
15 अगस्त के बारे में सोचते हुए सबसे पहले स्व.कवि सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ की पंक्तियाँ याद आती हैं। उन्होंने लिखा था - ‘क्या आज़ादी तीन थके हुए रंगों का नाम है / जिन्हें एक पहिया ढोता है / या इसका कोई ख़ास मतलब होता है’। क्या आज भी धूमिल की पंक्तियाँ प्रासंगिक नहीं लगती हैं? स्व. दुष्यंत कुमार भी कह गए हैं- 'कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए / कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए'। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उ.प्र. के गोण्डा ज़िले के किसान शायर रामनाथ सिंह उर्फ़ अदम गोण्डवी ने लिखा- 'सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है / दिल पे रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है'। मुम्बई के विश्वस्तर के सी-लिंक पर हम गर्व कर सकते हैं मगर महाराष्ट्र के किसानों की दशा किसी से छुपी नहीं है।
बरसों पहले यहीं के एक शायर डॉ. हनुमंत नायडू ने अपने एक शेर में यह सच बयान कर दिया था-
'भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक'।
अब आप ही बताएं कि कैसे गीत लिखकर हम आज़ादी का जश्न मनाएं! मेरी सोच के कैनवास पर विचारों ने जो अक्स बनाए उसे ही तीन गीतों के माध्यम से आप तक पहुँचा रहा हूं-

4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्मे देवमणि पांडेय हिन्दी और संस्कृत में प्रथम श्रेणी एम.ए. हैं।
अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रिय कवि और मंच संचालक के रूप में सक्रिय हैं। अब तक आपके दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- "दिल की बातें" और "खुशबू की लकीरें"।
मुम्बई में एक केंद्रीय सरकारी कार्यालय में कार्यरत पांडेय जी ने फ़िल्म 'पिंजर', 'हासिल' और 'कहाँ हो तुम' के अलावा कुछ सीरियलों में भी गीत लिखे हैं। फ़िल्म 'पिंजर' के गीत "चरखा चलाती माँ" को वर्ष 2003 के लिए 'बेस्ट लिरिक आफ दि इयर' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आपके द्वारा संपादित सांस्कृतिक निर्देशिका 'संस्कृति संगम' ने मुम्बई के रचनाकारों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई है।
हर दिन सूरज उम्मीदों का नया सवेरा लाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है
बरसों बीते फिर भी बस्ती
अँधकार में डूबी है
कभी-कभी लगता है जैसे
यह आज़ादी झूठी है
आँखों का हर ख़्वाब अचानक अश्कों में ढल जाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है
हाथ बँधे है अब नेकी के
सच के मुँह पर ताला है
मक्कारों का डंका बजता
चारों तरफ़ घोटाला है
खरा दुखी है खोटा लेकिन हर सिक्का चल जाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है
देश की ख़ुशहाली में शामिल
आख़िर ख़ून सभी का है
मगर है लाठी हाथ में जिसके
हर क़ानून उसी का है
वही करें मंजूर सभी जो ताक़तवर फरमाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है
जनतंत्र में आम आदमी (2)
रोज़ सुबह उगता है सूरज शाम ढले छुप जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है
दर-दर ठोकर खाए जवानी
कोई काम नहीं मिलता
आज भी मेहनत-मज़दूरी का
पूरा दाम नहीं मिलता
कौन हवस का मारा है जो हक़ सबका खा जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है
क्या बतलाएं स्वप्न सुहाने
जैसे कोई लूट गया
मँहगाई के बोझ से दबकर
हर इक इन्सां टूट गया
रोज़ ग़रीबी-बदहाली का साया बढ़ता जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है
किसे पता कब देश में अपने
ऐसा भी दिन आएगा
काम मिलेगा जब हाथों को
हर चेहरा मुस्काएगा
आज तो ये आलम है बचपन भूखा ही सो जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है
जनतंत्र में आम आदमी (3)
दुनिया बदली मगर अभी तक बैठे हैं अँधियारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में
हर ऊँची दहलीज़ के भीतर
छुपा हुआ है धन काला
घूम रहे बेख़ौफ़ सभी वो
करते हैं जो घोटाला
कर्णधार समझे हम जिनको शामिल हैं बटमारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में
जो सच्चे हैं वो चुनाव में
टिकट तलक न पाते हैं
मगर इलेक्शन जीत के झूठे
मंत्री तक बन जाते हैं
जिन पर हमको नाज़ था वो भी खड़े हुए लाचारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में
जिनके मन काले हैं उनके
तन पर है उजली खादी
भ्रष्टाचार में डूब गए जो
बोल रहे हैं जय गाँधी
ऐसे ही चेहरे दिखते हैं रोज सुबह अख़बारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में
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12 टिप्पणियाँ
किसे पता कब देश में अपने
जवाब देंहटाएंऐसा भी दिन आएगा
काम मिलेगा जब हाथों को
हर चेहरा मुस्काएगा
आज तो ये आलम है बचपन भूखा ही सो जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है
तीनों ही गीत आजादी को सार्थक बनाने की आवश्यकता बयान कर रहे हैं।
देवमणि जी आपके गीत हृदयस्पर्शी हैं।
जवाब देंहटाएंDil ko chhute geet.
जवाब देंहटाएंऐसे ही चेहरे दिखते हैं रोज सुबह अख़बारों में
जवाब देंहटाएंजाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में
विचारों और उर्जा से भरी हुई कवितायें।
सच का आईना दिखलाती हुई रचनायें. आभार
जवाब देंहटाएंकर्णधार समझे हम जिनको शामिल हैं बटमारों में
जवाब देंहटाएंजाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में
सभी अच्छी रचनायें।
मेरी निजी सोच, स्वाद और पसंद के गीत पढ कर अच्छा लगा. बहुत दिनों बाद ऐसा पढा. जन- गण- और मन को तलाशती आपकी रचनाएं बहत वजनदार हैं. आपको उत्तम रचनाओं के लिये बधाई...
जवाब देंहटाएंसार्थक रचनाकर्म हेतु बधाई.
जवाब देंहटाएंPandey ji
जवाब देंहटाएंNamaskaar.
Bahut khoob.
Teen kavitayen nahi yeh ek granth likha h aapne.
If you permit then I will like to send these poem to P.M. and President of India.
Also to the Governor of my state Haryana.
They must know.
Thanks
Provide email facility.
Thnaks again
Ramesh Sachdeva
hpsdabwali07@gmail.com
bahut sundar....
जवाब देंहटाएंman ko choo gayeen...
.badhaee aapko
वो गीत जो मन में सीधे उतर जायें..आभार
जवाब देंहटाएंकविताओं में जीवन-वास्तव का सही चित्रण हुआ है।
जवाब देंहटाएंकविताएँ मार्मिक हैं। प्राजंल अभिव्यक्ति देखकर लगता है, हिन्दी में कविता वापस आ रही है।
*महेंद्रभटनागर, ग्वालियर — २
फ़ोन : ०७५१-४०९२९०८
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