
मुनगे क एक पेड़ है
वह गाहे-बगाहे की साग
प्रसूता के लिए तो पकवान है
मकान बनाने के लिए उसे काटना था
पर किसी की हिम्मत नहीं
उसमें बसी हैं
माँ की स्मृतियाँ
जैसे नीम्बू के पेड़ में दीदी की
पिताजी की-- तालाब में लगाए
बड़ में
नतमस्तक हो जाता है हर कोई
उसी तरह
नीम्बू मुनगे का यह पेड़ है
पर किसी की हिम्मत नहीं
उसमें बसी हैं
माँ की स्मृतियाँ
जैसे नीम्बू के पेड़ में दीदी की
पिताजी की-- तालाब में लगाए
बड़ में
नतमस्तक हो जाता है हर कोई
उसी तरह
नीम्बू मुनगे का यह पेड़ है
पहले हम खेतों को
पेड़ों की वज़ह से पहचानते थे
हमारा बचपन गुज़रता था
आम, इमली, अमरूद, जाम के पेड़ों में
अब जिस तरह कट रहे हैं पेड़
स्मृतियाँ कट रही हैं
बदलता जा रहा है गाँव
भूलता जा रहा है गाँव ।
*****
रचनाकार परिचय:-
त्रिजुगी कौशिक वरिष्ठ कवि हैं। वर्तमान में आप जन संपर्क विभाग में कार्यरत तथा रायपुर में अवस्थित हैं।
पेड़ों की वज़ह से पहचानते थे
हमारा बचपन गुज़रता था
आम, इमली, अमरूद, जाम के पेड़ों में
अब जिस तरह कट रहे हैं पेड़
स्मृतियाँ कट रही हैं
बदलता जा रहा है गाँव
भूलता जा रहा है गाँव ।
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रचनाकार परिचय:-
त्रिजुगी कौशिक वरिष्ठ कवि हैं। वर्तमान में आप जन संपर्क विभाग में कार्यरत तथा रायपुर में अवस्थित हैं।
6 टिप्पणियाँ
सामयिक त्रासदी को उद्घाटित करती मर्मस्पर्शी रचना.
जवाब देंहटाएंदिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
पहले हम खेतों को
जवाब देंहटाएंपेड़ों की वज़ह से पहचानते थे
हमारा बचपन गुज़रता था
आम, इमली, अमरूद, जाम के पेड़ों में
अब जिस तरह कट रहे हैं पेड़
स्मृतियाँ कट रही हैं
बदलता जा रहा है गाँव
भूलता जा रहा है गाँव
गंभीर और हृदय स्पर्शी कविता है।
कविता में प्रकृति और पर्यावंरण के प्रति चिंता दिखायी पडती है।
जवाब देंहटाएंKavita mein prekrti ka mitne ka bhavah roop bahut achhe se dikhaya hai
जवाब देंहटाएंस्मृतियाँ कट रही हैं
जवाब देंहटाएंबदलता जा रहा है गाँव
भूलता जा रहा है गाँव
सच कहा आपने...
गहरे मनोभाव लिये हुये है यह रचना. बढती आबादी और जरूरतें बहुत कुछ लील रही हैं
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.