
सालासर में ६ नवम्बर, १९७३ को जन्मे राजाभाई कौशिक अजमेर के डी.ए.वी. कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत आयुर्वेद की ओर उन्मुख हुये और इस क्षेत्र में सुयश प्राप्त किया।
वर्तमान में राजस्थान के चुरू में निवास कर रहे राजाभाई ने अनेक कविताएं, लेख, व्यंग्य आदि लिखें हैं और कई सम्मान प्राप्त किये हैं। आप एक अच्छे चित्रकार भी हैं।
वर्तमान में राजस्थान के चुरू में निवास कर रहे राजाभाई ने अनेक कविताएं, लेख, व्यंग्य आदि लिखें हैं और कई सम्मान प्राप्त किये हैं। आप एक अच्छे चित्रकार भी हैं।
ध्वस्त जिसको कर दिया है, वक्त के तूफान ने
क्यों उसीका आज तुम, आधार पाना चाहते हो ?
खोगया मझधार में खुद, जो किनारा छोडकर
क्यों उसे माँझी समझ, उस पार जाना चाहते हो ?
यह तुम्हारी भूल है या कि है उन्माद तेरा
जो उस दिवास्वप्न को, साकार पाना चाहते हो ?
व्याधियाँ जिसकी है रातें और व्यथा जिसका सवेरा
क्यों उसी के होठ पर, मधुहास लाना चाहते हो ?
जिन्दगी जिसकी स्वयं टूटी हुई सीतार सीहते
क्यों उसी सीतार पर तुम स्वर सजाना चाहो ?
जो बहारों के मृदुल चरणों से रौंदा गया हो
क्यों उसी की बाँह का मनुहार पाना चाहते हो ?
जल उठेगा बाग भी जिसकी झुलती पाँख से
क्यों एसे फूलको उपवन में लगाना चाहते हो ?
खोगये विश्वास जिसके धूल में एक बूँद जैसे
क्यों उसी का आज तुम विश्वास पाना चाहते हो ?
उजडा हुआ है जो हृदय विधवा की सूनी माँग सा
क्यों उसी टूटे हृदय का प्यार पाना चाहते हो ?
प्यार ने जिसको छला, मधुमास का आभास देकर
रह गया स्तब्ध सा अब सिर्फ निश्वास होकर
दग्ध उर जिसका हुआ है, चिर विरह की आग से
आज फिर उस आग में क्यों घृत चढाना चाहते हो ?
11 टिप्पणियाँ
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना......
जवाब देंहटाएंमन को मोह लिया
जवाब देंहटाएंप्यार में भिगो दिया
प्रश्नों को जीवंत किया
प्रश्न फिर भी रह गया।
बहुत अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत उम्दा लिखा है.
जवाब देंहटाएंहाँ मग़र मुझे इन लाइंस में लगता है कि "है" हटा के देखा जाए-
ध्वस्त जिसको कर दिया है, वक्त के तूफान ने
क्यों उसीका आज तुम, आधार पाना चाहते हो ?
जारी रहें.
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अमित के सागर
प्यार ने जिसको छला, मधुमास का आभास देकर
जवाब देंहटाएंरह गया स्तब्ध सा अब सिर्फ निश्वास होकर
दग्ध उर जिसका हुआ है, चिर विरह की आग से
आज फिर उस आग में क्यों घृत चढाना चाहते हो
बहुत सुंदर......
विशेष रूप से ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.....
आभार.....और बधाई....राजाभाई जी.....
कौशिक जी थोथली बडाई या भर्त्सना करना मेरी आदत नहीं आज कल कमेन्ट करने की यही परिभाषा हो गयी है कविता पढ़ी या नहीं बस कहना यही है क्या बात है बहुत सुंदर लिखा है बड़ा भाव प्रधान रचना है अरे भाव है तो डूबो न भाब मेंमें डूबो फिर लिखो कुछ ..दो लाईने कॉपी की मारी क्या भाब है अरे हां खैर आप की इस उम्दा रचना के लिए शब्द नहीं है नतमस्तक हूँ
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
bahut hi badhiyaa...
जवाब देंहटाएंमुग्ध करने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंबधाई
rachna achhi lagi hamari aadat si bani hui hai sadavia sahare ki bachpan se hi suru hua aur ant tak yahi chalta hi rahega is chij ko jisne bhi samajh liya wahi mahamanav ban gaya
जवाब देंहटाएंसुन्दर अलंकारों से सजी रचना. जीवन के कटू क्षणों को भावों में पिरो कर एक सुन्दर रचना को साकार रूप दिया है.
जवाब देंहटाएंखोगये विश्वास जिसके धूल में एक बूँद जैसे
जवाब देंहटाएंक्यों उसी का आज तुम विश्वास पाना चाहते हो
Sundar panktiyaan hain.......lajawaab racna hai
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