
न ही नेताजी जैसा बुलंद हौंसला मेरा,
न ही मैं गाँधी-सा सत्यवादी ,
न ही शास्त्री जैसा सादा जीवन मेरा ,
न ही बच्चों में प्रिय मैं चाचा नेहरू जैसा,
न ही आजाद जैसा फौलादी जिस्म है मेरा,
न ही वल्लभ जैसा चमकीला व्यक्तिव मेरा,
न ही बाबासाहेब जैसी दी मैंने कोई कुर्बानी
न ही राजगुरु , सुखदेव-सा फाँसी पर चढ़ा ,
नानी-दादी से सुनी थी कहानियाँ इन योध्दाओं की ,
मैं तो एक साधारण-सा बालक हूँ ,
पर फिर भी माँ मैं हूँ तो तेरा ,
चरणों में तेरे शीश झुकाता हूँ,
श्रद्धा के फूल तेरे मस्तक पर चढ़ता हूँ ,
बलिहारी जाऊं माँ मैं तेरे,
बस इतनी तू आशीष दे,
रोशनी बन कर जीऊँ ,
कभी तेरे काम आ सकूँ.
**********

जन्म इंदौर ,मध्यप्रदेश में हुआ. देवीअहिल्या विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक. लेखन में छात्र जीवन से ही रूचि थी.भारत और दुबई में रहने के बाद वर्त्तमान में अमेरिका के शर्लोट शहर में हैं. लेखन के साथ नृत्य , लोकल हिन्दुस्तानी रेडियो प्रोग्राम के साथ कई सांस्कृतिक कार्यकर्मों में पूरे परिवार के साथ सक्रिय हैं, अनेक रेडियो कार्यक्रम प्रसारित हो चुके हैं, जिनमें लेखन का भरपूर योगदान रहा है. पाक कला में निपुण है. ज्यादा वक्त लेखन और नृत्य में बिताना पसंद करती हैं.
12 टिप्पणियाँ
पर फिर भी माँ मैं हूँ तो तेरा ,
जवाब देंहटाएंचरणों में तेरे शीश झुकाता हूँ,
श्रद्धा के फूल तेरे मस्तक पर चढ़ता हूँ ,
बलिहारी जाऊं माँ मैं तेरे,
बस इतनी तू आशीष दे,
रोशनी बन कर जीऊँ ,
कभी तेरे काम आ सकूँ.
देश भक्ति से ओत प्रोत रचना।
Nice poem, thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बस इतनी तू आशीष दे,
जवाब देंहटाएंरोशनी बन कर जीऊँ ,
कभी तेरे काम आ सकूँ.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. सुन्दर रचना
बलिहारी जाऊं माँ मैं तेरे,
जवाब देंहटाएंबस इतनी तू आशीष दे,
रोशनी बन कर जीऊँ ,
कभी तेरे काम आ सकूँ.
Bahoot sundar bhaavna se likha huvaa geet.......bahoot sundat...
REKHA BHATIA JEE KO DESH BHAKTI
जवाब देंहटाएंKEE KAVITA PAR DHERON BADHAAEEYAN
बहुत ही सुन्दर , असीम देश प्रेम और दर्शाता और समर्पण प्रदर्शित करता गीत
जवाब देंहटाएंबलिहारी जाऊं माँ मैं तेरे,
बस इतनी तू आशीष दे,
रोशनी बन कर जीऊँ ,
कभी तेरे काम आ सकूँ
मेरी बधाई स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
रेखा देश भक्ति की बहुत अच्छी कविता लिखी --
जवाब देंहटाएंबधाई! लिखती रहना ..
बहुत अच्छी रचना है रेखा जी। देशभक्ति से ओत-प्रोत
जवाब देंहटाएंदेश प्रेम और आत्मसमर्पण की भावना से ओतप्रोत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंमैं तो एक साधारण-सा बालक हूँ ,
जवाब देंहटाएंपर फिर भी माँ मैं हूँ तो तेरा ,
चरणों में तेरे शीश झुकाता हूँ,
श्रद्धा के फूल तेरे मस्तक पर चढ़ता हूँ ,
बलिहारी जाऊं माँ मैं तेरे,
बस इतनी तू आशीष दे,
रोशनी बन कर जीऊँ ,
कभी तेरे काम आ सकूँ.
एसी रचनाओं की बहुत आवश्यकता है।
बहुत प्रभावित करने वाली कविता है। साहित्य शिल्पी पर आपका हार्दिक अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंExcellent poem bua. Keep posting more.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.