
कि जिस दिन हमारे चरण से
बँधी शृंखला दासता की
तड़क कर अवनि पर गिरी थी,
व सारे जगत ने
बड़ी तेज़ आवाज़ जिसकी सुनी थी,
कि जिससे
सभी भग्न सोये हुओं की
थकी बंद आँखें खुली थीं,
व हर आततायी के
पैरों की धरती हिली थी !
महेन्द्र भटनागर जी वरिष्ठ रचनाकार है जिनका हिन्दी व अंग्रेजी साहित्य पर समान दखल है। सन् 1941 से आरंभ आपकी रचनाशीलता आज भी अनवरत जारी है। आपकी प्रथम प्रकाशित कविता 'हुंकार' है; जो 'विशाल भारत' (कलकत्ता) के मार्च 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। आप सन् 1946 से प्रगतिवादी काव्यान्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध रहे हैं तथा प्रगतिशील हिन्दी कविता के द्वितीय उत्थान के चर्चित हस्ताक्षर माने जाते हैं। समाजार्थिक यथार्थ के अतिरिक्त आपके अन्य प्रमुख काव्य-विषय प्रेम, प्रकृति, व जीवन-दर्शन रहे हैं। आपने छंदबद्ध और मुक्त-छंद दोनों में काव्य-सॄष्टि की है। आपका अधिकांश साहित्य 'महेंद्र भटनागर-समग्र' के छह-खंडों में एवं काव्य-सृष्टि 'महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा' के तीन खंडों में प्रकाशित है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
बुभुक्षित व शोषित युगों ने
नवल आश-करवट बदलकर
बड़ी साँस लम्बी भरी जो
कि भय से उसी क्षण
सुदृढ़ देश साम्राज्यवादी
सहम कर
मरण के क़दम पर गिरे,
और खोये
समय की सबल धार में !
क्योंकि निश्चय —
किसी पर किसी भी तरह
आज छाना कठिन है !
किसी को किसी भी तरह
अब दबाना कठिन है !
नयी आग लेकर यह जागा तरुण है !
विरोधी ज़माने से लड़ना ही
जिसकी लगन है !
यह वह दिवस है
कि जिस दिन हटा आवरण सब
हमारे गगन पर
नयी रोशनी ले
नया चाँद आया,
अँधेरी दिशा चीर कर
जगमगाया ;
बड़ा आत्म-विश्वास लाया —
नहीं यह तिमिर अब घिरेगा,
न आँखों पर परदा
प्रलय का गिरेगा,
न उर-वेदना
रात-भर नृत्य करती रहेगी,
नहीं दुःख की और नदियाँ बहेंगी !
उभरती जवानी नयी है !
वतन की कहानी नयी है !
रुकावट सहायक बनी है,
प्रखर युग रवानी यही है !
विजय की निशानी यही है !
यह वह दिवस है
कि जिस दिन नयी ज़िन्दगी ने
सहज मुसकरा मुग्ध
चूमे हमारे अधर थे !
खुले कोटि
अभिनव प्रबल मुक्त स्वर थे !
मनायी थीं हमने
विभा-ज्ञान-त्योहार खुशियाँ,
स्वयं आन तक़दीर नाची,
व हम गा रहे थे !
कि दुनिया के सम्मुख
बड़ी तेज़ रफ़्तार से बढ़
भगे जा रहे थे !
शिराओं में लहरें
नये ख़ून की भर !
निडर बन
सहारे बिना
और देशों को लड़ने की ताक़त
दिये जा रहे थे !
पुराने सभी घाव घातक
सिये जा रहे थे !
नयी भूमि पर
एक नव शांत बस्ती
बसाये चले जा रहे थे !
करोड़ों
सजग औरतों के नयन थे,
करोड़ों
सबल व्यक्तियों के चरण थे,
कि जो देश का चेहरा सब
बदलने खड़े थे !
बुरी रीतियों से
कड़ी आफ़तों से लड़े थे !
यह वह दिवस है
कि जिस दिन
हमारी हरी भूमि पर
फूल नूतन खिले थे !
व बरसों के बिछुड़े हुये
फिर मिले थे !
युगोंबद्ध
सब जेलख़ाने खुले थे !
कि हँसते हुए
विश्व-स्वाधीनता के सिपाही
विजय गान गाते
सुखद साँस भर
आज बाहर हुए थे !
अनेकों सुहागिन ने
जिस दिन को लाने
स्वयं माँग सिन्दूर पोंछा
वही यह दिवस है !
वही यह दिवस है !
सफल आक्रमण का
अथक त्याग, बलिदान, आन्दोलनों का,
जगत जागरण का,
क्षुधित नग्न पीड़ित जनों का,
दबी धड़कनों का !
12 टिप्पणियाँ
वही यह दिवस है !
जवाब देंहटाएंसफल आक्रमण का
अथक त्याग, बलिदान, आन्दोलनों का,
जगत जागरण का,
क्षुधित नग्न पीड़ित जनों का,
दबी धड़कनों का !
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें।
Happy independence day.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria.
महेन्द्र भटनागर जी नें पराधीन भारत को देखा है इसी लिये वह वेदना तथा स्वतंत्रता का उत्साह कविता में निकल कर आया है।
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जय हिन्द
उत्साह बह्रती हुए रचना। स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र जी की रचना उर्जा भर रही है।
जवाब देंहटाएंजय हिन्द।
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें। महेन्द्र जी की रचना आज के दिवस के अनुरूप बेहतरीन प्रस्तुति है। हमें राष्ट्राधना के लिये प्रस्तुत होना चाहिते क्योंकि आजादी बहुत मुश्किल से लायी गयी है
जवाब देंहटाएंNice one.
जवाब देंहटाएंजानदार और प्रवाहमयी रचना. पढ़कर मन स्फूर्ति से भर जाता है.. स्वातन्त्र्य पर्व पर ऐसी रचना महेंद्र जी जैसा समर्थ रचनाकार ही दे सकता है. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंस्व्तन्त्रता दिवश पर इतनी सुन्दर कविता के लिये आप का बहुत बहुत ध्न्यबाद स्व्तन्त्रता का जोश मह्शूस कर सकता हू मै इस रचना से
जवाब देंहटाएंसादर .
प्रवीण पथिक
९९७१९६९०८४
महेन्द्र जी सुन्दर भावनाओं से सजी इस रचना के लिये बधाई... निश्चय ही यह दिन एक अविस्मर्णिय दिन है
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.