

बृजेश शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर फिरोजाबाद में १० नवम्बर १९८२ को हुआ। १४ साल तक का जीवन वही गुजारा और ९ वी तक की पढ़ाई भी वही हुई, फिर वे दिल्ली आ गये , और आज काल एक इंटरनेशनल बी पि ऊ में एकज्युकेटिव के पद पर हैं..।
मुझे शिकायत है वक्त से
क्योंकि, ये गुजर जाता है
नही करता इन्तेजार मेरे बढ़ने का
नही थामता हाथ साथ ले कर चलने के लिए!
नही विचारता शुभ अशुभ के बारे मैं-
नही देखता वक्त-बेवक्त!
बस चलता है निरंतर
निरंतरता- शायद यही इसकी पहचान है!
मुझे शिकायत है वक्त से
क्योंकि यह भुला देता है अतीत को
धूमिल कर देता है यादो को
और चढा देता है परत पुराने हरे जख्मो पर
जखम जो मैंने दिए थे स्वयं को
रखे थे हरे ख़ुद कुरेद कुरेद कर!
पर वक्त भरता जा रहा है इनको
मेरे ना चाहते हुए भी!
मुझे शिकायत है वक्त से!
क्योंकि, ये गुजर जाता है
नही करता इन्तेजार मेरे बढ़ने का
नही थामता हाथ साथ ले कर चलने के लिए!
नही विचारता शुभ अशुभ के बारे मैं-
नही देखता वक्त-बेवक्त!
बस चलता है निरंतर
निरंतरता- शायद यही इसकी पहचान है!
मुझे शिकायत है वक्त से
क्योंकि यह भुला देता है अतीत को
धूमिल कर देता है यादो को
और चढा देता है परत पुराने हरे जख्मो पर
जखम जो मैंने दिए थे स्वयं को
रखे थे हरे ख़ुद कुरेद कुरेद कर!
पर वक्त भरता जा रहा है इनको
मेरे ना चाहते हुए भी!
मुझे शिकायत है वक्त से!
7 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी कविता... बधाई
जवाब देंहटाएंAapki shikaayat jaayaz hai.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वक़्त की इस जोर ज़बरदस्ती पर हमारा ध्यान वाकई कभी नहीं जाता ... वक़्त ही नहीं मिलता .. :-) ध्यान इस और खींचने का शुक्रिया भाई .. खुबसूरत कविता ...
जवाब देंहटाएं.....
जवाब देंहटाएंजखम जो मैंने दिए थे स्वयं को
रखे थे हरे ख़ुद कुरेद कुरेद कर!
पर वक्त भरता जा रहा है इनको
मेरे ना चाहते हुए भी!...
बहुत ही सकारात्मक भाव ..... बढ़िया रचना शुभकामना बृजेश जी
वक्त सुनता कहाँ है....भाई मेरे....
जवाब देंहटाएंजखम जो मैंने दिए थे स्वयं को
जवाब देंहटाएंरखे थे हरे ख़ुद कुरेद कुरेद कर!
पर वक्त भरता जा रहा है इनको
मेरे ना चाहते हुए भी!
मुझे शिकायत है वक्त से!
अच्छी रचना।
bahut acchi kavita hai.dil ko choo gayi
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.