लगे हाथों हम भी खुश"
"वो कैसे?"...
"अरे बेवाकूफ!...जब हम दिल्ली को सुधारने चलेंगे तो पूरा दिन उसी में बिज़ी रहेंगे कि नहीं?"...
"हाँ!....तो?"...
"अरे!...जब हम पूरा दिन ही काम-काज में बिज़ी रहेंगे तो किस बेवाकूफ के पास इतनी फुरसत होगी कि वो एक-एक बस वाले के ठिय्ये पे जा-जा के उनसे अपनी मंथली वसूल करता फिरे?"
"हाँ!...हमें तो भय्यी....एक मुश्त रकम मिल जाए पूरे साल भर की तो ही जा के चैन पडे"बीवी अँगड़ाई लेती हुई बोली...
"वैसे भी ये छुट्टी रकम का होना ना होना एक तरह से बेकार ही है"...
"हाँ!...कब आती है कब जाती है कुछ पता ही नहीं चलता"...
"अपना!.. एक बार में ही पूरे मिल जाए तो कहीं ढंग से ठिकाने भी लगें"
"छोटे-मोटे बण्डल तो वैसे ही 'बीयर बार' बालाओं को ही खुश करने में साफ हो जाएंगे"मेरे चेहरे पे वासना चमक उठी थी
"ये क्या कि...खेत का खेत जुता...फसल की फसल कटी और.....अनाज कब चूहे ले गए पता भी ना चला"
"तुम देखना!...मैँ दिखाउंगा पूरी दिल्ली को कि कैसे खेला जाता है खेल...
"कैसे सबकी नज़रें बचा लाखों करोडों के वारे-न्यारे किए जाते हैं"मेरी आँखों की शैतानी चमक सारी कहानी खुद ब्याँ कर रही थी
"कैसे हर छोटी-बडी ठेकेदारी में अपना हिस्सा फिट किया जाता है"
"सही कह रहे हो"बीवी की आँखों में भी लालच का परचम लहरा चुका था
"कैसे पुलिस और ट्रैफिक की कमाई में अपनी गोटी फिट की जाती है"...
"कैसे नौकरी जाने के साथ-साथ जेल जाने का डर दिखा बे-ईमान अफसरों से अपनी मंथली सैट की जाती है"...
"कैसे हर फैक्ट्री वाले की बैलैंस शीट के हिसाब से अपना परसैंट तय किया जाता है"...
"बातें तो तुम सारी एकदम एकूरेट कर रहे हो लेकिन ये सत्ता आखिर हाथ आएगी कैसे?"
"इसके लिए तो बहुत नोटों की ज़रूरत पडेगी ना?"....
"हाँ"...
"और वो तो हैँ नहीं ना अपने पास"
"इसलिए वक्त का तकाज़ा यही कहता है कि जहाँ हो..वहीं पड़े रहो"....
"मतलब?"...
"ज़्यादा उडो मत"...
"क्यों?"...
"बडी देर से 'पावर'...'पावर' की बातें किए जा रहे हो"...
"तो?".....
"यहाँ रिलायंस की पावर खरीदने लायक पैसे भी नहीं हैँ"बीवी बैंक की पासबुक देख निराश होते हुए बोली
"ऊपरवाले की दया से बस यही तो एक कमी रह गई....
"बाकी सारा 'मास्टर प्लान' तो मुँह ज़बानी रटा पडा है हम दोनों को"मेरी आवाज़ में हताशा का पुट था
"काश!...कहीं से पैसा आ जाए इलैक्शन लडने के लिए"मैँ ठण्डी आह भरता हुआ बोला...
"बस पैसा आ जाए किसी तरह ...बाकि सब दावपेच पता है कि...
"कैसे लडा जाता है चुनाव?"...
"कैसे झटके जाते हैँ विरोधी खेमे के वोट?"...
"कैसे दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाई जाती है?"
"अरे!...बैंक से याद आया...अपने गुप्ता जी तो बैंक में ही हैँ ना"...
"तो पता करो उनसे..कोई लोन-शोन का ही जुगाड बन जाए शायद"...
"वैसे भी आजकल बैंक वाले धडाधड लोन बाँट रहे हैँ"...
"हाँ!...रोज़ ही तो "लोन ले लो... लोन ले लो" कह कर सिर खा रही होती हैँ फोन पे"
"दुनिया भर की तो छम्मक छल्लो भर्ती कर रखी हैँ इसी खातिर"....
"एक मिनट रुको"मैँ अपने मोबाईल की फोन बुक खंगालने में जुट गया"
"अभी परसों ही तो फोन आया था 'रूबी' का"...
"अब ये 'रूबी' कौन?"....
"अरे वही!...बैंक वाली...और कौन?"
6 टिप्पणियाँ
aaj ke hallat par ek tikha vyangya hai ye
जवाब देंहटाएंkya likha hai aap ne bahut mast laga badhiya bahut badhiya
जवाब देंहटाएंACHCHHE VYANGYA KE LIYE AAPKO BADHAAEE.
जवाब देंहटाएंथाम दे अगर आपको सत्ता
जवाब देंहटाएंन पेड होगा न होगा पत्ता
धूप से बचाने ओर ही लेंगे छत्ता
नही मिले तबतक यूँ ही अलबत्ता
जो लिखा सराहने के योग्य है
बधाई!!!
आपकी शैली मुझे अच्छी लगती है।
जवाब देंहटाएंबहुत हीं अच्छा व्यंग्य है। बस कहीं कहीं बात कुछ ज्यादा हीं लंबी खिंच गई है। मसलन, जब भी आपने "कैसे" सीरिज लिखा है, एक हीं बार में दसियों उदाहरण डाल दिए हैं, जिन्हें कम किया जा सकता था। वैसे आपकी शैली औरों से अलहदा है, इसलिए आपको हक़ है कि आप अपनी शैली को जैसा चाहें वैसा रूप दें :)
जवाब देंहटाएं-विश्व दीपक
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