
रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा प्रकाशित एकमात्र लोकप्रिय मासिक हिंदी पत्रिका भारतीय रेल अपनी गौरवशाली यात्रा के स्वर्ण जयंती वर्ष में प्रवेश कर रही है। बीते पांच दशकों में इस पत्रिका ने रेल कर्मियों के साथ अन्य पाठक वर्ग में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की है। इस लंबी अवधि के दौरान जहां भारत सरकार की कई पत्रिकाएं बंद हो गयीं या बहुत सीमित दायरे तक पहुंच गयीं, वहीं भारतीय रेल पत्रिका लगातार न सिर्फ निकल रही है बल्कि इसकी साज-सज्जा, विषय सामग्री और मुद्रण में भी निखार आया है। इसके पाठकों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है। रेलों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है। रेलों से संबंधित तकनीकी विषयों की सरल-सहज भाषा में जानकारी सुलभ कराने में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है। रेल प्रशासन, रेलकर्मियों और रेल उपयोगकर्ताओं के बीच भारतीय रेल पत्रिका एक मजबूत संपर्क-सूत्र का काम कर रही है।
भारतीय रेल पत्रिका का पहला अंक 15 अगस्त 1960 को प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका की शुरूआत के पीछे तत्कालीन रेल मंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा बाबू जगजीवन राम का विशेष प्रयास था। इस पत्रिका के शुरूआती दौर में संपादक मंडल के सदस्य थे- श्री डी.सी. बैजल, सदस्य, (कर्मचारी वर्ग) रेलवे बोर्ड, श्री डी.पी.माथुर, निदेशक वित्त, श्री आर.ई.डी.सा, सचिव, रेलवे बोर्ड, श्री जी.सी.मीरचंदानी, सह-निदेशक,जन-संपर्क, श्री राममूर्ति सिंह, हिंदी अफसर, रेलवे बोर्ड, श्री कृष्ण गुलाटी,संपादक तथा श्री राम चंद्र तिवारी, सहायक संपादक (हिंदी)। मौजूदा समय में संपादक मंडल में अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, वित्त आयुक्त, सचिव, रेलवे बोर्ड, निदेशक (सूचना एवं प्रचार) तथा परामर्शदाता, भारतीय रेल रेलवे बोर्ड हैं।
भारतीय रेल पत्रिका का पहला अंक 15 अगस्त 1960 को प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका की शुरूआत के पीछे तत्कालीन रेल मंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा बाबू जगजीवन राम का विशेष प्रयास था। इस पत्रिका के शुरूआती दौर में संपादक मंडल के सदस्य थे- श्री डी.सी. बैजल, सदस्य, (कर्मचारी वर्ग) रेलवे बोर्ड, श्री डी.पी.माथुर, निदेशक वित्त, श्री आर.ई.डी.सा, सचिव, रेलवे बोर्ड, श्री जी.सी.मीरचंदानी, सह-निदेशक,जन-संपर्क, श्री राममूर्ति सिंह, हिंदी अफसर, रेलवे बोर्ड, श्री कृष्ण गुलाटी,संपादक तथा श्री राम चंद्र तिवारी, सहायक संपादक (हिंदी)। मौजूदा समय में संपादक मंडल में अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, वित्त आयुक्त, सचिव, रेलवे बोर्ड, निदेशक (सूचना एवं प्रचार) तथा परामर्शदाता, भारतीय रेल रेलवे बोर्ड हैं।
भारतीय रेल पत्रिका के मौजूदा संपादक का दायित्व श्री अरविंद कुमार सिंह (परामर्शदाता, भारतीय रेल) तथा उनकी टीम संभाल रही है। श्री सिंह को राष्ट्रपति तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई संस्थाओं द्वारा पत्रकारिता के कई शीर्ष पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है और वे एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाए जाते हैं। प्रवेशांक से लेकर लंबे दौर तक पत्रिका को गरिमापूर्ण स्थान तक पहुंचाने का दायित्व हिंदी के विख्यात विद्वान और लेखक श्री रामचंद्र तिवारी तथा श्री प्रमोद कुमार यादव ने संभाला था। भारतीय रेल पत्रिका तथा उसके संपादकों को पत्रकारिता और साहित्य में विशेष योगदान के लिए हिंदी अकादमी दिल्ली तथा उ.प्र. हिंदी संस्थान समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।
पत्रिका के प्रवेशांक से लंबे समय तक वार्षिक चंदे की दर सर्व साधारण के लिए छह रुपए रखी गयी थी, जबकि रेलकर्मियों के लिए चार रुपए की रियायती दर थी। एक अंक का मूल्य था 60 नए पैसे। भारतीय रेल पत्रिका का पहला विशेषांक अप्रैल 1961 में रेल सप्ताह अंक नाम से प्रकाशित किया गया। पत्रिका के शुरूआत में स्थाई स्तंभ थे- संपादकीय, सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें 100 साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से, क्रीडा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन, रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय, कविता, कहानी। पत्रिका को रोचक बनाने के लिए भगत जी कार्टून के माध्यम से भी रेलकर्मियों और यात्रियों दोनों के जागरण का प्रयास किया गया।
