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विजय दिवस [लघु कथा]- आचार्य संजीव 'सलिल'


करगिल विजय की वर्षगांठ को विजय दिवस के रूप में मनाये जाने की खबर पाकर एक मित्र बोले-

'क्या चोर या बदमाश को घर से निकाल बाहर करना विजय कहलाता है?'

''पड़ोसियों को अपने घर से निकल बाहर करने के लिए देश-हितों की उपेक्षा, सीमाओं की अनदेखी, राजनैतिक मतभेदों को राष्ट्रीयता पर वरीयता और पड़ोसियों की ज्यादतियों को सहन करने की बुरी आदत (कुटैव या लत) पर विजय पाने की वर्ष गांठ को विजय दिवस कहना ठीक ही तो है. '' मैंने कहा.

<span title=रचनाकार परिचय:-


आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है। आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि। वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।

'इसमें गर्व करने जैसा क्या है? यह तो सैनिकों का फ़र्ज़ है, उन्हें इसकी तनखा मिलती है.' -मित्र बोले.

'''तनखा तो हर कर्मचारी को मिलती है लेकिन कितने हैं जो जान पर खेलकर भी फ़र्ज़ निभाते हैं. सैनिक सीमा से जान बचाकर भाग खड़े होते तो हम और आप कैसे बचते?''

'यह तो सेना में भरती होते समय उन्हें पता रहता है.'

"पता तो नेताओं को भी रहता है कि उन्हें आम जनता-और देश के हित में काम करना है, वकील जानता है कि उसे मुवक्किल के हित को बचाना है, न्यायाधीश जनता है कि उसे निष्पक्ष रहना है, व्यापारी जनता है कि उसे शुद्ध माल कम से कम मुनाफे में बेचना है, अफसर जानता है कि उसे जनता कि सेवा करना है पर कोई करता है क्या? सेना ने अपने फ़र्ज़ को दिलो-जां से अंजाम दिया इसीलिये वे तारीफ और सलामी के हकदार हैं. विजय दिवस उनके बलिदानों की याद में हमारी श्रद्धांजलि है, इससे नयी पीढी को प्रेरणा मिलेगी.''

प्रगतिवादी मित्र भुनभुनाते हुए सर झुकाए आगे बढ़ गए..

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8 टिप्पणियाँ

  1. बहुत सही और सुन्दर लिखा आपने... शब्दों के हेर फ़ेर से सही को गलत करने वाले बहुत मिल जाते हैं. सच क्या है इसके लिये पैनी नजर और जानकारी का होना आवश्यक है

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  2. अभार सलिल जी, गहरी सोच के साथ लिखी गयी लघुकथा है।

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  3. आपने उन छिपे रुस्‍तम को सही जगह पर ही जवाब दे दिया था। मेरा भी मन हुआ कि उन्‍हें कुछ लिखा जाए फिर जब गुरुजी ने ही जवाब दे दिया हो तो हम शिष्‍यों को तो चुप रहना ही था, फिर वे छिपकर वार कर रहे थे। लघुकथा के रूप में आपने उस घटना को पिरोकर एक श्रेष्‍ठ लघुकथा का निर्माण किया इसके लिए हम आपके आभारी हैं।

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  4. acharya ji kya sahi kaha malum to sabko hota hai apka farz par pura kaoun karta hai yadi sabhi pura karne lagen to desh svarg se bhi sunder hojayega
    sunder kahani ke kiye badhai
    saader
    rachana

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