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भ्रांतिमान में भूल से, लगे असत ही सत्य[काव्य का रचना शास्त्र:२२] -आचार्य संजीव 'सलिल'


भ्रांतिमान में भूल से, लगे असत ही सत्य.

जब दिखती है एक में, दूजे की छवि मीत.
भ्रांतिमान कहते उसे, कविजन गाते गीत..

गुण विशेष से एक जब, लगता अन्य समान.
भ्रांतिमान तब जानिए, अलंकार गुणवान..

भ्रांतिमान में भूल से, लगे असत ही सत्य.
गुण विशेष पाकर कहें, ज्यों अनित्य को नित्य..


जैसे रस्सी देखकर, सर्प समझते आप.
भ्रांतिमान तब काव्य में, भ्रम लख जाता व्याप..

<span title=साहित्य शिल्पी" width="80" align="left" border="0">रचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।

आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।

वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।

जब रूप, रंग, गंध, आकार, कर्म आदि की समानता के कारण भूल से् प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आभास होता है, तब ''भ्रांतिमान अलंकार'' होता है.

जब दो वस्तुओं में किसी गुण विशेष की समानता के कारण भ्रमवश एक वस्तु को अन्य समझ लिया जाये तो उसे ''भ्रांतिमान अलंकार'' कहते हैं.

उदाहरण:

१.
कपि करि ह्रदय विचार, दीन्ह मुद्रिका डारि तब.
जनु असोक अंगार, दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ..
-तुलसीदास

यहाँ अशोक वृक्ष पर छिपे हनुमान जी द्वारा सीताजी का विश्वास अर्जित करने के लिए श्री राम की अँगूठी फेंके जाने पर दीप्ति के कारण सीता जी को अंगार का भ्रम होता है. अतः, भ्रांतिमान अलंकार है.

२.
जान स्याम घन स्याम को, नाच उठे वन-मोर.

यहाँ श्री कृष्ण को देखकरउनके सांवलेपन के कारण वन के मोरों को काले बादल होने का भ्रम होता है और वे वर्षा होना जानकार नाचने लगते हैं. अतः, भ्रांतिमान है.

३.
चंद के भरम होत, मोद है कुमोदिनी को.

कुमुदिनी को देखकर चंद्रमा का भ्रम होना, भ्रांतिमान अलंकार का लक्षण है.

४.
चाहत चकोर सूर ओर, दृग छोर करि.
चकवा की छाती तजि, धीर धसकति है..


५.
हँसनि में मोती से झरत जनि हंस दौरें बार मेघ मानी बोलै केकी वंश भूल्यौ है.
कूजत कपोत पोत जानि कंठ रघुनाथ फूल कई हरापै मैन झूला जानि भूल्यौ है.
ऐसी बाल लाल चलौ तुम्हें कुञ्ज लौं देखाऊँ जाको ऐसो आनन प्रकास वास तूल्यौ है.
चितवे चकोर जाने चन्द्र है अमल घेरे भौंर भीर मानै या कमल चारु फूल्यौ है.

६.
नाक का मोती अधर की कांति से.
बीज दाडिम का समझ कर भ्रांति से.
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है.
सोचता है अन्य शुक यह कौन है.
-
मैथिलीशरण गुप्त
७.
काली बल खाती चोटी को देख भरम होता नागिन का. -सलिल

८. अरसे बाद
देख रोटी चाँद का
आभास होता.
-सलिल

९.
जन-गण से है दूर प्रशासन
जनमत की होती अनदेखी
छद्म चुनावों से होता है
भ्रम सबको आजादी का.
-सलिल

भ्रांतिमान अलंकार सामयिक विसंगतियों को उद्घाटित करने, आम आदमी की पीडा को शब्द देने और युगीन विडंबनाओं पर प्रहार करने का सशक्त हथियार है किन्तु इसका प्रयोग वही कर सकता है जिसे भाषा पर अधिकार हो तथा जिसका शब्द भंडार समृद्ध हो.

साहित्य की आराधना आनंद ही आनंद है.
काव्य-रस की साधना आनंद ही आनंद है.
'सलिल' सा बहते रहो, सच की शिला को फोड़कर.
रहे सुन्दर भावना आनंद ही आनंद है.

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27 टिप्पणियाँ

  1. सलिल जी आपके प्रत्येक आलेखों की तरह यह आलेख भी रुचिकर तथा महत्व का है। सभी नवीन उदाहरणों के लिये भी धन्यवाद। सच कहूँ तो इस अलंकार का नाम भी मैने पहले नहीं सुना था।

    जवाब देंहटाएं
  2. जब दिखती है एक में, दूजे की छवि मीत.
    भ्रांतिमान कहते उसे, कविजन गाते गीत..

