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वे शहनाई के कबीर थे [शहनाई-सम्राट बिस्मिल्लाह खान की पुण्यतिथि पर विशेष] - सुशील कुमार


[कविता पेंटिंग श्रंखला की प्रथम प्रस्तुति]
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(साभार पेन्टिंग : विजेन्द्र एस. विज)
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साँस की टूटी डोर से
छूटा यह लोकवाद्य
भीषण दु:ख से चित्कार कर
पुकार रहा हैं उस फकीर को
अपने पीर को
जिसकी फूँक से
गूँजती थी कभी
यहाँ की वादियाँ

सच्चे सुर की तलाश में जिसने
सादगी-सौम्यता का वेश धर
फक्क्ड़ की शान से
ताज़िन्दगी गुज़ार दी

जिसकी नाद-लहरियों में डूब
जन-गण का हृदय
मगन हो
गा उठता था
झूम उठता था

जो लय और सुर में
परम सत्य का खोजी बन
बनारस के गंगातट पर तो
कभी विश्वनाथ* की शरण में
कभी भा-रत के मन में
रमता ही रहा
उस योगी को
तथागत* को
तलाश रही है
उसकी शहनाई आज

बिलख रही हैं
बजरी, चैती, झूला और
ठूमरी की लोक-धूनें

और अपने ही राग-रागनियों से
बरसों से छूटी हुई, विह्वल
बहार, जैजैवंती और भैरवी की तानें
जैसे सात सुरों में
एक सुर कहीं खो गया ...

"हाय, मेरा सुरसाधक
किन घाटों पर
किन महफिलों में
किन गुफाओं में जा,
सदा के लिये सो गया !"

जिसकी सदाएँ
सुनेपन के दयार में
सुनने की अंतहीन तरस के साथ
बुला रही हैं
उस ‘बिस्मिल्लाह’ उस्ताद को
सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास में
अपने कबीर-शहनाईनवाज़ को
उनमें सोए
सबसे प्यारे राग को
फिर जगाने
शहनाई के नाद-स्वरम् से
फ़जा को फिर महक़ाने ।
---------------------

विश्वनाथ* = भगवान का एक नाम सपर बिस्मिल्लाह खान साहब को अटूट आस्था थी।
तथागत* = भगवान बुद्ध

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26 टिप्पणियाँ

  1. सुशील जी आपनें सच्ची श्रद्धांजली दी है उस्ताद को। आपकी कविता का तो मैं कायल हूँ।

    बुला रही हैं
    उस ‘बिस्मिल्लाह’ उस्ताद को
    सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास में
    अपने कबीर-शहनाईनवाज़ को
    उनमें सोए
    सबसे प्यारे राग को
    फिर जगाने
    शहनाई के नाद-स्वरम् से
    फ़जा को फिर महक़ाने ।

    आपने मेरी आई डी माँगी थी - anilkumarsahityakar@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  2. बिस्मिलाह खान जी को यह सच्ची श्रद्धांजलि है। बहुत महान प्रयास।

    जवाब देंहटाएं
  3. कृष्ण को बाँसुरी से और बिस्मिल्लाह को शहनए से पर्याय के रूप में ही जाना जायेगा। आपकी कविता प्रभावी है।

    जवाब देंहटाएं
  4. Nice poem on great painting. Thanks.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  5. समकालीन कवियों में सुशील कुमार प्रभावित करते हैं। नेट पर प्रस्तुत हो रहे कवियों में सुशील जी मुकाम बनाते जा रहे हैं और इस माध्यम को सही दिशा भी दे रहे हैं। यह कविता बिस्मिल्ला जी को श्रद्धांजलि भी है और विजेन्द्र जी की बोलती हुई पेंटिंग की आवाज भी बन गयी है।

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. खान साहब का पावन स्मरण कराती है कविता।

    जवाब देंहटाएं
  8. चित्र और शब्‍दों का अनूठा मेल
    ऐसी मेल जिसमें ई मेल भी हो गया फेल
    शब्‍दों को चित्र की या
    चित्र को शब्‍दों की जेल
    या हुए हैं दोनों ही आजाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. बिस्मिल्लाह खान साह्ब को उनकी पुण्य तिथि पर नमन करते हुए इस सुन्दर भाव प्रधान कविता के लिये सुशील जी बधाई के पात्र हैं।खान साहब के चित्र-चरित्र में गहरे उतर कर आपने लिखी है यह कविता।अगर सुशील जी अनुमति दें तो यह कविता मैं अपने कार्यक्रम की कविता-पोस्टर प्रदर्शनी में लगाऊंगा।

    जवाब देंहटाएं
  10. बिस्मिल्लाह खान जी को उनकी पुण्य तिथि पर याद करने और सुन्दर कविता की प्रस्तुती पर आभार.

    सच्चे सुर की तलाश में जिसने
    सादगी-सौम्यता का वेश धर
    फक्क्ड़ की शान से
    ताज़िन्दगी गुज़ार दी

    regards

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत उँचे दर्जे की पेंटिग़ पर बहुत अच्छी कविता, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. संवेदना से भरी कविता है। सचमुच उस्ताद के बाद शहनाई अनाथ हो गयी है।

    जवाब देंहटाएं
  13. पंकज सक्सेना21 अगस्त 2009 को 12:02 pm बजे

    बिस्मिलाह खान जी को श्रद्धांजलि। कविता बेहतरीन है।

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह, जैसा पेन्टिंग, वैसी ही कविता! अद्भूत समागम और लाजबाव प्रस्तुति। साहित्यशिल्पी को इस आयोजना के लिये बधाई!!

