ऊँघती आँखों से गुज़रे खाबों को पढ़कर
कल की रात काटी है किताबों को पढ़कर
उनके चेहरे को पढना न मुनासिब हो सका
दीद किया उनका उनके हिजाबों को पढ़कर
दवात लिए बैठा हूँ कब से किरदार न मिले
लिखा जो लिखा हश्र-ओ-गिर्दाबों को पढ़कर
वाह मेरा खसद-ऐ-यार देखिये तो सही
सवालों को लिखा उनके जवाबों को पढ़कर
धीरेन्द्र सिंह का जन्म १० जुलाई १९८७ को छतरपुर जिले के चंदला नाम के गाँव में हुआ था| आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा चंदला में ही पूरी की। वर्तमान में आप इंदौर में अभियन्त्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं| कविताएँ लिखने का शौक आपको अल्पायु से ही था, किन्तु पन्नो में लिखना कक्षा नवीं से प्रारंभ किया| आप हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में रचनाएं लिखते हैं। आपका 'काफ़िर' तखल्लुस है|
3 टिप्पणियाँ
दवात लिए बैठा हूँ कब से किरदार न मिले
जवाब देंहटाएंलिखा जो लिखा हश्र-ओ-गिर्दाबों को पढ़कर
gajal ki sabse achhi panktiyan lagi gajal ka bhao to isi panktiyon me hai
bahut sunder abhivyakti hai aapki
जवाब देंहटाएंवाह मेरा खसद-ऐ-यार देखिये तो सही
जवाब देंहटाएंसवालों को लिखा उनके जवाबों को पढ़कर
Vaah......... kitnaa kuch kah diyaa hai is sher mein...bahoot khoob
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