
शाम का समय था। ठेकेदार साहब अपने घर पर बैठकर चाय का मजा ले रहे थे। तभी गेट पर घंटी बजी। दुबला-पतला एक व्यक्ति गेट पर खड़ा था। गेट खुला हुआ ही था।
“साहब, मुझे गुप्ताजी ने आपके पास भेजा है।” पूछने पर उसने बताया।
ठेकेदार ने उसे अन्दर बुला लिया। अन्दर पहुँचकर वह ठेकेदार से कुछ दूरी बनाते हुए जमीन पर बैठ गया।
“घरेलू कामकाज के लिए हम लोगों को एक नौकर की तलाश है। घर में सिर्फ तीन प्राणी हैं—मैं, मेरी पत्नी और विदेशी नस्ल का हमारा रूमी।”
जमीन पर बैठे आदमी की समझ में वह तीसरा प्राणी एकाएक ही नहीं आया कि कौन है। वह ठेकेदार से उसके बारे में पूछने ही वाला था कि सुती-सी कमर वाला एक कुत्ता वहाँ आया और उसे घूरता हुआ ठेकेदार के समीप सोफे पर बैठ गया।
“साहब, मुझे गुप्ताजी ने आपके पास भेजा है।” पूछने पर उसने बताया।
ठेकेदार ने उसे अन्दर बुला लिया। अन्दर पहुँचकर वह ठेकेदार से कुछ दूरी बनाते हुए जमीन पर बैठ गया।
“घरेलू कामकाज के लिए हम लोगों को एक नौकर की तलाश है। घर में सिर्फ तीन प्राणी हैं—मैं, मेरी पत्नी और विदेशी नस्ल का हमारा रूमी।”
जमीन पर बैठे आदमी की समझ में वह तीसरा प्राणी एकाएक ही नहीं आया कि कौन है। वह ठेकेदार से उसके बारे में पूछने ही वाला था कि सुती-सी कमर वाला एक कुत्ता वहाँ आया और उसे घूरता हुआ ठेकेदार के समीप सोफे पर बैठ गया।
“साहब, मेरे को घर का सारा काम आता है।” सारी बात समझकर व्यक्ति बोला।
“नाम क्या है तुम्हारा?” ठेकेदार ने उससे पूछा।
“जी, गरीबू।” वह बोला।
“तुम्हारे परिवार में कितने लोग हैं?”
“पाँच लोग हैं साहब—मैं, मेरी बीवी और तीन बच्चे…।”
ये बातें चल ही रही थीं कि गेट की घंटी पुन: बजी। देखा—ठेकेदार का एक अन्य मित्र सोहन सिंह घर में घुस रहा था। वह आया और उसी सोफे पर बैठकर कुत्ते से खेलने लगा।
“घर और बाजार का सारा काम करना होगा।” ठेकेदार गरीबू से बोला,“पगार तीन हजार रुपए महीना यानी कि सौ रुपए रोज। जिस दिन भी छुट्टी करोगे—सौ रुपया काट लिया जाएगा।”
“जी।” गरीबू ने गरदन हिलाई।
“आने-जाने वालों का भी पूरा ध्यान रखना होगा—मंजूर है?” ठेकेदार ने पकाया।
“जी।” उसने पुन: गरदन हिलाई।
“यार ऐसा ही एक पीस मैं भी घर में रखना चाहता हूँ।” बातचीत के बीच में ही सोहन सिंह ठेकेदार से बोला,“माहवार कितना खर्चा आ जाता होगा?”
“ठीक-ठाक चलता रहे तो यही करीब दस हजार…।” ठेकेदार बोला।
गरीबू की हसरत भरी नजरें ठेकेदार का जवाब सुनते ही रूमी पर जा टिकीं।
प्रस्तुत लघुकथा रचनाकार आशीष रस्तौगी की है। आशीष ने बी.टेक., एमबीए किया है और इन दिनों बहुराष्ट्रीय कम्पनी एचसीएल के मैनेजिंग विभाग में नोएडा में कार्यरत हैं।
हम लघुकथा प्रेषण तथा रचनात्मक सहयोग के लिये श्री बलराम अग्रवाल जी के आभारी हैं| - साहित्य शिल्पी।
“नाम क्या है तुम्हारा?” ठेकेदार ने उससे पूछा।
“जी, गरीबू।” वह बोला।
“तुम्हारे परिवार में कितने लोग हैं?”
“पाँच लोग हैं साहब—मैं, मेरी बीवी और तीन बच्चे…।”
ये बातें चल ही रही थीं कि गेट की घंटी पुन: बजी। देखा—ठेकेदार का एक अन्य मित्र सोहन सिंह घर में घुस रहा था। वह आया और उसी सोफे पर बैठकर कुत्ते से खेलने लगा।
“घर और बाजार का सारा काम करना होगा।” ठेकेदार गरीबू से बोला,“पगार तीन हजार रुपए महीना यानी कि सौ रुपए रोज। जिस दिन भी छुट्टी करोगे—सौ रुपया काट लिया जाएगा।”
“जी।” गरीबू ने गरदन हिलाई।
“आने-जाने वालों का भी पूरा ध्यान रखना होगा—मंजूर है?” ठेकेदार ने पकाया।
“जी।” उसने पुन: गरदन हिलाई।
“यार ऐसा ही एक पीस मैं भी घर में रखना चाहता हूँ।” बातचीत के बीच में ही सोहन सिंह ठेकेदार से बोला,“माहवार कितना खर्चा आ जाता होगा?”
“ठीक-ठाक चलता रहे तो यही करीब दस हजार…।” ठेकेदार बोला।
गरीबू की हसरत भरी नजरें ठेकेदार का जवाब सुनते ही रूमी पर जा टिकीं।
प्रस्तुत लघुकथा रचनाकार आशीष रस्तौगी की है। आशीष ने बी.टेक., एमबीए किया है और इन दिनों बहुराष्ट्रीय कम्पनी एचसीएल के मैनेजिंग विभाग में नोएडा में कार्यरत हैं।
हम लघुकथा प्रेषण तथा रचनात्मक सहयोग के लिये श्री बलराम अग्रवाल जी के आभारी हैं| - साहित्य शिल्पी।
12 टिप्पणियाँ
आदमी की कीमत सस्ती है। दुर्भाग्य तो है कि गरीब और गरीब होता जा रहा है। बढते बाजार के युग में आम आदमी कुत्ते से कमतर हो गया है। लघुकथा सफल है।
जवाब देंहटाएंयह विषमता दुखद है। समाज में बदलाव होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा है।
जवाब देंहटाएंSASHAKT LAGHUKATHA
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
सत्य को प्रस्तुत करती लघुकथा प्रभावी है।
जवाब देंहटाएंकटु सत्य
जवाब देंहटाएंबाजार के युग में कटु सत्य को प्रस्तुत करती लघुकथा.
जवाब देंहटाएंजानवर और इंसान के बीच का फर्क मिटता जा रहा है। आदमी उँचा उठता जा रह है जानवर बनता जा रहा है।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील लघुकथा।
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली लघुकथा।
जवाब देंहटाएंलघुकथा प्रभावित करती है।
जवाब देंहटाएंआदमी को कुत्ते के आगे छोटा बताती हुई बहुत सी लघुकथाएं पढी हैं ... काफी टिपिकल और कई बार पढ़ी सुनी लघु कथा ... कुछ भी नया नहीं था ...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.