HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

ऊँघती आँखों से [गज़ल] - धीरेन्द्र सिंह

Photobucket

ऊँघती आँखों से गुज़रे खाबों को पढ़कर
कल की रात काटी है किताबों को पढ़कर

उनके चेहरे को पढना न मुनासिब हो सका
दीद किया उनका उनके हिजाबों को पढ़कर

दवात लिए बैठा हूँ कब से किरदार न मिले
लिखा जो लिखा हश्र-ओ-गिर्दाबों को पढ़कर

वाह मेरा खसद-ऐ-यार देखिये तो सही
सवालों को लिखा उनके जवाबों को पढ़कर

<span title=साहित्य शिल्पी" width="90" align="left" border="0">रचनाकार परिचय:-


धीरेन्द्र सिंह का जन्म १० जुलाई १९८७ को छतरपुर जिले के चंदला नाम के गाँव में हुआ था| आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा चंदला में ही पूरी की। वर्तमान में आप इंदौर में अभियन्त्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं| कविताएँ लिखने का शौक आपको अल्पायु से ही था, किन्तु पन्नो में लिखना कक्षा नवीं से प्रारंभ किया| आप हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में रचनाएं लिखते हैं। आपका 'काफ़िर' तखल्लुस है|

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

  1. दवात लिए बैठा हूँ कब से किरदार न मिले
    लिखा जो लिखा हश्र-ओ-गिर्दाबों को पढ़कर
    gajal ki sabse achhi panktiyan lagi gajal ka bhao to isi panktiyon me hai

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह मेरा खसद-ऐ-यार देखिये तो सही
    सवालों को लिखा उनके जवाबों को पढ़कर

    Vaah......... kitnaa kuch kah diyaa hai is sher mein...bahoot khoob

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...