
काली मिट्टी पर उग आए,
हरे पौधों को देखता हूँ,
तो मेरी साँवली कलाई पर,
हरे रंग का रेशम,
खुद ब खुद,
उग आता है,
मैं अपने माथे पर,
सुर्ख रोली ढूँढता हूँ,
और,
जब सहर आसमाँ के माथे पर,
वही लाल रोली मलती है,
तो हल्का-सा टीका मुझे भी,
लगा जाती है!!
बरसात जब बूँदों का अक्षत,
मेरे सर पर छिड़कती है,
तो मैं होश में आता हूँ,
और,
सूनी कलाई, सूनी दुनिया,
सूना माथा पाता हूँ!!
मेरे सर पर छिड़कती है,
तो मैं होश में आता हूँ,
और,
सूनी कलाई, सूनी दुनिया,
सूना माथा पाता हूँ!!
दीदी, कभी भोर, कभी मिट्टी,
कभी बारिश बन कर आओ,
शायद मैं अकेला हूँ,
मुझे साथ ले जाओ...
*****
कभी बारिश बन कर आओ,
शायद मैं अकेला हूँ,
मुझे साथ ले जाओ...
*****
11 टिप्पणियाँ
दिव्यांशु बहुत अच्छी कविता है।मन को छू गयी संवेदनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है, बधाई।
जवाब देंहटाएंदीदी, कभी भोर, कभी मिट्टी,
जवाब देंहटाएंकभी बारिश बन कर आओ,
शायद मैं अकेला हूँ,
मुझे साथ ले जाओ...
सुन्दर रचना।
MAN MEIN UTAR GAYEE AAPKI RACHNA.... LAJAWAAB LIKHA HAI
जवाब देंहटाएंदीदी, कभी भोर, कभी मिट्टी,
जवाब देंहटाएंकभी बारिश बन कर आओ,
शायद मैं अकेला हूँ,
मुझे साथ ले जाओ..
.सावन में एक ऐसी भी बरखा होती है......
नयन भीग गए......दिव्यांशु जी.....
प्यार भरी रचना।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील कविता
जवाब देंहटाएंkya hi sunder bhav upmaye sab kuchh mujhe bahut achchhi lagi aap ki kavita
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
बरसात जब बूँदों का अक्षत,
जवाब देंहटाएंमेरे सर पर छिड़कती है,
तो मैं होश में आता हूँ,
और,
सूनी कलाई, सूनी दुनिया,
सूना माथा पाता हूँ!!
दीदी, कभी भोर, कभी मिट्टी,
कभी बारिश बन कर आओ,
शायद मैं अकेला हूँ,
मुझे साथ ले जाओ.
एक एक पंक्ति दिल को छू जाती है।
मर्मस्पर्शी संवेदनायें लिये कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है मन को छू गई. यूँ कहो भैया की याद आ गई
जवाब देंहटाएंसादर
अमिता
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.