
[कविता पेंटिंग श्रंखला की प्रथम प्रस्तुति]
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(साभार पेन्टिंग : विजेन्द्र एस. विज)
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विश्वनाथ* = भगवान का एक नाम सपर बिस्मिल्लाह खान साहब को अटूट आस्था थी।
तथागत* = भगवान बुद्ध
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साँस की टूटी डोर से
छूटा यह लोकवाद्य
भीषण दु:ख से चित्कार कर
पुकार रहा हैं उस फकीर को
अपने पीर को
जिसकी फूँक से
गूँजती थी कभी
यहाँ की वादियाँ
सच्चे सुर की तलाश में जिसने
सादगी-सौम्यता का वेश धर
फक्क्ड़ की शान से
ताज़िन्दगी गुज़ार दी
जिसकी नाद-लहरियों में डूब
जन-गण का हृदय
मगन हो
गा उठता था
झूम उठता था
जो लय और सुर में
परम सत्य का खोजी बन
बनारस के गंगातट पर तो
कभी विश्वनाथ* की शरण में
कभी भा-रत के मन में
रमता ही रहा
उस योगी को
तथागत* को
तलाश रही है
उसकी शहनाई आज
बिलख रही हैं
बजरी, चैती, झूला और
ठूमरी की लोक-धूनें
और अपने ही राग-रागनियों से
बरसों से छूटी हुई, विह्वल
बहार, जैजैवंती और भैरवी की तानें
जैसे सात सुरों में
एक सुर कहीं खो गया ...
"हाय, मेरा सुरसाधक
किन घाटों पर
किन महफिलों में
किन गुफाओं में जा,
सदा के लिये सो गया !"
जिसकी सदाएँ
सुनेपन के दयार में
सुनने की अंतहीन तरस के साथ
बुला रही हैं
उस ‘बिस्मिल्लाह’ उस्ताद को
सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास में
अपने कबीर-शहनाईनवाज़ को
उनमें सोए
सबसे प्यारे राग को
फिर जगाने
शहनाई के नाद-स्वरम् से
फ़जा को फिर महक़ाने ।
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छूटा यह लोकवाद्य
भीषण दु:ख से चित्कार कर
पुकार रहा हैं उस फकीर को
अपने पीर को
जिसकी फूँक से
गूँजती थी कभी
यहाँ की वादियाँ
सच्चे सुर की तलाश में जिसने
सादगी-सौम्यता का वेश धर
फक्क्ड़ की शान से
ताज़िन्दगी गुज़ार दी
जिसकी नाद-लहरियों में डूब
जन-गण का हृदय
मगन हो
गा उठता था
झूम उठता था
जो लय और सुर में
परम सत्य का खोजी बन
बनारस के गंगातट पर तो
कभी विश्वनाथ* की शरण में
कभी भा-रत के मन में
रमता ही रहा
उस योगी को
तथागत* को
तलाश रही है
उसकी शहनाई आज
बिलख रही हैं
बजरी, चैती, झूला और
ठूमरी की लोक-धूनें
और अपने ही राग-रागनियों से
बरसों से छूटी हुई, विह्वल
बहार, जैजैवंती और भैरवी की तानें
जैसे सात सुरों में
एक सुर कहीं खो गया ...
"हाय, मेरा सुरसाधक
किन घाटों पर
किन महफिलों में
किन गुफाओं में जा,
सदा के लिये सो गया !"
