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यह-वह का संशय बने अलंकार संदेह [काव्य का रचना शास्त्र: २३] - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'


साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।

वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं
'चौदहवीं का चाँद' हिंदी सिनेमा की कालजयी कृति है. यह गुरुदत्त जी, वहीदा जी, रहमान जी तथा जॉनी वाकर जी के जीवंत अभिनय और मधुर गीतों के लिए हमेशा याद की जाती है. किन्तु हम इसे एक अन्य सन्दर्भ में याद कर रहे हैं. इस चलचित्र का शीर्षक गीत याद करें... याद आया?...नहीं...तो आप युवा होंगे. हमारी उम्र के दर्शक तो भूल नहीं सकते...इसके बोल हैं-
चौदहवीं का चाँद हो
या आफताब हो?
जो भी हो तुम
खुदा की कसम लाजवाब हो...

नायिका के अनिंद्य रूप पर मुग्ध नायक यह तय नहीं कर पा रहा कि उसे सूर्य माने या चंद्रमा?

आइये, एक अन्य पुराना फिल्मी गीत दोहरायें...बोल हैं
ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत
कौन हो तुम बतलाओ?
देर से इतनी दूर खडी हो
और करीब आ जाओ.

यह तो आप सबने समझ ही लिया है कि नायक नायिका को देखकर सपना है या सच है? का निश्चय नहीं कर पा रहा है और यह तय करने के लिए उसे निकट बुला रहा है.

एक और फिल्मी गीत को याद कर लें-
मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये
बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये?

आप सोच रहे होंगे अलंकार चर्चा के इच्छुक काव्य रसिकों से यह कैसा सलूक कि अलंकार छोड़कर सिनेमाई गीतों वो भी पुराने दोहराये जाएँ?

धैर्य रखिये, यह अकारण नहीं है.


घबराइये मत हम आपसे न तो गीत सुनाने को कह रहे हैं, न गीतकार, गायक या संगीतकार का नाम ही पूछ रहे हैं. बताइए सिर्फ यह कि दोनों गीतों में कौन सी समानता है?

असल में ये तीनों ही गीत उस अलंकार का उदाहरण हैं जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं.

क्या?.. नायक ने गाया है... यह तो पूछने जैसी बात ही नहीं है...समानता यह है कि तीनों गीतों में नायक दुविधा का शिकार है- चाँद या सूरज?, सपना या सच?, मारे या छोडे?

यह दुविधा, अनिर्णय, संशय, शक या संदेह की मनःस्थिति जिस अलंकार की जननी है, उसका नाम है संदेह अलंकार.

रूप, रंग आदि की समानता होने के कारण उपमेय में उपमान का संशय होने पर संदेह अलंकार होता है.

जहाँ रूप, रंग और गुण की समानता के कारण किसी वस्तु को देखकर यह निश्चचय न हो सके कि यह वही वस्तु है या नहीं? वहाँ संदेह अलंकार होता है.

यह अलंकार तब होता है जब एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का संदेह तो हो पर निश्चय न हो. इसके वाचक शब्द कि, किधौं, धौं, अथवा, या आदि
होते हैं.
यह-वह का संशय बने, अलंकार संदेह.
निश्चय बिन हिलता लगे, विश्वासों का गेह..

इस-उस के निश्चय बिना हो मन हो डांवाडोल.
अलंकार संदेह को, ऊहापोह से तोल..

उदाहरण:
१.
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है.
सारी ही कि नारी है कि नारी ही कि सारी है.


यहाँ द्रौपदी के चीरहरण की घटना के समय का चित्रण है कि द्रौपदी के चारों और चीर के ढेर देखकर दर्शकों को संदेह हुआ कि साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साड़ी है?
२.
को तुम तीन देव मँह कोऊ, नर नारायण कि तुम दोऊ.


यहाँ संदेह है कि सामने कौन उपस्थित है ? नर, नारायण या त्रिदेव (ब्रम्हा-विष्णु-महेश).
३.
परत चंद्र प्रतिबिम्ब कहुँ जलनिधि चमकायो.
कै तरंग कर मुकुर लिए शोभित छवि छायो.
कै रास रमन में हरि मुकुट आभा जल बिखरात है.
कै जल-उर हरि मूरति बसत ना प्रतिबिम्ब लखात है.

पानी में पड़ रही चंद्रमा की छवि को देखकर कवि संशय में है कि यह पानी में चन्द्र की छवि है या लहर हाथ में दर्पण लिए है?, यह रास लीला में निमग्न श्री कृष्ण के मुकुट की परछाईं है या सलिल के ह्रदय में बसी प्रभु की प्रतिमा है?
४.
तारे आसमान के हैं आये मेहमान बनी,
केशों में निशा ने मुक्तावलि सजायी है.
बिखर गयी है चूर-चूर है के चंद कैधों,
कैधों घर-घर दीपमालिका सुहाई है.

इस प्रकृति चित्रण में संशय है कि आसमान में तारे अतिथि बनकर आये हैं, अथवा रजनी ने मुक्तावलि सजायी है, चंद्रमा चूर होकर बिखर गया है या घर -घर में दिवाली मनाई जा रही है.
४.
कज्जल के तट पर दीपशिखा सोती है कि,
श्याम घन मंडल में दामिनी की धारा है?
यामिनी के अंचल में कलाधर की कोर है कि,
राहू के कबंध पै कराल केतु तारा है?
'शंकर' कसौटी पर कंचन की लीक है कि,
तेज ने तिमिर के हिए में तीर मारा है?
काली पाटियों के बीच मोहिनी की मांग है कि,
ढाल पर खांडा कामदेव का दुधारा है.?

