

शरद चन्द्र गौड तथा कविता गौड बस्तर अंचल में अवस्थित रचनाकार दम्पति हैं। आपका बस्तर क्षेत्र पर गहरा अध्ययन व शोध है।
आपकी प्रकाशित पुस्तकों में बस्तर एक खोज, बस्तर गुनगुनाते झरनों का अंचल, तांगेवाला पिशाच, बेड नं 21, पागल वैज्ञानिक प्रमुख हैं। साहित्य शिल्पी के माध्यम से अंतर्जाल पर हिन्दी को समृद्ध करने के अभियान में आप सक्रिय हुए हैं।
घोटुल बस्तर के आदिवासियों की महत्वपूर्ण संस्था है। घोटुल में युवक एवं युवतियाँ आमोद-प्रमोद के साथ सामाजिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये एकत्रित होते हैं। कुछ विद्वानों ने इसे मात्र यौन अनुभव प्राप्त करने की संस्था मान लिया जो कि बिल्कुल गलत है। वास्तव में जब बस्तर के इस आदिवासी क्षेत्र में शिक्षण एवं सामाजिक संस्थायें नहीं थी, तब यही घोटुल आमोद-प्रमोद के साथ सामाजिक सीख भी देते थे। घोटुल में आने वाले युवक-युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने की छूट भी होती रही है एवं इसे सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त थी। इसको स्वच्छंद यौन आचरण कदापि नहीं कहा जा सकता। मैने बस्तर को करीब से देखा एवं समझा है। उन घोटुलों को भी देखने का अवसर मुझे मिला जो कि अपने आदिम रूप में आज भी सुरक्षित हैं। मुझे यह सामाजिक ज्ञान एवं समाज को संगठित करने वाली संस्था लगी।
घोटुल गांव के किनारे बनी एक मिट्टी की झोपड़ी होती है। कई बार घोटुल में दीवारों की जगह खुला मण्डप होता है। ऐसे ही एक घोटुल को मैंने कोण्डागांव विकास खण्ड के ग्राम करंडी में देखा जब मैं वहाँ चुनाव कराने गया हुआ था। घोटुल के स्तंभों एवं दीवारों पर वाद्य यंत्र टंगे होते हैं जिनका उपयोग संध्या को बजाने के लिये किया जाता है। सूरज ढलने के कुछ ही देर पश्चात युवक-युवतियाँ धीरे-धीरे एकत्रित होने लगते हैं एवं कब उनका समूह गान प्रारम्भ हो जाता है पता ही नहीं चलता। कई बार ये समूह में गाते हुए ही घोटुल तक पहुँचते हैं। धीरे-धीरे स्वरों की तान एवं वाद यंत्रों की थाप पर ये थिरकने लगते हैं। युवतियों का समूह अलग बनता है एवं युवकों का अलग। एक दो गीतों के बाद ये समूहों में बातचीत करते एवं गांव की समस्याओं पर चर्चा करते दिखाई पड़ते हैं। समूह में गीत एवं नृत्य पुन: प्रारम्भ हो जाता है। घोटुल में युवक एवं युवतियों के साथ कुछ अधेड़ एवं वृद्ध लोग भी अवश्य आते हैं किंतु वे दूर बैठकर ही नृत्य इत्यादि देखने का आनंद लेते हैं। वे गीत एवं नृत्य में भाग नहीं लेते। इन्हें घोटुल का संरक्षक माना जा सकता है। कुछ स्थानों पर घोटुल के युवक ‘‘चेलिक’’ एवं युवतियाँ ‘‘मोटियारी’’ के नाम से पुकारी जाती हैं।
बस्तर में सभ्यता के प्रकाश एवं बाहरी व्यक्तियों के आगमन से जहाँ ‘‘घोटुल’’ का स्वरूप बिगड़ा है वहीं यह महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था अंतिम सांसे गिन रही है। बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में घोटुल आज भी अपने बदले हुए स्वरूप के साथ देखे जा सकते हैं।
बस्तर में सभ्यता के प्रकाश एवं बाहरी व्यक्तियों के आगमन से जहाँ ‘‘घोटुल’’ का स्वरूप बिगड़ा है वहीं यह महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था अंतिम सांसे गिन रही है। बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में घोटुल आज भी अपने बदले हुए स्वरूप के साथ देखे जा सकते हैं।
संध्या में बस्तर के किसी भी अंदरूनी ग्राम में समूह में युवक-युवतियों को गाते एवं नाचते देखा जा सकता है हालांकि घोटुल जैंसी झोंपड़ी अधिकांश जगह नहीं होती। गांव के चौपाल या खुले क्षेत्र में ये युवक-युवतियाँ गाते बजाते एवं नृत्य करते हैं। घोटुल का स्थान ग्रामों में बन रहे सामुदायिक भवन ले रहे हैं। किेतु घोटुल की प्रथा समूह नृत्य एवं गान के माध्यम से आज भी पुराने दिनों की याद दिलाती है।
5 टिप्पणियाँ
आदिवासियों की इस संस्था अथवा प्रथा .? के बारे में विस्तृत जानकारी देने का बहुत आभार..!!
जवाब देंहटाएंघोटुल और उससे जुडे मिथको व जानकारी को बाँटने का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंInformative.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
जानकारीपूर्ण
जवाब देंहटाएंDilchasp Jankari !!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.