जिसकी सदाएँ
सुनेपन के दयार में
सुनने की अंतहीन तरस के साथ
बुला रही हैं
उस ‘बिस्मिल्लाह’ उस्ताद को
सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास में
अपने कबीर-शहनाईनवाज़ को
उनमें सोए
सबसे प्यारे राग को
फिर जगाने
शहनाई के नाद-स्वरम् से
फ़जा को फिर महक़ाने ।
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विश्वनाथ* = भगवान का एक नाम सपर बिस्मिल्लाह खान साहब को अटूट आस्था थी।
तथागत* = भगवान बुद्ध
26 टिप्पणियाँ
सुशील जी आपनें सच्ची श्रद्धांजली दी है उस्ताद को। आपकी कविता का तो मैं कायल हूँ।
जवाब देंहटाएंबुला रही हैं
उस ‘बिस्मिल्लाह’ उस्ताद को
सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास में
अपने कबीर-शहनाईनवाज़ को
उनमें सोए
सबसे प्यारे राग को
फिर जगाने
शहनाई के नाद-स्वरम् से
फ़जा को फिर महक़ाने ।
आपने मेरी आई डी माँगी थी - anilkumarsahityakar@gmail.com
बिस्मिलाह खान जी को यह सच्ची श्रद्धांजलि है। बहुत महान प्रयास।
जवाब देंहटाएंकृष्ण को बाँसुरी से और बिस्मिल्लाह को शहनए से पर्याय के रूप में ही जाना जायेगा। आपकी कविता प्रभावी है।
जवाब देंहटाएंNice poem on great painting. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
समकालीन कवियों में सुशील कुमार प्रभावित करते हैं। नेट पर प्रस्तुत हो रहे कवियों में सुशील जी मुकाम बनाते जा रहे हैं और इस माध्यम को सही दिशा भी दे रहे हैं। यह कविता बिस्मिल्ला जी को श्रद्धांजलि भी है और विजेन्द्र जी की बोलती हुई पेंटिंग की आवाज भी बन गयी है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंखान साहब का पावन स्मरण कराती है कविता।
जवाब देंहटाएंचित्र और शब्दों का अनूठा मेल
जवाब देंहटाएंऐसी मेल जिसमें ई मेल भी हो गया फेल
शब्दों को चित्र की या
चित्र को शब्दों की जेल
या हुए हैं दोनों ही आजाद।
बिस्मिल्लाह खान साह्ब को उनकी पुण्य तिथि पर नमन करते हुए इस सुन्दर भाव प्रधान कविता के लिये सुशील जी बधाई के पात्र हैं।खान साहब के चित्र-चरित्र में गहरे उतर कर आपने लिखी है यह कविता।अगर सुशील जी अनुमति दें तो यह कविता मैं अपने कार्यक्रम की कविता-पोस्टर प्रदर्शनी में लगाऊंगा।
जवाब देंहटाएंबिस्मिल्लाह खान जी को उनकी पुण्य तिथि पर याद करने और सुन्दर कविता की प्रस्तुती पर आभार.
जवाब देंहटाएंसच्चे सुर की तलाश में जिसने
सादगी-सौम्यता का वेश धर
फक्क्ड़ की शान से
ताज़िन्दगी गुज़ार दी
regards
is mahaan aur sachhe fakir kabir ko mera naman hai ....
जवाब देंहटाएंarsh
बहुत उँचे दर्जे की पेंटिग़ पर बहुत अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंसंवेदना से भरी कविता है। सचमुच उस्ताद के बाद शहनाई अनाथ हो गयी है।
जवाब देंहटाएंबिस्मिलाह खान जी को श्रद्धांजलि। कविता बेहतरीन है।
जवाब देंहटाएंवाह, जैसा पेन्टिंग, वैसी ही कविता! अद्भूत समागम और लाजबाव प्रस्तुति। साहित्यशिल्पी को इस आयोजना के लिये बधाई!!
जवाब देंहटाएंविजेन्द्र एस विज की पेन्टिंग बोलती है। बहुत आकर्षक लग रहा है। और कविता भी पठनीय है।
जवाब देंहटाएंसुशील जी,
जवाब देंहटाएंभारत रत्न उस्ताद विस्मिल्लाह खान पर रचित आपकी कविता और विजेंद्र जी द्वारा प्रस्तुत उनका चित्र, दोनों ही उनके प्रति एक सच्ची
श्रद्धांजलि है. कलाकार की कभी मृत्यु नहीं होती, वह सदा अपनी कला के माध्यम से जीवित रहता है....एक भावभीनी प्रस्तुति के लिए
धन्यवाद.
किरण सिन्धु .