इस छंद में संदेह अलंकार की ४ बार आवृत्ति है. संदेह है कि- काजल के किनारे दिए की बाती है या काले बादलों के बीच बिजली?, रात के आँचल में चंद्रमा की कोर है या राहू के कंधे पर केतु?, कसौटी के पत्थर पर परखे जा रहे सोने की रेखा है या अँधेरे के दिल में उजाले का तीर?, काले बालों के बीच किसी सुन्दरी की मांग है या ढाल पर कामदेव का दुधारा रखा है?
५.
नित सुनहली साँझ के पद से लिपट आता अँधेरा.
पुलक पंखी विरह पर उड़ आ रहा है मिलन मेरा,
कौन जाने बसा है उस पार
तम या रागमय दिन? - महादेवी वर्मा

६.
जननायक हो जनशोषक
पोषक अत्याचारों के?
धनपति हो या धन-गुलाम तुम
अपराधी लाचारों के? -सलिल

७.
भूखे नर को भूलकर, हर को देते भोग.
पाप हुआ या पुण्य यह?, करुँ हर्ष या सोग?.. -सलिल


संदेह अलंकार का प्रयोग सामाजिक विसंगतियों और त्रासदियों के चित्रण में भी किया जा सकता है.

अभ्यास: आप साहित्य शिल्पी में प्रकाशित रचनाओं में से संदेह अलंकार खोज कर बताइये.

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15 टिप्पणियाँ

  1. आपके उदाहरणों की हर बार प्रसंशा हुई है लेकिन आज फिल्मी गीतों के उदाहरण रोचकता बढा रहे हैं।

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  2. ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत
    कौन हो तुम बतलाओ?
    देर से इतनी दूर खडी हो
    और करीब आ जाओ.

    कितने अलंकारो से भरे सुन्दर गीत लिखे जाते थे उस दौर में तभी हमेशा जीवित रहने वाले गीत बन गये। अलंकारों की महत्ता इसी से सिद्ध होती है।

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  3. आचार्य जी नें बहुत रोचक बना कर संदेह अलंकार की जानकारी हमें प्रदान की है। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर गीत आपने
    फिर से स्मरण करा दिए....

    प्रतीक्षा है अगले अंक की........

    आभार....

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  5. सलिल जी श्रंखला के अन्य आलेखों से अलग अपने विश्लेशण को आसानी से समझ में आने वाले उदाहरणों की ओर ले गये हैं।

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  6. achaary ji......... lajawaab hai aapki vyaakhya....aapke udhaaran ka prayog rochakta deta hai.... samajhne mein aasaani ho jaati hai...

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  7. LEKH MEIN ITNEE ZIADA SARLTA.AESA
    JADOO ACHARYA SALIL JEE HEE KAR
    SAKTE HAIN.MEREE BADHAAEE AUR SHUBH
    KAMNA.

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  8. आदरणीय संजीव वर्मा सलिल जी अपनी "आचार्य" उपाधि को चरितार्थ करते हैं। अंतर्जाल के पाठकों की मन:स्थिति एवं सीमाओं की बारीकी को समझ कर आप हमेशा ही अपने आलेख तैयार करते हैं। आपके आलेख हमेशा ही पाठकों को लाभांवित करते रहेंगे साथ ही अलंकारों की प्रामाणिक जानकारी के लिये इससे बेहतर रिफ्रेंस कहीं उपलब्ध नहीं है।

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  9. यह-वह का संशय बने, अलंकार संदेह.
    निश्चय बिन हिलता लगे, विश्वासों का गेह..

    इस-उस के निश्चय बिना हो मन हो डांवाडोल.
    अलंकार संदेह को, ऊहापोह से तोल..

    बड़े ही सुन्दर ढंग से संदेह अलंकार की जानकारी दी है. फ़िल्मी गीतों के उदाहरणों से लेख बहुत ही रोचक बन गया है. द्रौपदी के चीरहरण; नर, नारायण या त्रिदेव, रासलीला में श्री कृष्ण के मुकुट की परछाई, अलंकारों की बार बार आवृत्ति और सारे ही उदाहरणों से इस अलंकार का विश्लेषण आत्मसात करने में जरा भी कठिनाई नहीं होती. 'सलिल' जी को बधाई.

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  10. अलंकार संदेह से, खुलें कल्पना द्वार.

    कवि कविता में ला सकें, रसमय नवल निखार.

    भाव-जगत में रसिक मन, विचरे पा आनंद.

    पाठक पढ़कर झूमता, हृद्स्पर्शी छंद.

    जो पढ़-समझें, टीप दें, उनका है आभार.

    जो न समझते वे सुहृद, समझें पढ़ बहु बार.

    जवाब देंहटाएं
  11. Bahut sunder jaankaari di hai aapne. Dhaywaad

    जवाब देंहटाएं
  12. Bahut sunder jaankaari di hai aapne. Dhaywaad

    जवाब देंहटाएं
  13. Mujhe aapka geet ke madhyam se smjhane ka tarika behad anokha aur achchha laga

    जवाब देंहटाएं

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