जहां तक लेखकों का सवाल है तो पहले अंक में ही भारतीय रेल ने साफ घोषणा की थी कि बाहर के लेखकों की रचनाएं भी स्वीकार की जाएंगी। इस पत्रिका के प्रतिष्ठित लेखकों में स्व.श्री विष्णु प्रभाकर, श्री कमलेश्वर, डा. प्रभाकर माचवे, श्री पी.डी. टंडन, श्री रतनलाल शर्मा, श्री श्रीनाथ सिंह, श्री रामदरश मिश्र, डा.शंकर दयाल सिंह, श्री विष्णु स्वरूप सक्सेना, डा. महीप सिंह, श्री यशपाल जैन, सुश्री आशारानी व्होरा, श्री शैलेन चटर्जी, श्री लल्लन प्रसाद व्यास, श्री शेर बहादुर विमलेश, श्री अक्षय कुमार जैन, श्री प्रेमपाल शर्मा, श्री आर.के. पचौरी, डा. दिनेश कुमार शुक्ल, श्री उदय नारायण सिंह, श्री अरविंद घोष, श्री देवेंद्र उपाध्याय, श्री कौटिल्य उदियानी, श्री देवकृष्ण व्यास, शार्दूल विक्रम गुप्त, लक्ष्मीशंकर व्यास, मंजु नागौरी से लेकर हिंदी के कई विद्वान लेखक और पत्रकार जुड़े रहे हैं। भारतीय रेल में 1960 के बाद के सारे रेल बजट तथा उन पर सारगर्भित समीक्षाएं विस्तार से प्रकाशित हुई हैं। इस दौर की सभी प्रमुख रेल परियोजनाओं, खास निर्णयों और महत्वपूर्ण घटनाओं को भारतीय रेल में प्रमुखता से कवरेज दिया गया। इसी नाते खास तौर पर अध्येताओं तथा अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह पत्रिका एक अनिवार्य संदर्भ भी बन गयी है।
पत्रिका के प्रवेशांक से लंबे समय तक वार्षिक चंदे की दर सर्व साधारण के लिए छह रुपए रखी गयी थी, जबकि रेलकर्मियों के लिए चार रुपए की रियायती दर थी। एक अंक का मूल्य था 60 नए पैसे। भारतीय रेल पत्रिका का पहला विशेषांक अप्रैल 1961 में रेल सप्ताह अंक नाम से प्रकाशित किया गया। पत्रिका के शुरूआत में स्थाई स्तंभ थे- संपादकीय, सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें 100 साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से, क्रीडा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन, रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय, कविता, कहानी। पत्रिका को रोचक बनाने के लिए भगत जी कार्टून के माध्यम से भी रेलकर्मियों और यात्रियों दोनों के जागरण का प्रयास किया गया।
जहां तक लेखकों का सवाल है तो पहले अंक में ही भारतीय रेल ने साफ घोषणा की थी कि बाहर के लेखकों की रचनाएं भी स्वीकार की जाएंगी। इस पत्रिका के प्रतिष्ठित लेखकों में स्व.श्री विष्णु प्रभाकर, श्री कमलेश्वर, डा. प्रभाकर माचवे, श्री पी.डी. टंडन, श्री रतनलाल शर्मा, श्री श्रीनाथ सिंह, श्री रामदरश मिश्र, डा.शंकर दयाल सिंह, श्री विष्णु स्वरूप सक्सेना, डा. महीप सिंह, श्री यशपाल जैन, सुश्री आशारानी व्होरा, श्री शैलेन चटर्जी, श्री लल्लन प्रसाद व्यास, श्री शेर बहादुर विमलेश, श्री अक्षय कुमार जैन, श्री प्रेमपाल शर्मा, श्री आर.के. पचौरी, डा. दिनेश कुमार शुक्ल, श्री उदय नारायण सिंह, श्री अरविंद घोष, श्री देवेंद्र उपाध्याय, श्री कौटिल्य उदियानी, श्री देवकृष्ण व्यास, शार्दूल विक्रम गुप्त, लक्ष्मीशंकर व्यास, मंजु नागौरी से लेकर हिंदी के कई विद्वान लेखक और पत्रकार जुड़े रहे हैं। भारतीय रेल में 1960 के बाद के सारे रेल बजट तथा उन पर सारगर्भित समीक्षाएं विस्तार से प्रकाशित हुई हैं। इस दौर की सभी प्रमुख रेल परियोजनाओं, खास निर्णयों और महत्वपूर्ण घटनाओं को भारतीय रेल में प्रमुखता से कवरेज दिया गया। इसी नाते खास तौर पर अध्येताओं तथा अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह पत्रिका एक अनिवार्य संदर्भ भी बन गयी है।
8 टिप्पणियाँ
बढियां खबर -हमनाम को बधाई ! अब मुझसे तो उन्होंने कुछ कहा ही नहीं -विज्ञान पर शायद ही कोई लेख हो !
जवाब देंहटाएंमरती हुई पत्रिकाओं के युग में इस तरह की उपलब्धि प्रसंशा योग्य है।
जवाब देंहटाएंभारतीय रिलेशन पत्रिका के विषय में जान कर अच्छा लगा। पत्रिका की स्वर्ण जयंति की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंपत्रिका के स्वर्ण जयंति की बधाई।
जवाब देंहटाएंArvind Singh ji ko Sahityashilpi par padhkar achha laga...isase pahle unhone Postal Dept. par achha karya kiya hai...filhal Railway par...badhai !!
जवाब देंहटाएंPlease forward your email id. Thanks
जवाब देंहटाएंPlease forward your email id. Thanks
जवाब देंहटाएंsahityashilpi@gmail.com
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