विजेन्द्र जी की पेंटिंग पर आदरणीय सुशील कुमार जी की कविता संपूर्ण विवेचना प्रस्तुत करती है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हमारी गंगा-जमनी संस्कृति के प्रतीक थे और इस लिये "कबीर" से बेहतर उपमा की कल्पना नही की जा सकती।
जवाब देंहटाएंजो लय और सुर में
परम सत्य का खोजी बन
बनारस के गंगातट पर तो
कभी विश्वनाथ* की शरण में
कभी भा-रत के मन में
रमता ही रहा
और उस्ताद के न रहने से जो खो गया है वह रिक्ति कभी भरी नहीं जा सकती। सुशील जी कहते हैं:-
उस ‘बिस्मिल्लाह’ उस्ताद को
सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास में
अपने कबीर-शहनाईनवाज़ को
उनमें सोए
सबसे प्यारे राग को
फिर जगाने
शहनाई के नाद-स्वरम् से
फ़जा को फिर महक़ाने ।
मेरी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को विनम्र श्रद्धांजलि।
सुशील कुमार जी ,
जवाब देंहटाएंवैसे तो उस्ताद विस्मिल्लाह खान के बारे में जितना लिखा जाए कम है .. पर आपने तो गजब श्रद्धांजलि दी उनको .. कमाल की कविताएं लिखते हैं आप !!
तुम आओ सनम , फिजा में बजने लगी शहनाईयाँ
जवाब देंहटाएंतारों की चिलमन को हटाकर चाँद भी झाँकने लगा अब ,
देखने को उतावला हुआ , तुम्हारा मुखडा , मेरे महबूब ,
पैरों में बजती , रूकती ये पाजेब , मेरी निगोड़ी ,
मेरे ही दिल को धड़काती रहती है , देकर
झूठे दिलासे , की आयेंगे पिया तुम्हारे ,
होश सम्हालो , रूक जाओ न , और सुन लो ,
रागिनी मधुर सी , बजती है जो फिजाओं में !
***********************************
(- लावण्या )
अब सुनिए ,
बिस्मिल्लाह खां साहब का बजाया अद्`भुत राग : मालकौंस ,
http://www.sawf.org/audio/malkauns/bismillah_malkauns.ram
और अपने ही राग-रागनियों से
जवाब देंहटाएंबरसों से छूटी हुई, विह्वल
बहार, जैजैवंती और भैरवी की तानें
जैसे सात सुरों में
एक सुर कहीं खो गया ...
वास्तव में सुर खो गया!
किन्तु उनकी शहनाईयों की रिकार्डिंग्स के सुरों में खां साहेब अमर रहेंगे.
सुशील जी इस भावभीनी श्रद्धांजलि के लिए आभार.
पराशर गौड़ जी की टिप्पणी मुझे अपने जी-मेल पर प्राप्त हुई है-
जवाब देंहटाएंशुसील जी,
मै पाराशर गौड़ ब्राम्पटन ओंटारियो कैनाडा से आपको और संपादक मंडल को इस अंक पर बधाई देता हूँ।
- Parashar Gaur parashargaur@yahoo.com
mera bhee naman....
जवाब देंहटाएंमंजु भटनागर महिमा जी की टिप्पणी मेरे ईपते पर प्राप्त हुई-
जवाब देंहटाएंसुशील जी,
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की पुण्य तिथि पर जो कविता में श्रद्धांजलि दी गयी है वह अदभुत है.....लिंक भेजने के लिए धन्यवाद |
मंजू महिमा
अहमदाबाद
manju@ei-india.com
आज मेरे ईमेल पर रेखा मैत्रा जी की यह टिप्पणी प्राप्त हुई है-
जवाब देंहटाएंTue, Aug 25, 2009 at 6:25 PM
mailed-bygmail.com
hide details 6:25 PM (28 minutes ago) Reply
bismillah khan kee kavita ke zariye jo gayak ko bhavbheenee
shraddhanjli dee hai aapne ,uske liye aap badhaaee ke patra hain !
kavita bahut hee bhavpoorN ban paree hai !
rekha.maitra@gmail.com
सुर के साधक को आपने अपनी कविता से सच्ची श्रधान्जली दी है..अच्छे शब्द उकेरे हैं ..
जवाब देंहटाएंदेर से पोस्ट नजर आयी..अपनी पेंटिंग देखकर अच्छा लगा..
बहुत बहुत शुक्रिया..
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.