    गुण विशेष से एक जब, लगता अन्य समान.
    भ्रांतिमान तब जानिए, अलंकार गुणवान..

    प्रभावी विवेचन।

    जवाब देंहटाएं
  3. भ्रांतिमान अलंकार सामयिक विसंगतियों को उद्घाटित करने, आम आदमी की पीडा को शब्द देने और युगीन विडंबनाओं पर प्रहार करने का सशक्त हथियार है किन्तु इसका प्रयोग वही कर सकता है जिसे भाषा पर अधिकार हो तथा जिसका शब्द भंडार समृद्ध हो.

    आचार्य संजीव जी का हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक और संग्रहयोग्य लेख।

    जवाब देंहटाएं
  4. पंकज सक्सेना5 अगस्त 2009 को 10:22 am बजे

    आभार संजीव जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. पुरानी कविताओं के अर्थ दे कर आपने अपने आलेख पर मेरे जैसे अनाडियों की समझ बढा दी है।

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  6. सरल विवेचना आपकी विशेषता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. रक्षाबंधन पर्व की साहित्य शिल्पियों को बधाई। सलिल जी के विषय में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना ही है।

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  8. आप सभी को रक्षा-बंधन और कजलियों की शुभ कामनाएँ. नन्दन जी! सूरज को दीपक न दिखाकर सलिल का अर्ध्य चढा दीजिये तो यह धन्य हो जायेगा.

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  9. रुचिकर के साथ ज्ञानवर्धक आलेख, रोजमर्रा की जिन्दगी में यह भ्रांतिमान अलंकार अक्सर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ही लेता है !

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  10. अलंकारों पर प्रामाणिक आलेख श्रंखला।
    रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें।

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  11. सभी पाठकों, प्रशंसकों व् टिप्पणीकारों को धन्यवाद तथा बुंदेलखंड के लोक पर्व कजलियाँ की शुभकामनायें.

    अदा जी!

    'सुन्दरता' आकार का विशेषण है. आप सुन्दर हैं. प्रकृति सुन्दर है. भवन सुन्दर है. इस तरह के प्रयोग सही हैं. इन्हें स्वादिष्ट नहीं कहा जा सकता क्योंकि स्वाद रसना (जिव्हा) से अनुभूत किया जाता है. स्वाद को आँखों से नहीं देखा जा सकता. रूप और रंग को बिना आँखों के नहीं देखा जा सकता किन्तु काव्य या लेख का आनंद सुनकर या पढ़कर लिया जाता है. लेख का आकार केवल छोटा या बड़ा होता है. सभी अक्षर हमेशा एक से लिखे जाते हैं. उनकी श्रेष्ठता सुन्दरता से नहीं उनके अर्थ और कथ्य से आँकी जाती है. लिखायी का सुन्दर या असुंदर होना अक्षरों के आकारों से संबंधित है पर साहित्यिक सामग्री की श्रेष्ठता के निर्धारण के मानक अलग हैं.

    सरसता, मधुरता, मार्मिकता, भाषिक शुद्धता, शैली, बिम्ब, प्रतिक, सामयिकता, प्रासंगिकता, उपयोगिता आदि अनेक मानक हैं. शायद आप सहमत हो सकें कि 'सुन्दर' का पर्यायवाची 'खूबसूरत' किसी रचना के लिए प्रयोग किया जाना ठीक नहीं है क्योकि रचना की सूरत ही नहीं होती. क्या किसी लेख को 'हसीं', 'नाजनीन', नयनाभिराम'' 'आकर्षक' आदि विशेषण देना उचित होगा? इसी तरह ''सुन्दर ' का प्रयोग भी सार्थक नहीं है. कृपया, अन्यथा न लें.
    भाषा में शब्दों का सही प्रयोग ही साहित्यकार और सामान्य जन कि पहचान बनता है. यदि मैं गलत हूँ तो कृपया बताएं, मैं स्वयं को सुधारूँगा.

    जवाब देंहटाएं
  12. रचना श्रंखला के लिये तो हम आपके आभारी हैं ही आपसे भाषा को ले कर ज्ञान प्राप्ति भी होती रहती है। यथोचित सुधार का प्रयास रहेगा।

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  13. वाह ! काव्य में ही संपूर्ण जानकारी.. आभार

    जवाब देंहटाएं
  14. कोमल किंशुक समझ कर झपटा भंवरा शुक की लाल चोंच पर।
    तोते ने निज ठौर चलाई जामुन का फल उसे समझ कर।

    जवाब देंहटाएं
  15. संदेह अलंकार का उदाहरण दीजिए कोई भाई

    जवाब देंहटाएं
  16. भ्रांतिमान अलंकार को इतनी सरलता से समझाने के लिए बहुत धन्यवाद..!

    जवाब देंहटाएं

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