
धीरेन्द्र सिंह का जन्म १० जुलाई १९८७ को छतरपुर जिले के चंदला नाम के गाँव में हुआ था| आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा चंदला में ही पूरी की। वर्तमान में आप इंदौर में अभियन्त्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं| कविताएँ लिखने का शौक आपको अल्पायु से ही था, किन्तु पन्नो में लिखना कक्षा नवीं से प्रारंभ किया| आप हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में रचनाएं लिखते हैं। आपका 'काफ़िर' तखल्लुस है|
वो पुरानी बात घर में छोड़ आया
याद के कूचे शहर में छोड़ आया
आरजू वो, जुस्तुजू वो, कूबकू जो
तोड़ के अपनी नज़र में छोड़ आया
रात भर मैं बाम पर जागा हुआ था
नींद को लम्बे सफ़र में छोड़ आया
देर तक मैं भी वहाँ ठहरा नहीं था
मैं उसे, राहेगुज़र में छोड़ आया
आज दीवारें उदासी हैं , मना लो
इल्तिजा उसके दहर में छोड़ आया
याद के कूचे शहर में छोड़ आया
आरजू वो, जुस्तुजू वो, कूबकू जो
तोड़ के अपनी नज़र में छोड़ आया
रात भर मैं बाम पर जागा हुआ था
नींद को लम्बे सफ़र में छोड़ आया
देर तक मैं भी वहाँ ठहरा नहीं था
मैं उसे, राहेगुज़र में छोड़ आया
आज दीवारें उदासी हैं , मना लो
इल्तिजा उसके दहर में छोड़ आया
6 टिप्पणियाँ
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जवाब देंहटाएंHindi bookmarking and social networking sites gives more visitors and great traffic to your blog.
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वो पुरानी बात घर में छोड़ आया
जवाब देंहटाएंयाद के कूचे शहर में छोड़ आया
.......
एक उम्दा गज़ल ... शुभकामना
देर तक मैं भी वहाँ ठहरा नहीं था
जवाब देंहटाएंमैं उसे, राहेगुज़र में छोड़ आया
bhut behtreen mitr meri badhaayi swikaar kare saadar
praveen pathik
9971969084
नींद को लम्बे सफ़र में छोड़ आया
जवाब देंहटाएंनींद को लम्बे सफ़र में छोड़ आया
bahut khoob
वो पुरानी बात घर में छोड़ आया
जवाब देंहटाएंयाद के कूचे शहर में छोड़ आया
अच्छी शायरी है।
बहुत अच्छी ग़ज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.