    जवाब देंहटाएं
  15. विजेन्द्र एस विज की पेन्टिंग बोलती है। बहुत आकर्षक लग रहा है। और कविता भी पठनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  16. सुशील जी,
    भारत रत्न उस्ताद विस्मिल्लाह खान पर रचित आपकी कविता और विजेंद्र जी द्वारा प्रस्तुत उनका चित्र, दोनों ही उनके प्रति एक सच्ची
    श्रद्धांजलि है. कलाकार की कभी मृत्यु नहीं होती, वह सदा अपनी कला के माध्यम से जीवित रहता है....एक भावभीनी प्रस्तुति के लिए
    धन्यवाद.
    किरण सिन्धु .

    जवाब देंहटाएं
  17. विजेन्द्र जी की पेंटिंग पर आदरणीय सुशील कुमार जी की कविता संपूर्ण विवेचना प्रस्तुत करती है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हमारी गंगा-जमनी संस्कृति के प्रतीक थे और इस लिये "कबीर" से बेहतर उपमा की कल्पना नही की जा सकती।

    जो लय और सुर में
    परम सत्य का खोजी बन
    बनारस के गंगातट पर तो
    कभी विश्वनाथ* की शरण में
    कभी भा-रत के मन में
    रमता ही रहा

    और उस्ताद के न रहने से जो खो गया है वह रिक्ति कभी भरी नहीं जा सकती। सुशील जी कहते हैं:-

    उस ‘बिस्मिल्लाह’ उस्ताद को
    सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास में
    अपने कबीर-शहनाईनवाज़ को
    उनमें सोए
    सबसे प्यारे राग को
    फिर जगाने
    शहनाई के नाद-स्वरम् से
    फ़जा को फिर महक़ाने ।

    मेरी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को विनम्र श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  18. सुशील कुमार जी ,
    वैसे तो उस्‍ताद विस्मिल्‍लाह खान के बारे में जितना लिखा जाए कम है .. पर आपने तो गजब श्रद्धांजलि दी उनको .. कमाल की कविताएं लिखते हैं आप !!

    जवाब देंहटाएं
  19. तुम आओ सनम , फिजा में बजने लगी शहनाईयाँ
    तारों की चिलमन को हटाकर चाँद भी झाँकने लगा अब ,
    देखने को उतावला हुआ , तुम्हारा मुखडा , मेरे महबूब ,
    पैरों में बजती , रूकती ये पाजेब , मेरी निगोड़ी ,
    मेरे ही दिल को धड़काती रहती है , देकर

    झूठे दिलासे , की आयेंगे पिया तुम्हारे ,
    होश सम्हालो , रूक जाओ न , और सुन लो ,
    रागिनी मधुर सी , बजती है जो फिजाओं में !
    ***********************************
    (- लावण्या )
    अब सुनिए ,
    बिस्मिल्लाह खां साहब का बजाया अद्`भुत राग : मालकौंस ,

    http://www.sawf.org/audio/malkauns/bismillah_malkauns.ram

    जवाब देंहटाएं
  20. और अपने ही राग-रागनियों से
    बरसों से छूटी हुई, विह्वल
    बहार, जैजैवंती और भैरवी की तानें
    जैसे सात सुरों में
    एक सुर कहीं खो गया ...
    वास्तव में सुर खो गया!
    किन्तु उनकी शहनाईयों की रिकार्डिंग्स के सुरों में खां साहेब अमर रहेंगे.
    सुशील जी इस भावभीनी श्रद्धांजलि के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  21. पराशर गौड़ जी की टिप्पणी मुझे अपने जी-मेल पर प्राप्त हुई है-
    शुसील जी,
    मै पाराशर गौड़ ब्राम्पटन ओंटारियो कैनाडा से आपको और संपादक मंडल को इस अंक पर बधाई देता हूँ।
    - Parashar Gaur parashargaur@yahoo.com

    जवाब देंहटाएं
  22. मंजु भटनागर महिमा जी की टिप्पणी मेरे ईपते पर प्राप्त हुई-
    सुशील जी,
    उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की पुण्य तिथि पर जो कविता में श्रद्धांजलि दी गयी है वह अदभुत है.....लिंक भेजने के लिए धन्यवाद |
    मंजू महिमा
    अहमदाबाद
    manju@ei-india.com

    जवाब देंहटाएं
  23. आज मेरे ईमेल पर रेखा मैत्रा जी की यह टिप्पणी प्राप्त हुई है-
    Tue, Aug 25, 2009 at 6:25 PM
    mailed-bygmail.com
    hide details 6:25 PM (28 minutes ago) Reply
    bismillah khan kee kavita ke zariye jo gayak ko bhavbheenee
    shraddhanjli dee hai aapne ,uske liye aap badhaaee ke patra hain !
    kavita bahut hee bhavpoorN ban paree hai !
    rekha.maitra@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  24. सुर के साधक को आपने अपनी कविता से सच्ची श्रधान्जली दी है..अच्छे शब्द उकेरे हैं ..
    देर से पोस्ट नजर आयी..अपनी पेंटिंग देखकर अच्छा लगा..
    बहुत बहुत शुक्रिया..

    जवाब देंहटाएं

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